जानिए- आरक्षण, समलैंगिकता, धारा 370 जैसे ज्वलंत मुद्दों पर क्या बोले संघ प्रमुख

भविष्य का भारत कार्यक्रम में आरक्षण, धारा 377, धारा 370, एससी-एसटी एक्ट, अल्पसंख्यकों, संघ व BJP के राजनीतिक संबंधों पर बोले RSS प्रमुख मोहन भागवत।

By Nancy BajpaiEdited By: Publish:Thu, 20 Sep 2018 08:11 AM (IST) Updated:Thu, 20 Sep 2018 08:17 AM (IST)
जानिए- आरक्षण, समलैंगिकता, धारा 370 जैसे ज्वलंत मुद्दों पर क्या बोले संघ प्रमुख
जानिए- आरक्षण, समलैंगिकता, धारा 370 जैसे ज्वलंत मुद्दों पर क्या बोले संघ प्रमुख

नई दिल्ली (जेएनएन)। संघ के तीन दिवसीय कार्यक्रम 'भविष्य का भारत' के अंतिम दिन बुधवार को आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण, धारा 370, समलैंगिगता, अल्पसंख्यकों, एसी-एसटी एक्ट जैसे ज्वलंत मुद्दों पर पूछे गए सवालों के जवाब दिए।

सवाल- आरक्षण पर संघ का क्या मत है और इसे कब तक जारी रखना चाहिए? अल्पसंख्यकों और क्रीमी लेयर को क्या आरक्षण मिलना चाहिए?

सामाजिक विषमता को दूर करने के लिए संविधान सम्मत आरक्षण को संघ का पूरा समर्थन है। जहां तक सवाल है कि आरक्षण कब तक चलेगा तो इसे वहीं तय करेंगे जिन्हें आरक्षण मिला है। संघ का मत है कि तब तक इसको जारी रहना चाहिए। असल में समस्या आरक्षण नहीं बल्कि इस पर सियासत है, जिसके कारण इतना विवाद हो रहा है। अपने समाज में एक अंग पीछे है। शरीर तब स्वस्थ कहा जाता है जब सभी अंग दुरुस्त रहें। अगर शरीर आगे जा रहा है, पैर पीछे रह जाए तो उसे पैरालैसिस कहा जाता है। समाज के सभी अंगों को बराबरी में लाने के लिए आरक्षण जरूरी है। हजार वर्ष से यह स्थिति है कि हमने समाज के एक अंग को विफल बना दिया है। जरूरी है कि जो ऊपर हैं वह नीचे झुकें और जो नीचे हैं वे एड़ियां उठाकर ऊपर हाथ से हाथ मिलाएं। इस तरह जो गड्ढे में गिरे हैं उन्हें ऊपर लाएंगे। समाज को आरक्षण पर इस मानसिकता से विचार करना चाहिए। सामाजिक कारणों से एक वर्ग को हमने निर्बल बना दिया। स्वस्थ समाज के लिए एक हजार साल तक झुकना कोई महंगा सौदा नहीं है। समाज की स्वस्थता का प्रश्न है, सबको साथ चलना चाहिए।

सवाल- एससी/एसी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर समाज में विभाजन की स्थिति है? इस पर प्रतिक्रिया और आक्रोश निर्मित हुआ है। क्या संसद को इसे बदलना चाहिए था? संघ इसे कैसे लेता है?

सामाजिक पिछड़ेपन व जातिगत अहंकार के कारण अत्याचार की परिस्थिति बनी। उससे निपटने के लिए यह अत्याचार निरोधक कानून बना। संघ का मत है कि यह ठीक से लागू होना चाहिए और इसका दुरुपयोग नहीं होना चाहिए। लेकिन यह केवल कानून से नहीं होगा। समाज में सद्भाव व समरसता के भाव से होगा। अत्याचार, अत्याचार है। चाहे वह किसी का भी हो। इसे खत्म करने के लिए सद्भावना जगाने की आवश्यकता है। संघ की इच्छा है कि कानून का संरक्षण हो। कानून व शास्त्र से कोई अस्पृश्यता नहीं आई है यह समाज में दुर्भावना के कारण आई है जिसे सद्भावना से ही दूर किया जा सकता है। संघ के स्वयंसेवक काम कर रहे हैं। सद्भावना बैठकें आयोजित होती हैं।

सवाल- समलैंगिकता व धारा-377 पर संघ का क्या मत है? किन्नरों की सामाजिक स्थिति पर क्या नजरिया है?

