अफगानिस्‍तान पर रूस और चीन खेल रहे डबल गेम, तालिबान से यारी लेकिन अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कर रहे दिखावा

तालिबान पर रूस और चीन अपना दोहरा गेम जारी रखे हुए हैं। एक तरफ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर दोनों तालिबान की सत्ता में सभी वर्गों को हिस्सेदारी देने की बात करते हैं लेकिन दूसरी तरफ जब इनके अधिकारी जब तालिबान के प्रतिनिधियों से मिलते हैं तो इन मुद्दों को नहीं उठाते।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Publish:Sat, 18 Sep 2021 09:29 PM (IST) Updated:Sun, 19 Sep 2021 12:29 PM (IST)
अफगानिस्‍तान पर रूस और चीन खेल रहे डबल गेम, तालिबान से यारी लेकिन अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कर रहे दिखावा
अफगानिस्‍तान में तालिबान को लेकर रूस और चीन अपना दोहरा गेम जारी रखे हुए हैं।

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। तालिबान को लेकर भारत ने तो अपना दृष्टिकोण साफ कर दिया है लेकिन रूस और चीन अपना दोहरा गेम जारी रखे हुए हैं। एक तरफ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ये दोनों देश तालिबान की सत्ता में सभी वर्गों को हिस्सेदारी देने और अफगानिस्तान की जमीन को आतंकवाद से मुक्त रखने की बात करते हैं लेकिन दूसरी तरफ जब इनके अधिकारी तालिबान सरकार के प्रतिनिधियों से मुलाकात करते हैं तो इन मुद्दों को नहीं उठाते। उलटे चीन और रूस की तरफ से तालिबान को वक्त देने और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को उनके साथ मिल कर काम करने की अपील की जा रही है।

एससीओ की बैठक में यह रहा रुख

पिछले एक हफ्ते में ब्रिक्स के मंच पर और उसके बाद शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में इन दोनों देशों का यह रुख सामने आ चुका है। पहले नौ तारीख को ब्रिक्स देशों के शिखर सम्मेलन के बाद जारी साझा घोषणा पत्र में साफ तौर पर कहा गया है कि अफगानिस्तान को आतंकवाद की शरणस्थल नहीं बनने दिया जाएगा। साथ ही अफगानिस्तान की जमीन का आतंकवादियों द्वारा दूसरे देशों के खिलाफ इस्तेमाल नहीं करने दिया जाएगा।

आतंकवाद मुक्त अफगानिस्तान का समर्थन

कहने की जरूरत नहीं कि यह साझा घोषणा पत्र ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के बीच विमर्श के बाद ही जारी किया गया होगा। इसके बाद शनिवार को शंघाई सहयोग संगठन की बैठक के बाद जारी घोषणा पत्र में भारत, पाकिस्तान व अन्य देशों के साथ रूस व चीन की तरफ से कहा गया है कि ये सारे देश एकीकृत, शांतिपूर्ण, लोकतांत्रिक व आतंकवाद से मुक्त अफगानिस्तान का समर्थन करते हैं।

SCO Summit में दिखावा  

साथ ही अफगानिस्तान की सरकार में वहां के समाज के हर वर्ग के प्रतिनिधित्व देने की भी मागं की गई। आतंकवाद के मुद्दे पर भी कहा गया है कि अफगानिस्तान में किसी तरह की आतंकी गतिविधियों को पनाह नहीं दिया जाएगा।

तालिबान के लगातार संपर्क में हैं दोनों देश

इसके बावजूद रूस या चीन की तरफ से इस बात की कोई ठोस कोशिश नहीं की जा रही है कि उक्त दोनों साझा घोषणा पत्रों के मुताबिक कदम उठाया जाए। सूत्रों के मुताबिक इन दोनों देशों का विशेष दायित्व इसलिए है कि पाकिस्तान के अलावा इन दोनों का भी तालिबान के साथ लगातार संपर्क बना हुआ है। इन दोनों देशों के राजनयिक काबुल में हैं और तालिबान के साथ बैठक भी कर रहे हैं।

विकास पर फिर सकता है पानी

रूस व चीन जिस तरह से पाकिस्तान के मिल कर तालिबान को समर्थन दे रहे हैं उससे लगता है कि पिछले दो दशकों में अफगानिस्तान में जो भी विकास संबंधी उपलब्धि हासिल की गई है उस पर पानी फिर सकता है। तालिबान पहले ही साफ कर चुका है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था पर उसका भरोसा नहीं है।

चिनफिंग मदद की कर चुके हैं अपील

चीन के राष्ट्रपत शी चिनफिंग ने एससीओ की बैठक में सदस्यों से आग्रह किया कि सभी को संयुक्त रूप से तालिबान की मदद करनी चाहिए। इसी तरह का रवैया रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का भी रहा है। इन दोनों का संकेत यही है कि तालिबान का रुख चाहे जिस तरह का हो उसकी सत्ता बरकरार रहेगी। 

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