लोकतंत्र को और मजबूत बनाने की जरूरत, पूर्व राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दिया सुझाव

सबके सही और समान प्रतिनिधित्व के लिए लोकसभा की सीट संख्या 543 से बढ़ाकर एक हजार की जानी चाहिए- पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Thu, 19 Dec 2019 08:44 AM (IST) Updated:Thu, 19 Dec 2019 10:47 AM (IST)
लोकतंत्र को और मजबूत बनाने की जरूरत, पूर्व राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दिया सुझाव
लोकतंत्र को और मजबूत बनाने की जरूरत, पूर्व राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दिया सुझाव

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। लोकतंत्र का मतलब आम जनता का शासन। जनता का, जनता द्वारा, जनता के लिए। बीते सोमवार को पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भारतीय परिप्रेक्ष्य में इस परिभाषा पर खरा उतरने के लिए लोकतंत्र को और मजबूत बनाने की जरूरत बताई। उन्होंने कहा कि मतदाताओं की संख्या में बढ़ोतरी होने के चलते जनप्रतिनिधि गैरसमानुपातिक हो गए हैं। सबके सही और समान प्रतिनिधित्व के लिए लोकसभा की सीट संख्या 543 से बढ़ाकर एक हजार की जानी चाहिए।

ऐसे तय हुई लोकसभा सीट संख्या

लोकसभा की वर्तमान सीटों का निर्धारण 1971 की जनगणना के आधार पर हुआ। इस जनगणना में देश की आबादी 55 करोड़ थी। दस लाख की आबादी पर एक सीट की अवधारणा के चलते तब लोकसभा के सदस्यों की संख्या 543 तय की गई। 2011 की जनगणना में भारत की आबादी 121 करोड़ हो चुकी है। इसका मतलब है कि 1971 की आबादी के दोगुने से भी अधिक। इस लिहाज से अब एक लोकसभा सदस्य पर 22.29 लाख लोगों का औसत बैठता है। इस अनुपात को कम किए जाने की दरकार है। तभी हम जनप्रतिनिधित्व की आदर्श कल्पना को साकार कर सकते हैं।

कहां कितना अनुपात

प्यू रिसर्च के अनुसार दुनिया के कई लोकतंत्रों में जनप्रतिनिधि और जनता का अनुपात इससे बहुत कम है।

राज्यों पर असर

आबादी के हिसाब से लोकसभा सीटों को अगर बढ़ाया गया तो कई राज्यों में ये सीटें वर्तमान के मुकाबले कम तो कई राज्यों में अधिक हो जाएंगी। कार्नेगी इंडिया का एक विश्लेषण बताता है कि 2011 की जनगणना के आधार पर अगर लोकसभा की सीटें तय की गईं तो दक्षिण के राज्यों में सीटें कम हो जाएंगी। तमिलनाडु में सात, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में संयुक्त रूप से पांच, केरल में पांच सीटें कम हो जाएंगी। उत्तर प्रदेश में आठ, बिहार में छह और राजस्थान में पांच सीटों का इजाफा होगा। ऐसे में यह फैसला विवाद की वजह भी बन सकता है।

एक और विकल्प

ऐसे में प्रतिनिधित्व के अनुपात को सुधारने के लिए एक और विचार को कारगर माना जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार देश को फस्र्ट पास्ट द पोस्ट चुनावी प्रणाली से समानुपातिक प्रतिनिधित्व वाली प्रणाली की तरफ बढ़ना चाहिए। हालांकि इसमें सीट संख्या की बात नहीं होती, लेकिन मुख्य चिंता समानुपातिक प्रतिनिधित्व को बढ़ाने की है। वर्तमान चुनावी प्रणाली के तहत किसी भी उम्मीदवार को अपने प्रतिद्वंद्वी से एक वोट अधिक मिलने पर विजयी घोषित कर दिया जाता है। लेकिन दुनिया के कई आधुनिक लोकतंत्रों में समानुपातिक प्रणाली लागू है। जिसमें राजनीतिक दलों को चुनाव में मिले मतों के आधार पर संसद की सीटें बांटी जाती हैं।

नफा-नुकसान

समानुपातिक चुनावी प्रणाली का समर्थन करने वाले लोगों का कहना है कि इससे पूर्ण बहुमतवाद से बचा जा सकेगा। वहीं इसका विरोध करने वाले इससे अस्थिर गठबंधन को बढ़ावा मिलने की दलील देते हैं।

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