Corona Vaccine Fight: जब देशवासियों के लिए नहीं थे पूरे टीके तो विदेश क्यों भेजे? संबित पात्रा ने बताई असल वजह

पात्रा ने कहा कि विदेश में 5.50 करोड़ वैक्सीन की खुराक भेजना दो भारतीय निर्माताओं की मजबूरी थी क्योंकि यह उनकी व्यावसायिक और लाइसेंस देनदारियों का हिस्सा था। देश में निर्मित Covishield पर अधिकार एक विदेशी फर्म Astrazeneca का है SII विदेश में उत्पादित टीकों को भेजने के लिए बाध्य।

By Nitin AroraEdited By: Publish:Wed, 12 May 2021 06:14 PM (IST) Updated:Wed, 12 May 2021 09:10 PM (IST)
Corona Vaccine Fight: जब देशवासियों के लिए नहीं थे पूरे टीके तो विदेश क्यों भेजे? संबित पात्रा ने बताई असल वजह
Corona Vaccine Fight: जब देशवासियों के लिए नहीं थे पूरे टीके तो विदेशों में क्यों भेजे? BJP ने दी सफाई

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। देश में वैक्सीन की किल्लत और दूसरे देशों को निर्यात के मुद्दे पर हो रही राजनीति के बीच भाजपा ने स्पष्ट किया है कि भारत ने अपने पड़ोसी राष्ट्रों और संयुक्त राष्ट्र की पीसकी¨पग फोर्स के लिए जरूर एक करोड़ वैक्सीन भेजी हैं लेकिन बाकी की लगभग साढ़े पांच करोड़ वैक्सीन अंतरराष्ट्रीय बाध्यता के बाहर भेजी गईं।भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि देश में रिमोट से दस साल सरकार चला चुके राहुल गांधी इसे समझते हैं और सात साल से दिल्ली में सरकार चला रहे अर¨वद केजरीवाल को भी इतनी समझ होगी। लेकिन वे आपदा में राजनीतिक अवसर ढूंढ रहे हैं। लोगों में भय व भ्रम फैलाकर अपनी नाकामी छिपाना चाहते हैं। 

दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार की ने कहा है कि वह तीन महीने में पूरी दिल्ली को टीका लगाना चाहती है लेकिन वैक्सीन ही नहीं है। दिल्ली सरकार ने यह भी कहा कि भारत के लोगों के लिए वैक्सीन नहीं है और केंद्र सरकार ने दूसरे देशों को साढ़े छह करोड़ वैक्सीन दे दीं। कुछ ऐसे ही आरोप कांग्रेसी नेता भी लगा रहे हैं। बुधवार को चुप्पी तोड़ते हुए भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि एक करोड़ सात लाख वैक्सीन मदद के रूप मे भेजी गई।

इसमें से 78 लाख पड़ोस के सात मुल्कों को दी गई। यह केवल कूटनीति नहीं बल्कि महामारी रोकने की कवायद भी थी क्योंकि वायरस सीमाओं को नहीं मानता। दो लाख वैक्सीन संयुक्त राष्ट्र की पीसकी¨पग फोर्स को दी गई क्योंकि यह एक अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारी है। इस फोर्स में भारत के भी साढ़े छह हजार जवान हैं।

पात्रा ने वाणिज्यिक और लाइसें¨सग बाध्यता को भी समझाया और कहा कि सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बायोटेक ने विदेश से कच्चा माल मंगाया था। उस समय कंपनियों का उन देशों से समझौता हुआ था कि एडवांस पेमेंट के तौर पर वह कुछ डोज वहां भेजेंगे। कोविशील्ड बनाने वाली सीरम कंपनी को तो लाइसेंस भी विदेशी कंपनी आक्सफोर्ड एस्ट्राजेनेका ने दिया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के कोवैक्स कार्यक्रम में कई देश हिस्सेदार हैं। उसके तहत वैक्सीन का एक हिस्सा अनिवार्य रूप से देना पड़ता है।

दिल्ली सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए पात्रा ने कहा कि अरविंद केजरीवाल और सिसोदिया गंदी राजनीति कर रहे हैं। कहते हैं कि उन्होंने एक करोड़ वैक्सीन का आर्डर दिया है। दिल्ली सरकार का पत्र दिखाते हुए पात्रा ने कहा कि इसमें कंपनी से कहा गया है कि वह वैक्सीन खरीदना चाहते हैं।पात्रा ने कहा कि चाहत और वास्तविक खरीद आर्डर में फर्क होता है। खरीद के यह भी तय होता है कि वे कितना एडवांस दे रहे हैं, कब-कब कितनी डोज चाहिए वगैरह। लेकिन दिल्ली सरकार को केवल दिखावा करना था और वह किया। 

पात्रा ने दूसरी कंपनी को वैक्सीन बनाने का लाइसेंस दिए जाने पर कहा कि सीरम इंस्टीट्यूट तो खुद ही किसी से लाइसेंस लेकर काम कर रहा है। रही बात कोवैक्सीन की तो सरकार ने पहले ही पैनेसिया फार्मा के साथ साथ हेफ्किन फार्मास्यूटिकल लिमिटेड, इंडियन बायोलाजिकल लिमिटेड समेत कुछ अन्य पीएसयू को भी इसमें जोड़ने की तैयारी की है। सरकार वैक्सीन की उपलब्धता बढ़ाने में जुटी है लेकिन जैसा केजरीवाल कह रहे हैं किसी भी कंपनी को फार्मूला नहीं दिया जा सकता। इसके लिए जैविकीय सुरक्षा की जरूरत होती है वरना हादसा भी हो सकता है।

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