देर से पद्म सम्मान मिलने पर पीटी ऊषा के कोच नांबियार ने कहा- देर आए, दुरुस्त आए
विलंब से पद्म सम्मान मिलने पर पीटी ऊषा के कोच ओ एम नांबियार ने कहा है कि बहुत पहले मिल जाना चाहिए था यह पुरस्कार। लंबे समय तक उनको इस पुरस्कार का बेसब्री से इंतजार था। अब ये सपना साकार हुआ है।
नई दिल्ली, प्रेट्र : तीन दशक से अधिक के इंतजार के बाद इस वर्ष पद्मश्री सम्मान के लिए चुने गए पीटी ऊषा के कोच ओ. एम नांबियार ने कहा कि देर आए, दुरुस्त आए। देश को ऊषा जैसी महान एथलीट देने वाले 88 वर्ष के नांबियार ने कहा, "मैं यह सम्मान पाकर बहुत खुश हूं। हालांकि यह कई साल पहले मिल जाना चाहिए था। इसके बावजूद मैं खुश हूं। देर आए, दुरुस्त आए।"
ऊषा को 1985 में पद्मश्री दिया गया था जबकि नांबियार को उस साल द्रोणाचार्य पुरस्कार मिला था। उन्हें देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान के लिए 35 वर्ष प्रतीक्षा करनी पड़ी। वह सम्मान लेने राष्ट्रपति भवन नहीं जा पाएंगे, लेकिन इससे उनकी खुशी कम नहीं हुई। उन्होंने कहा, "मेरे शिष्यों के जीते हर पदक से मुझे अपार संतोष होता है। द्रोणाचार्य पुरस्कार, सर्वश्रेष्ठ एशियाई कोच का पुरस्कार और अब पद्मश्री, मेरी मेहनत और समर्पण का परिणाम है।"
अपनी सबसे मशहूर शिष्या उषा को ओलंपिक पदक दिलाना उनका सबसे बड़ा सपना था। हालांकि 1984 में लास एंजिलिस ओलंपिक में वह मामूली अंतर से कांस्य से चूक गई थीं। अतीत की परतें खोलते हुए उन्होंने कहा, "जब मुझे पता चला कि ऊषा पदक से चूक गईं तो मैं बहुत रोया। मैं रोता ही रहा। उस पल को मैं कभी नहीं भूल सकता। ऊषा का ओलंपिक पदक मेरे जीवन का सबसे बड़ा सपना था।"
ऊषा के अलावा वह शाइनी विल्सन ( चार बार की ओलंपियन और 1985 एशियाई चैंपियनशिप में 800 मीटर में स्वर्ण पदक विजेता) और वंदना राव के भी कोच रहे। नांबियार के मार्गदर्शन में 1986 एशियन गेम्स स्वर्ण पदक जीतने वाली ऊषा ने कहा, "नांबियार को काफी पहले यह सम्मान मिल जाना चाहिए था। मुझे बुरा लग रहा था क्योंकि मुझे 1985 में पद्मश्री मिल गया और उन्हें इंतजार करना पड़ा। वह इसके सबसे अधिक हकदार थे।" वहीं, नांबियार के बेटे सुरेश ने कहा कि सम्मान समारोह में परिवार का कोई सदस्य उनका सम्मान लेने पहुंचेगा। उन्होंने कहा, "मेरे पिता नहीं जा सकेंगे क्योंकि वह चल फिर नहीं सकते हैं।"