आज खुद पर फैसला सुनाएगा सुप्रीम कोर्ट, CJI दफ्तर को आरटीआइ के दायरे में लाने का मामला

प्रधान न्यायाधीश के दफ्तर को सूचना अधिकार कानून के तहत लाने की मुहिम आरटीआइ कार्यकर्ता एससी अग्रवाल ने शुरू की थी।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Wed, 13 Nov 2019 01:23 AM (IST) Updated:Wed, 13 Nov 2019 07:03 AM (IST)
आज खुद पर फैसला सुनाएगा सुप्रीम कोर्ट, CJI दफ्तर को आरटीआइ के दायरे में लाने का मामला
आज खुद पर फैसला सुनाएगा सुप्रीम कोर्ट, CJI दफ्तर को आरटीआइ के दायरे में लाने का मामला

नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश का दफ्तर सूचना अधिकार कानून (आरटीआइ) के दायरे में आना चाहिए या नहीं इस मुद्दे पर बुधवार को फैसला सुनाया जाएगा। उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई की अगुआइ में पांच जजों की संविधान पीठ दोपहर दो बजे फैसला सुनाएगी। जस्टिस एनवी रमना, डीवाई चंद्रचूड़, दीपक गुप्ता और संजीव खन्ना संविधान पीठ में शामिल अन्य जज हैं। फैसला सुनाए जाने की नोटिस मंगलवार दोपहर बाद सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर सार्वजनिक कर दी गई।

संविधान पीठ ने चार अप्रैल को फैसला सुरक्षित रख लिया था

संविधान पीठ ने चार अप्रैल को सुनवाई पूरी करने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुनवाई पूरी करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा था कि कोई भी अपारदर्शी प्रणाली नहीं चाहता। लेकिन, पारदर्शिता के नाम पर न्यायपालिका को नष्ट नहीं किया जा सकता।

सीजेआई के दफ्तर को आरटीआइ के दायरे में लाने का मामला

सुप्रीम कोर्ट के महासचिव और केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी ने दिल्ली हाई कोर्ट और केंद्रीय सूचना आयोग के आदेशों को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। दिल्ली हाई कोर्ट में तीन जजों की बेंच ने सुप्रीम कोर्ट की इस दलील को मानने से इन्कार कर दिया था कि प्रधान न्यायाधीश के दफ्तर को आरटीआइ के दायरे में लाने से न्यायपालिका की स्वतंत्रता को नुकसान पहुंचेगा।

क्या था दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला

10 जनवरी, 2010 को अपने फैसले में दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा था कि भारत के प्रधान न्यायाधीश का दफ्तर सूचना अधिकार कानून के दायरे में आता है। अदालत ने कहा था कि न्यायिक स्वतंत्रता किसी न्यायाधीश का विशेषाधिकार नहीं है। बल्कि यह एक जिम्मेदारी है, जो उसे दी गई है। इस आदेश को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन के लिए निजी झटका माना गया था, जिन्होंने आरटीआइ के तहत जजों के सूचना देने से इन्कार कर दिया था।

इस तरह उठा मामला

प्रधान न्यायाधीश के दफ्तर को सूचना अधिकार कानून के तहत लाने की मुहिम आरटीआइ कार्यकर्ता एससी अग्रवाल ने शुरू की थी। उनके वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि हालांकि उच्चतम न्यायालय अपने मामलों पर फैसला नहीं देता है, लेकिन इस मामले में वह अनिवार्यता कानून के तहत सुनवाई कर रहा है। सूचना अधिकार कानून के दायरे में जजों को लाने की अनिच्छा को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए उन्होंने सवाल उठाया था कि क्या न्यायाधीश किसी दूसरे ब्रह्माांड से आते हैं?

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