क्‍या चिनफ‍िंग की तीसरी पारी में भारत-चीन वार संभव! ताइवान और अमेरिका से कैसे होंगे रिश्‍ते, जानें-एक्‍सपर्ट व्‍यू

चिनफ‍िंग तीसरी बार चीन के राष्‍ट्रपति बनेंगे। अगर चिनफ‍िंग चीन के राष्‍ट्रपति बने तो इसका दुनिया पर क्‍या असर होगा ? भारत अमेरिका और ताइवान के संबंधों पर इसका क्‍या प्रभाव रहेगा ? अंतरराष्‍ट्रीय राजनीति में इसके क्‍या बड़े निहितार्थ हैं।

By Ramesh MishraEdited By: Publish:Wed, 10 Nov 2021 12:53 PM (IST) Updated:Wed, 10 Nov 2021 03:40 PM (IST)
क्‍या चिनफ‍िंग की तीसरी पारी में भारत-चीन वार संभव! ताइवान और अमेरिका से कैसे होंगे रिश्‍ते, जानें-एक्‍सपर्ट व्‍यू
क्‍या चिनफ‍िंग की तीसरी पारी में भारत-चीन वार संभव, ताइवान और अमेरिका से कैसे होंगे रिश्‍ते।

नई दिल्‍ली, रमेश मिश्र। चीन में सत्‍ताधारी कम्‍युनिस्‍ट पार्टी की कांग्रेस की बैठक पर दुनिया की नजरें टिकी हैं। इसकी बड़ी वजह यह है कि इस बैठक में एक बार फ‍िर चीन के राष्‍ट्रपति शी चिनफ‍िंग को तीसरी बार देश की कमान सौंपी जाएगी। उनको कम्‍युनिस्‍ट पार्टी का महा‍सचिव बनाया जाना तय है। चीन के कम्‍युनिस्‍ट पार्टी के इतिहास में यह पहली बार होगा, जब चिनफ‍िंग तीसरी बार देश के राष्‍ट्रपति बनेंगे। अगर चिनफ‍िंग चीन के राष्‍ट्रपति बने तो इसका दुनिया पर क्‍या असर होगा ? भारत, अमेरिका और ताइवान के संबंधों पर इसका क्‍या प्रभाव रहेगा ? अंतरराष्‍ट्रीय राजनीति में इसके क्‍या बड़े निहितार्थ हैं। आखिर इस सारे मामलों में क्‍या कहते हैं विशेषज्ञ प्रो. हर्ष वी पंत (आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली में निदेशक, अध्ययन और सामरिक अध्ययन कार्यक्रम के प्रमुख)।

चिनफ‍िंग तीसरी बार राष्‍ट्रपति क्‍यों ?

देखिए, शी चिनफ‍िंग तीसरे कार्यकाल के लिए नामित होंगे। इसके लिए कम्‍युनिस्‍ट पार्टी ने अपनी भूमिका बना ली है। उनके नौ वर्षों के शासन काल के महिमामंडन शुरू हो गया है। उनके शासन काल को चीन के विकास और महाशक्ति के रूप में पेश किया जा रहा है। इतना ही नहीं चिनफ‍िंग की तुलना माओत्‍से तुंग और देंग शियाओपिंग से की जा रही है। चिनफ‍िंग को एक युगांतकारी नेता के रूप में पेश किया जा रहा है। इससे तय है कि चीन में एक बार फ‍िर चिनफ‍िंग सत्‍ता में वापसी करेंगे।

चीनी राष्‍ट्रपति के कार्यकाल को आप किस रूप में लेते हैं ?

चीन राट्रपति चिनफ‍िंग ने बड़ी चतुराई से कोरोना महामारी के दौरान चीन में उपजी बेरोजगारी, गरीबी और अन्‍य आर्थिक समस्‍याओं का ध्‍यान दूसरी ओर खींचा है। वे जनता का ध्‍यान अमेरिका, ताइवान और भारत के सीमा विवाद की ओर ले जाने में सफल रहे हैं। जब कोरोना महामारी के काल में पूरी दुनिया वायरस से संघर्ष कर रही थी उस वक्‍त चीन, भारत के साथ साथ सीमा विवाद में उलझा था। चिनफ‍िंग लगातार अमेरिका को ललकार रहे थे। वह ताइवान को चीन में शामिल करने के लिए सैन्‍य शक्ति का प्रदर्शन कर रहे थे। वह चीनी जनता में राष्‍ट्रवाद की भावना विकसित कर रहे थे। इन दो वर्षों में चीन ने अपने सीमा विवाद को सबसे ज्‍यादा अहमियत दी। इसका एक सबसे बड़ा प्रमुख कारण देश की जनता के ध्‍यान को पूरी तरह से भटकाना था।

