कांग्रेस ने गहलोत पर जताया भरोसा, लंबा प्रशासनिक अनुभव और जादूगरी आई काम

कांग्रेस आलाकमान ने राजस्‍थान में एक बार फिर से कमान पूर्व सीएम अशोक गहलोत को सौंप दी है। इसकी एक बड़ी वजह है कि उन्‍हें लंबा प्रशासनिक अनुभव है और उन्‍हें ऐसे नेताओं को काबू करने की कला बखूबी आती है जो बिदक सकते हैं।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Fri, 14 Dec 2018 04:37 PM (IST) Updated:Sat, 15 Dec 2018 06:57 AM (IST)
कांग्रेस ने गहलोत पर जताया भरोसा, लंबा प्रशासनिक अनुभव और जादूगरी आई काम
कांग्रेस ने गहलोत पर जताया भरोसा, लंबा प्रशासनिक अनुभव और जादूगरी आई काम

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। कांग्रेस आलाकमान ने राजस्‍थान में एक बार फिर से कमान पूर्व सीएम अशोक गहलोत को सौंप दी है। इसकी एक बड़ी वजह है कि उन्‍हें लंबा प्रशासनिक अनुभव है और उन्‍हें ऐसे नेताओं को काबू करने की कला बखूबी आती है जो बिदक सकते हैं। इन सभी के बीच उनसे जुड़ी कुछ और भी बातें हैं जो बहुत से लोग नहीं जानते हैं। बेहद कम लोगों को इस बात का पता है कि वह असल जिंदगी में जादूगर रहे हैं। उनके पिता भी देश के जाने-माने जादूगर थे। आज हम आपको उनसे जुड़ी कुछ ऐसी ही खास बातें बताएंगे। 

राजस्‍थान में कांग्रेसी नेता अशोक गहलोत बड़े कद के नेता हैं। राज्‍य में विधानसभा चुनाव की तैयारियों में वह काफी समय से लगे थे। अपने राजनीतिक जीवन में वह कमाल के जादूगर हैं। निजी जीवन की बात करें तो उनके पिता बाबू लक्ष्मण सिंह गहलोत देश के जाने-माने जादूगर थे। अशोक गहलोत ने अपने पिता से उन्‍होंने यह फन सीखा। अपने स्‍कूली दिनों में उन्‍होंने इसका प्रदर्शन भी किया। इन दिनों में जेब में फूल डालकर रुमाल निकालने और कबूतर उड़ाने की कला में वह माहिर थे। 

अशोक गहलोत ने सरदारपुरा सीट से जीत दर्ज की है, यहीं पर उनका पुश्‍तैनी घर भी है। यह विधानसभा क्षेत्र जोधपुर में आता है। यहीं के पुश्‍तैनी घर में वर्ष 1951 में उनका जन्म भी हुआ। इस घर के एक कमरे को वो अपने लिए बेहद लकी मानते हैं। इसकी खास बात ये कि वे जब भी मतदान के लिए जाते हैं तो यहीं से जाते हैं। यहीं के जैन वर्धमान स्कूल में उन्‍होंने पांचवीं तक पढ़ाई की थी। 1962 में उन्‍होंने छठी में सुमेर स्कूल में दाखिला लिया।   

  

पढ़ाई के दौरान वह स्काउट और एनसीसी के जरिए होने वाली समाज सेवा में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते थे। इसके अलावा वाद-विवाद करने में भी वह माहिर हैं। उनके सियासी सफर की बात करें तो छात्र जीवन उनका रुझान कहीं न राजनीति की तरफ हो चुका था। वह कॉलेज के छात्रसंघ में उपमंत्री भी रहे। राजनीति में एंट्री से पहले वह डॉक्‍टर बनना चाहते थे। इसी हसरत से उन्‍होंने जोधपुर विश्वविद्यालय में दाखिला भी लिया था, लेकिन उन्‍हें कामयाबी नहीं मिली। लिहाजा उन्‍हें बीएससी की डिग्री से संतोष करना पड़ा। इसके बाद जब उनके मन में पोस्ट ग्रेजुएशन करने का ख्‍याल आया तो उन्‍होंने इसके लिए अर्थशास्‍त्र को चुना। इसके बाद उन्‍होंने छात्रसंघ का चुनाव भी लड़ा। बहरहाल, कॉलेज की पढ़ाई के साथ उन्‍होंने राजनीति का ककहरा भी अब तक सीख लिया था। 

लेकिन कॉलेज के बाद रोजगार का संकट उनके लिए किसी बड़ी चुनौती की तरह था। अशोक गहलोत ने 1972 में बिजनेस में हाथ आजमाया। जोधपुर से पचास किलोमीटर दूर  उन्‍होंने खाद-बीज की दुकान खोली लेकिन यह नहीं चली। महज डेढ़ साल में उन्‍हें यहां से काम समेटना पड़ा। गहलोत हमेशा से ही महात्‍मा गांधी से काफी प्रभावित थे। 1971 में गहलोत ने बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के वक्त गांधीवादी सुब्बाराव के शिविरों में सेवा भी की। उसके बाद वर्धा में गांधी सेवा ग्राम में 21 दिन की ट्रेनिंग ली। उनसे जुड़े लोग भी मानते हैं कि सादगी में उनका कोई सानी नहीं है।  

कांग्रेस के साथ जुड़ाव को लेकर भी उनकी कहानी काफी दिलचस्‍प है। देश में जब इमरजेंसी लागू की गई तो उसके बाद होने वाले चुनाव में कांग्रेस नेता अपनी हार से इस कदर चिंतित थे कि उसके टिकट पर लड़ने को भी तैयार नहीं थे। ऐसे में जब गहलोत को इसका ऑफर मिला तो उन्‍होंने बिना कुछ ज्‍यादा सोचे इसपर अपनी हामी भर दी। चुनाव लड़ने के लिए पैसों का जुगाड़ भी उन्‍होंने अपनी मोटरसाइकिल बेच कर किया था। 1980 में जब वह पहली बार लोकसभा के लिए चुने गए उस वक्‍त उन्‍होंने अपने प्रचार के लिए खुद ही अपने पोस्‍टर चिपकाए। इस दौर में वह लोकसभा के लिए चुने जाने वाले देश के सबसे युवा सांसद थे। 

राजस्थान के कद्दावर नेताओं के बीच सीधे-सादे और मिलनसार अशोक गहलोत से इंदिरा गांधी इतनी प्रभावित हुईं कि 1982 में उन्हें कैबिनेट में मंत्री बना दिया। 1984 में गहलोत राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सबसे युवा अध्यक्ष बना दिए गए। राजस्‍थान में गहलोत ने पार्टी में जान फूंकने के लिए जमीनी स्‍तर पर काफी काम किया।  इंदिरा गांधी के बाद गहलोत राजीव गांधी के भी काफी करीब थे। हालांकि राहुल गांधी के समय में सीपी जोशी को तवज्‍जो दिए जाने के बाद उनके मन में कुछ नाराजगी जरूर आई, लेकिन इसके बाद भी वह पार्टी को आगे बढ़ाने का काम करते रहे।  2008 में मुश्किल की घड़ी में वह कांग्रेस के लिए बड़ी संजीवनी भी लेकर आए और  बीएसपी के सभी विधायकों को कांग्रेस में शामिल कराकर सबको हैरान कर दिया। 

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