ड्रैगन अफगान में चाह रहा पांव पसारना, चीन से दूरी बना रहे देशों के साथ भारत अपने रिश्तों को बनाए सुदृढ़

अभी चीन अफगानिस्तान में पांव ज्यादा पसारना चाह रहा है। ऐसे वक्त में हमें चीन से दूरी बना रहे देशों के साथ अपने रिश्तों को सुदृढ़ करना होगा। सहयोगी देशों के साथ सहभागिता बढ़ाने की नीति कारगर साबित होगी।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Mon, 30 Aug 2021 01:15 PM (IST) Updated:Mon, 30 Aug 2021 01:16 PM (IST)
ड्रैगन अफगान में चाह रहा पांव पसारना, चीन से दूरी बना रहे देशों के साथ भारत अपने रिश्तों को बनाए सुदृढ़
तालिबान के आने के बाद दोनों देशों के व्यापारिक संबंधों पर निश्चित रूप से असर पड़ेगा।

शशांक। वर्तमान हालात को देखते अफगानिस्तान में यदि कोई देश भूमिका निभा सकता है तो उसमें निकटवर्ती ईरान, पाकिस्तान और मध्य एशिया के देशों के अलावा चीन शामिल हैं। भारत की भूमिका वहां सरकार बनने के बाद शुरू होगी। हालांकि यह काफी हद तक अफगानिस्तान की भावी सरकार की पालिसी पर निर्भर करेगा। तालिबान के भीतर जिस तरह से अलग-अलग गुट सामने आए हैं, इससे उनमें एक राय बनने पर भी संशय है।

अफगानिस्तान की भावी सरकार दूसरे देशों को विश्वास में लेने और उनके नागरिकों को सुरक्षा देने का भरोसा दिला पाती है तो भारत वहां चल रहे अपने प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने की बात कर सकता है। अफगानिस्तान के साथ भारत के पुराने ताल्लुकात रहे हैं। पिछले कुछ वर्षो में भारत ने अफगानिस्तान में निवेश बढ़ाया है। अपने इन कदमों से भारत का रुख अफगान लोगों की मदद करना ही रहा है।

मौजूदा हालात का तात्कालिक असर अफगानिस्तान पर ही अधिक होगा। हालांकि अप्रत्यक्ष रूप से कई प्रकार के द्विपक्षीय नफा-नुकसान से इन्कार नहीं किया जा सकता। अफगानिस्तान की युवा पीढ़ी का भारत के साथ पढ़ने-पढ़ाने का संबंध रहा है। वहां के युवाओं के लिए भारत शिक्षा के हब की तरह है। एक हजार अफगान युवाओं को भारत हर साल स्कालरशिप देता है। करीब इतने ही युवा अपने खर्चो से पढ़ने के लिए हमारे देश आते हैं। इस तरह पिछले पांच साल में करीब एक लाख अफगान युवा भारत में रहकर शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं। अफगानिस्तान का करीब 50 प्रतिशत कारोबार भारत के साथ रहा है। एक दौर ऐसा भी था जब अफगानिस्तान का 80 फीसद तक कारोबार भारत के साथ ही होता था। तालिबान के आने के बाद दोनों देशों के व्यापारिक संबंधों पर निश्चित रूप से असर पड़ेगा। देखना होगा कि अफगानिस्तान इसे किस तरह आगे बढ़ाता है।

तालिबान ने दूसरे देशों पर अपनी विचारधारा को नहीं फैलाने का एलान किया है। फिलहाल उसकी इस बात को माना जा सकता है, लेकिन तालिबान के साथ कुछ लोग पाकिस्तान के आतंकी संगठनों से हैं। जैसा तालिबान कहता रहा है कि दस हजार के करीब लोग जैश-ए-मोहम्मद व लश्कर-ए-तैयबा के उनके यहां आए हैं। आइएसआइ के बहुत सारे लोग भी वहां हैं। कहा जा रहा है कि इन लोगों ने अफगानिस्तान के रक्षा व सुरक्षा मंत्रालय को अपने अधीन लेने की कोशिश की है।

इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि पाकिस्तान से गए लोग वहां पर भारत व दूसरे देशों को लेकर अपनी विचारधारा लागू कराने का प्रयास करेंगे। इस मामले में हमें सावधान रहना होगा। पिछले कुछ वर्षो में पाकिस्तान को हम नियंत्रित करने में सफल रहे हैं। इस पालिसी को हमें आगे बढ़ाना होगा। पाकिस्तान पर दबाव व नजर बनाकर रखनी होगी, ताकि वह अफगानिस्तान के जरिये भारत या दूसरे देशों के खिलाफ आतंकवाद को फैलाने की कोशिश न कर पाए। भारत विविध धर्मो को मानने वालों का लोकतांत्रिक देश है। हमें तालिबान के मौजूदा हालात से विचलित हुए बगैर लोकतांत्रिक तरीके से अपनी आर्थिक व सामाजिक मजबूती की दिशा में आगे बढ़ना होगा।

[पूर्व विदेश सचिव]

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