पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में गठबंधन बना कांग्रेस का सियासी सिरदर्द, सीटों के बंटवारे पर फंसा पेंच
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में गठबंधन का मसला कांग्रेस के लिए बड़ा सियासी सिरदर्द साबित हो रहा है। तमिलनाडु में सम्मानजनक सीटें की जद्दोजहद है तो असम और बंगाल में पार्टी के रुख को लेकर भी अंदरूनी मतभेद सामने आए हैं...
नई दिल्ली, जेएनएन। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में गठबंधन का मसला कांग्रेस के लिए बड़ा सियासी सिरदर्द साबित हो रहा है। विशेषकर तमिलनाडु में सम्मानजनक सीटें हासिल करना भी पार्टी के लिए मुश्किल हो रहा है। कांग्रेस के सबसे पुराने सहयोगियों में शामिल द्रमुक फिलहाल तमिलनाडु के चुनाव में कांग्रेस को 22 से ज्यादा सीटें देने को तैयार नहीं हो रहा है, जो पिछले चुनाव में कांग्रेस को मिली सीटों की लगभग आधी हैं। कांग्रेस की सिकुड़ती सियासत और पार्टी के अंदरूनी उठापटक का फायदा उठाते हुए सहयोगी दल भी सीट बंटवारे में उस पर दबाव बनाने का मौका नहीं छोड़ रहे।
अकेले चुनाव लड़ने की चेतावनी
तमिलनाडु में इतनी कम सीटों पर लड़ने के प्रस्ताव से खफा कांग्रेस के रणनीतिकारों ने तो गुरुवार को द्रमुक प्रमुख स्टालिन को यहां तक संदेश दे दिया कि सम्मानजक सीटें नहीं मिलीं तो कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ने के विकल्प पर भी गौर कर सकती है। हालांकि दोनों दल शुक्रवार को निर्णायक वार्ता के लिए आपसी बैठक को राजी हो गए। तमिलनाडु में द्रमुक की अगुआई वाला गठबंधन सत्ता की होड़ में है और इसीलिए स्टालिन सहयोगी दलों को ज्यादा सीटें देने का जोखिम नहीं उठाना चाहते।
डीएमके के प्रस्ताव पर राजी नहीं कांग्रेस
बताया जाता है कि द्रमुक ने कांग्रेस को 234 सदस्यीय विधानसभा के लिए पहले केवल 18 सीटों की पेशकश की, जो कांग्रेस को नागवार लगी। फिर तीन राउंड की बातचीत के बाद द्रमुक 22 सीटें तक देने को तैयार हो गया, मगर कांग्रेस इस पर राजी नहीं है। पिछले विधानसभा चुनाव में गठबंधन के तहत कांग्रेस को 41 सीटें मिली थीं। मौजूदा सियासी हकीकत के मद्देनजर कांग्रेस 30-31 सीटों के साथ राज्यसभा की एक सीट के फार्मूले पर मानने को तैयार है।
गठबंधन में सिरदर्दी बढ़ने के संकेत
कांग्रेस रणनीतिकारों ने द्रमुक पर जवाबी दबाव बनाने के लिए यह कहा है कि इससे कम पर सहमत होना पार्टी के सम्मान के अनुकूल नहीं होगा। हालांकि बिहार चुनाव में पार्टी के लचर प्रदर्शन के बाद ही कांग्रेस को राज्यों के गठबंधन में सिरदर्दी बढ़ने का संकेत मिल गया था। स्टालिन बिहार चुनाव के बाद सार्वजनिक तौर पर कांग्रेस को ज्यादा सीटों की अपेक्षा नहीं करने की सलाह दे चुके हैं।
बंगाल और असम को लेकर भी अंदरूनी विवाद
तमिलनाडु में सीटों की संख्या कांग्रेस की सिरदर्दी है, तो बंगाल में इंडियन सेक्युलर फ्रंट के कांग्रेस-वाममोर्चा गठबंधन में शामिल होने को लेकर पार्टी में अंदरूनी विवाद चल रहा है। असंतुष्ट खेमे के नेता आनंद शर्मा ने तो आइएसएफ के साथ गठबंधन को कांग्रेस की विचाराधारा के खिलाफ तक करार दिया है। इसी तरह असम के चुनाव में भाजपा की सत्ता को चुनौती दे रही कांग्रेस सूबे में बदरुद्दीन अजमल की पार्टी एआइयूडीएफ से गठबंधन को लेकर सियासी निशाने पर है। इन राज्यों में चुनाव अभियान जोर पकड़ने लगा है और जाहिर तौर पर कांग्रेस अभी गठबंधन की सिरदर्दी से ही जूझ रही है।