Political Crisis: राजस्थान में मचे घमासान पर पूरे देश की नजर, कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व जिम्मेदार
सचिन पायलट दिल्ली में बैठे हैं लेकिन केंद्रीय नेतृत्व की ओर से ऐसी कोई हरकत नहीं दिख रही जो सचिन को डिगा पाए।
प्रशांत मिश्र [ त्वरित टिप्पणी ]। आईने को झुठलाना क्या होता है यह कोई कांग्रेस के अघोषित मुखिया व सांसद राहुल गांधी से पूछे। कांग्रेस उजड़ती जा रही है। न सिर्फ नए व युवा बल्कि पुराने व अनुभवी नेता आगाह कर रहे हैं, गुहार लगा रहे हैं। विनती कर रहे हैं कि अब तो समझो, सनक पर नहीं विवेक के साथ चर्चा करो और कुछ ऐसा फैसला लो जो पार्टी के हितों के लिए सही हो, लेकिन नहीं। राहुल बदलने वाले नहीं। भले ही पार्टी खत्म हो जाए, लेकिन वह वही कहेंगे और वही करेंगे जो उनकी मर्जी। आखिर पार्टी तो उनकी है। और अगर ऐसे में भाजपा के नेताओं की ओर से यह कहा जाए कि वह चाहते हैं कि राहुल कांग्रेस में बने रहें तो शायद वह दिल से इसकी कामना करते हैं।
हाथ कंगन को आरसी क्या..। कोई भी राहुल गांधी के एक दो दिनों के ट्वीट निकालकर देख ले। चीन और कोविड..। जबकि पूरी दुनिया देख रही है कि चीन को भारत ने मजबूती के साथ झुकाया है और कोविड जैसी आपदा से निपटने में लगा है। केंद्र और राज्य मिलकर इस प्राकृतिक आपदा से निकलने की कोशिश में हैं। कांग्रेस समेत सभी दल जानते हैं कि अभी यह मुद्दा नहीं है। चीन पर बोलना खतरनाक है। इसीलिए राहुल, सोनिया गांधी व कांग्रेस के कुछ प्रवक्ताओं के अतिरिक्त किसी ने भी चीन पर इक्का-दुक्का मौका छोड़कर बयान नहीं दिया। हां, कांग्रेस के ही कुछ युवा नेताओं ने ट्वीट कर अपनी असहमति जरूर जताई थी। सर्जिकल स्ट्राइक, अनुच्छेद 370 जैसे मुद्दों पर भी पार्टी के अंदर मतभेद उभरा था।
आज राजस्थान जिस मोड़ पर खड़ा है उसके लिए सीधे तौर पर कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व जिम्मेदार है। आरोप लगाया जा रहा है कि भाजपा ने तोड़फोड़ शुरू कर दी है, लेकिन क्या यह किसी से छिपा है कि मध्य प्रदेश में कमलनाथ, दिग्विजय और ज्योतिरादित्य के बीच कितनी खींचतान थी। उधर राजस्थान में मुख्यमंत्री पद की कुर्सी पर सचिन पायलट के स्वाभाविक दावे के बावजूद अशोक गहलोत को बिठाकर खुद नेतृत्व ने ही लड़ाई का बिगुल फूंक दिया था। अगर इतिहास की बात करें तो सच्चाई यह है कि इंदिरा गांधी के बाद से ही कांग्रेस में नेतृत्व की क्षमता खत्म हो गई जो पार्टी को जोड़कर रख सके। कोई भी पार्टी, नेतृत्व और विचारधारा के धागे से जुड़ी रहती है। कांग्रेस में इन दोनों की शून्यता है और इसीलिए पार्टी जब-जब सत्ता से बाहर होती हो तो यह बिखरने लगती है। इतिहास के पन्नों को पलटकर देख लीजिए।
सचिन पायलट दिल्ली में बैठे हैं, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व की ओर से ऐसी कोई हरकत नहीं दिख रही जो सचिन को डिगा पाए। पांच साल पहले असम में भी ऐसा ही हुआ था, तब कांग्रेस के बड़े और प्रभावी नेता .... राहुल से मिलने पहुंचे और राहुल अपने कुत्ते के साथ व्यस्त थे। आखिर, राहुल को ऐसा करने के लिए क्या भाजपा ने कहा था। या फिर चार महीने पहले ज्योतिरादित्य से और आज सचिन के साथ ऐसा व्यवहार करने के लिए क्या भाजपा नेताओं ने कहा है? कपिल सिब्बल और शशि थरूर जैसे नेता आगाह कर रहे हैं और घंटी बजा रहे हैं। जागो, कुछ करो वरना अस्तबल से घोड़े भाग जाएंगे। पता नहीं इसका कोई असर हुआ है या नहीं। नए सांसद कीर्ति चिदंबरम गूगल की ग्रोथ का हवाला देते हुए परोक्ष संदेश देते हैं कि गूगल इसलिए बढ़ा क्योंकि वहां क्षमता और प्रतिभा को सम्मान दिया जाता है। क्या कीर्ति को नहीं पता कि गूगल में नेतृत्व की क्षमता और प्रतिभा क्या है। कांग्रेस एक परिवार से बाहर नहीं निकल पा रही है जबकि राहुल गांधी लोकसभा के बाद अपनी असफलता स्वीकार कर पर्दे के पीछे जा चुके हैं और वहीं से रस्सी खींच रहे हैं। सोनिया गांधी अस्वस्थ हैं और प्रियंका के बारे में परिवार ने ही फैसला लेने में देर कर दी। अब उनका करिश्मा भी खत्म हो चुका है। यही परिवारवाद राजस्थान में गहलोत भी लाना चाह रहे हैं जिसके खिलाफ बगावत हुई है। कांग्रेस नेतृत्व तो अब नहीं जागेगा, हां कांग्रेस जागे, उसके लोग जागें तो आगे की कुछ राह बन सकती है।