समाज का प्रत्येक व्यक्ति, अपनी भाषा, जाति, अपने संप्रदाय के साथ समाज का एक अंग है। उसमें कुछ विशिष्टता के साथ कुछ लोग समाज में हैं। उनकी व्यवस्था करने का काम समाज ने पहले भी किया है, आगे भी करना चाहिए। उनके लिए कोई व्यवस्था बने। ताकि स्वस्थ्य समाज बन सके। यह हो हल्ला करने से नहीं होगा। इन्हें सहृदयता से देखने की बात है। जितना उपाय हो करना चाहिए। या जो जैसा है उसे स्वीकार करें। ताकि वे समाज से अलग-थलग न हो जाएं। समय बदला है, ऐसे में उन पर विचार करना होगा। इसलिए सरलता से इन सब को देखते हुए उनकी व्यवस्था कैसे की जाए, यह समाज को देखना चाहिए।

सवाल- अल्पसंख्यकों को जोड़ने के विषय में संघ का क्या सोचता है। ‘बंच ऑफ थॉट्स’ में जो विचार हैं, उनसे मुस्लिम समाज में भय है?

अल्पसंख्यक की परिभाषा अभी स्पष्ट नहीं है। जहां तक धर्म और भाषा की बात है यह स्वतंत्रता से पहले अंग्रेजों के आने से पहले नहीं थी। तमाम पंथ के लोग थे, लेकिन विभिन्ना के साथ सब एक थे। अब यह बात जरूर है कि दूरियां बढ़ी हैं, लेकिन मैं मानता हूं कि अपने समाज के भाइयों को, जो बिखर गए हैं, उनको जोड़ना है। हम सभी एक देश की ही संतान हैं, भाई-भाई रहें। सब अपने हैं। केवल यह भाव रहे कि जो दूर गए हैं उन्हें जोड़ना है। मुस्लिम समाज में भय है तो उनसे आग्रह है कि आप आएं और संघ को अंदर से देखें। वास्तविकता तो यह है कि जिस संघ शाखा के नजदीक मुस्लिम बस्ती है, वे वहां ज्यादा सुरक्षित महसूस करते हैं। हमारा आह्वान राष्ट्रीयता का है। मातृ भक्ति का है। यही हिंदुत्व है। संघ में जो आते हैं, उनके विचार बदल जाते हैं। आप आइए देखिए। अगर कोई बात गलत है तो कहिए। संस्कृति, भूमि व पूर्वज हम सबके एक हैं। परंपरा से, राष्ट्रीयता से और भूमि से हम सब हिंदू हैं। जहां तक ‘बंच ऑफ थॉट्स’ की बात है तो गुरुजी के सामने जैसी परिस्थिति थी, वैसा विचार हुआ, लेकिन संघ बंद संगठन नहीं है। ऐसा नहीं है कि जो उन्होंने बोल दिया, वहीं लेकर चले। हम अपनी सोच में भी परिवर्तन करते हैं। हेडगेवार ने एक भी बात नहीं बताई, विचार बताए। तरुण ने विचार किया तब जाकर उसे अपनाया गया।

सवाल- अनुच्छेद 370 व अनुछेद 35ए पर क्या मत है? घाटी के युवाओं में राष्ट्रभाव जगाने के लिए संघ क्या कर रहा है?

अनुच्छेद-370 और 35ए नहीं रहना चाहिए यह संघ का स्पष्ट मत है। यह कई बार भाषणों में कहा है। पुस्तिकाओं में उपलब्ध है। जम्मू, कश्मीर व लद्दाख में भेदभाव मुक्त विकास उन्मुख प्रशासन चल रहा है क्या? उस पर विचार करना चाहिए। भारत की एकता अखंडता व सुरक्षा के लिए शासन-प्रशासन क्या करेगा, यह वह तय करेगा। जहां तक भटके युवाओं को मुख्य धारा से जोड़ने का सवाल है तो संघ इस पर काम कर रहा है। संघ से निकले स्वयंसेवक वहां सेवा कार्य चला रहे हैं। एकल विद्यालय व विद्यालय हैं। जहां वंदेमातरम के साथ जन-गण-मन भी होता है। तिरंगा फहराया जाता है। छात्रों के साथ अभिभावक भी आते हैं। अभी प्रयास शुरू किए हैं तो फल आने में समय तो लगेगा। कश्मीर के लोगों का शेष भारत के साथ घुलना मिलना बढ़ना चाहिए।

सवाल- संघ की दृष्टि में प्रमुख आंतरिक सुरक्षा चुनौती क्या है? लोगों में देशद्रोह का डर क्यों नहीं है?

