Jammu Kashmir: जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक गतिरोध तोड़ने के लिए समय माकूल, जानें- 24 जून की बैठक का संदर्भ

सुरक्षा बलों की चौकसी से सीमा पार से आतंकियों की घुसपैठ भी मुश्किल हो गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 24 जून को जम्मू-कश्मीर के सभी राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ बैठक को इसी संदर्भ में देखा जा रहा है।

By Sanjeev TiwariEdited By: Publish:Mon, 21 Jun 2021 09:37 PM (IST) Updated:Mon, 21 Jun 2021 09:37 PM (IST)
Jammu Kashmir: जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक गतिरोध तोड़ने के लिए समय माकूल, जानें- 24 जून की बैठक का संदर्भ
पीएम मोदी की 24 जून को जम्मू-कश्मीर के सभी राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ होगी बैठक (फाइल फोटो)

नीलू रंजन, नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर में आतंकी गतिविधियों के न्यूनतम स्तर पर पहुंचने को देखते हुए मौजूदा समय को राजनीतिक प्रक्रिया की शुरुआत के लिए सबसे सही माना जा रहा है। अनुच्छेद 370 निरस्त होने और संघ शासित प्रदेश बनने के बाद न सिर्फ आतंकी घटनाएं न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई हैं, बल्कि नए भर्ती होने वाले आतंकियों की संख्या में भारी कमी देखी जा रही है। यही नहीं, सुरक्षा बलों की चौकसी से सीमा पार से आतंकियों की घुसपैठ भी मुश्किल हो गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 24 जून को जम्मू-कश्मीर के सभी राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ बैठक को इसी संदर्भ में देखा जा रहा है।

अनुच्छेद 370 निरस्त होने के बाद जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद किस कदर दम तोड़ रहा है, ये आकंड़ों से साफ हो जाता है। सुरक्षा एजेंसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि अनुच्छेद 370 निरस्त होने के बाद अचानक आतंकी गतिविधियों में तेजी आई थी। आतंकी घटनाओं के साथ-साथ नए भर्ती होने वालों की संख्या में भी इजाफा हुआ था। एक साल के बाद तस्वीर बदल चुकी है। 2019 में जम्मू-कश्मीर में कुल 211 आतंकी घटनाएं हुई थीं और 155 आतंकी मारे गए थे। उस साल 155 स्थानीय युवक आतंकी संगठनों में भर्ती हुए थे। वहीं 2020 में आतंकी घटनाओं की संख्या बढ़कर 238 हो गईं और सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में कुल 211 आतंकी मारे गए थे। आतंकी संगठन में शामिल होने वाले युवाओं की संख्या भी बढ़कर 163 हो गई थी।

आतंकी घटनाएं और नए आतंकियों की भर्ती न्यूनतम स्तर प

वहीं 2021 में स्थिति बदली हुई है। 20 जून तक यानी लगभग छह महीने में घाटी में महज 45 आतंकी घटनाएं दर्ज की गई हैं और इस दौरान केवल 43 युवाओं ने आतंक का रास्ता चुना। इस दौरान मुठभेड़ में कुल 53 आतंकी मारे गए हैं। मुठभेड़ में कम आतंकियों के मारे जाने की वजह स्पष्ट करते हुए सुरक्षा एजेंसी के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि सीमा पार से आतंकियों की घुसपैठ लगभग शून्य हो गई है। सीमा पर सुरक्षा बलों की कड़ी चौकसी है तो आतंकियों की घुसपैठ के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले सुरंगों को एक-एक कर नष्ट किया जा रहा है। सीमा पार से आतंकियों की घुसपैठ रुकने और स्थानीय स्तर पर कम आतंकियों की भर्ती का परिणाम आतंकी घटनाओं और मुठभेड़ में मारे जाने वाले आतंकियों की संख्या में कमी के रूप में दिख रहा है। बड़ी संख्या में आतंकी आत्मसमर्पण करने लगे हैं, जो दो साल पहले तक नगण्य था। उनके अनुसार इस साल अभी तक 17 आतंकी सुरक्षा बलों के सामने आत्मसमर्पण कर चुके हैं।

आतंक से मुक्ति के बाद सरकार पर आम लोगों का भरोसा बढ़ाना जरूरी

एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि सुरक्षा एजेंसियां अपने काम में काफी हद तक सफल साबित हो रही हैं, लेकिन सरकार पर आम आदमी का भरोसा बढ़ाने के लिए राजनीतिक गतिविधियों को बढ़ावा देना जरूरी है। वैसे पिछले साल पंचायतों और नगर निकायों और उसके बाद बीडीसी और डीडीसी के चुनाव से स्थानीय स्तर पर राजनीतिक गतिविधियां शुरू हो चुकी हैं। लेकिन विभिन्न राजनीतिक दलों को इस प्रक्रिया में शामिल करने से इसे मजबूती मिलेगी। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री के साथ बैठक में चाहे जो भी नतीजा निकले, लेकिन सभी राजनीतिक दलों की शिरकत मात्र से आम जनता के बीच सकारात्मक संदेश जाना निश्चित है।

chat bot
आपका साथी