क्‍या चिनफ‍िंग के सत्‍ता में आने के बाद भारत के साथ तनाव बढ़ेगा ?

निश्चित रूप से। चिनफ‍िंग के कार्यकाल में भारत और चीन के तल्‍ख संबंधों में कोई बदलाव नहीं होगा। भारत के साथ सीमा विवाद को लेकर चीन राष्‍ट्रपति चिनफ‍िंग पहले से ज्‍यादा आक्रामक हो सकते हैं। वह विस्‍तारवादी नीति को आक्रामक ढंग से आगे बढ़ाने की रणनीति बना सकते हैं। इसका उनको राजनीतिक लाभ भी दिख रहा है। ऐसा करके वह अपने देश की बड़ी समस्‍याओं से आम चीनी जनता का ध्‍यान भटका सकते हैं। चिनफ‍िंग अपने को युगांतकारी नेता के रूप में स्‍थापित करने के लिए किसी भी सीमा को पार कर सकते हैं। वह यह दिखाने का प्रयास कर सकते हैं कि उनके कार्यकाल में भारत-चीन सीमा विवाद का निस्‍तारण किया गया। वह इसका क्रेडिट जरूर लेना चाहेंगे।

क्‍या उनकी आक्रामक नीति में युद्ध भी शामिल है ?

मेरे ख्‍याल में चीन मौजूदा हालात में किसी देश से युद्ध नहीं चाहेगा। दरअसल, चीन में जैसा दिखता है, वैसा होता नहीं है। कोरोना महामारी के बाद चीन के समक्ष कई तरह की आंतरिक चुनौतियां हैं। चिनफ‍िंग की पहली प्राथमिकता अपनी उन चुनौतियों से निपटने की होगी। ऐसे में चिनफ‍िंग किसी देश के साथ युद्ध करने की स्थिति में नहीं है। चिनफ‍िंग यह अच्‍छी तरह से समझते हैं कि अब यह युद्ध 1962 भारत-चीन जंग की तरह नहीं होगा। इसका दायरा व्‍यापक होगा। यह विनाशकारी होगा। वह यह भी जानते हैं कि कोई भी जंग देश को बहुत पीछे ले जा सकती है। ऐसे में चिनफ‍िंग अपनी सैन्‍य क्षमता का प्रदर्शन कर भारत और ताइवान पर दबाव बना सकते हैं।

क्‍या ताइवान को लेकर चीन अमेरिका के बीच जंग हो सकती है ?

ताइवान को लेकर चिनफ‍िंग अमेरिका से कभी जंग नहीं चाहेंगे। इस मामले में उनकी रणनीति एकदम अलग है। हांगकांग के मामले में देखिए, अमेरिका समेत तमाम यूरोपीय देशों के विरोध के बावजूद चिनफ‍िंग लोकतंत्र समर्थकों को काबू करने में सफल रहे। चिनफ‍िंग राष्‍ट्रीय सुरक्षा कानून को हांगकांग में लागू करवाने में भी सफल रहे। चीन इसी नीति पर काम करेगा। चीन के नए सीमा कानून को इसी कड़ी के रूप में जोड़कर देखा जाना चाहिए। चीनी राष्‍ट्रपति इसी रणनीति के साथ ताइवान पर भी काम कर रहे हैं। ताइवान के बहाने चीन अपनी सैन्‍य क्षमता का प्रदर्शन कर रहा है, ताकि वह अमेरिका व उसके अन्‍य सहयोगियों पर एक बड़ा दबाव बना सके। चिनफ‍िंग ताइवान को लेकर कभी अमेरिका के साथ युद्ध की स्थिति पैदा नहीं करेंगे। यह अमेरिका भी जानता है। 

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