आंतरिक फसाद में समाज से समर्थन न मिले इसके लिए विकास सब तक पहुंचना चाहिए। सुरक्षा के लिए चुनौती देने वालों का बंदोबस्त कड़ाई से होना चाहिए। अगर समाज को भीतर से यह चुनौती मिल रही है और बोली से बात नहीं बन रही, गोली से हो सकती है तो गोली उस तरफ जानी चाहिए, जिससे भारत एक रहे। इसमें आगे पीछे होता है, उसके परिणाम तात्कालिक हैं। विकास सब तक पहुंचाना और अपनत्व का भाव सबमें हो। देखना होगा कि देशद्रोह का समर्थन करने वाले अपने समाज से ही खड़े न हों। ऐसी बात करने वाले हतोत्साहित हों।

सवाल- समान नागरिक संहिता के संबंध में संघ का क्या मत है?

संविधान का मार्गदर्शक तत्व तो यही है कि एक कानून के अंतर्गत देश के सभी लोग आएं। इसके लिए सरकार की ओर से समाज में एक मत बनाना होगा। धीरे-धीरे इसे लागू करना चाहिए।

सवाल- नोटा को लेकर आपका क्या मत है। क्या रूस और अमेरिका के राष्ट्रपति की तरह क्या यहां सीधे चुनाव हों?

भारत की प्रणाली किसी देश से आयातित नहीं, बल्कि भारत की तरह ही हो, इसमें कौन सी पद्धति लागू हो यह यहां के लोग तय करें। वैसे अभी तक तो सब ठीक चल रहा है। विश्व भी कहता है कि अपेक्षा नहीं थी, लेकिन सर्वाधिक यशस्वी लोकतंत्र भारत है। जहां तक सुधार की बात है तो वह हो और यह हो भी रहे हैं। वैसे नोटा का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। क्योंकि नोटा में सबसे खराब प्रत्याशी के चयन की आशंका बढ़ जाती है। तो जितने प्रत्याशी है उसमें जो पसंद है उसमें चुनाव करें। राजनीति में 100 प्रतिशत अच्छे लोगों का मिलना कठिन काम है।

सवाल- अगर संघ और भाजपा में राजनीतिक संबंध नहीं है तो संगठन मंत्री संघ ही क्यों देता है? क्या संघ ने दूसरे दलों को समर्थन किया है? श्मशान, कब्रिस्तान और भगवा आतंकवाद जैसी सियासत का क्या हल है?

संगठन मंत्री जो मांगते हैं संघ उसको देता है। अभी तक और किसी ने मांगा नहीं है। मांगेंगे तो विचार करेंगे, काम अच्छा कर रहे होंगे तो जरूर देंगे। लेकिन 93 साल में संघ ने किसी दल का समर्थन नहीं किया। केवल नीति का समर्थन करता है, ऐसे में संघ की नीति का समर्थन करने वाले संघ की शक्ति का फायदा उठा जाते हैं। जब आपातकाल के खिलाफ लड़े तो बाबू जगजीवन राम, मार्क्‍सवादी गोपालन जैसे लोगों का समर्थन किया। केवल एक चुनाव ऐसा हुआ तो राममंदिर के पक्ष में केवल भाजपा ही थी तो उसको लाभ मिला। नीति का पुरस्कार किया। हमारा पुरस्कार कैसे ले जाना है वह राजनीतिक दल सोचें। राजनीति केवल सत्ता के लिए होगी तो श्मशान, कब्रिस्तान होंगे अन्यथा गांधी व लोक नारायण के अनुसार लोक कल्याण वाली राजनीति होगी तो श्मशान वाली सियासत खत्म हो जाएगी।

सवाल- स्वदेशी व स्वराज पर संघ का क्या मत है?

जब तक हम स्वदेशी को नहीं अपनाएंगे तब तक देश का वास्तविक विकास नहीं होगा, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि पूरे विश्व से आंखें बंद कर ली जाएं। बल्कि जो अपने देश में बनता है वो बाहर से नहीं लाना है। जो अपने देश में बनता नहीं लेकिन जीवन के लिए आवश्यकता है तो उसे लाएंगे। यह स्वदेशी का भाव है। ज्ञान व तकनीकी बाहर से लेंगे और हम प्रयास करेंगे कि सारा सामान हमारे यहां बने। यह जो आदर्श की बात है उसमें जो परिस्थिति मिली है उसको लेकर काम करना पड़ेगा। स्वदेशी करना है लेकिन खजाना नहीं है तो पैसा तो कहीं से लाना पड़ेगा।

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