गोल्ड मेडल जीत चुका रग्बी स्टार राहुल का हाल है बेहाल, ना किस्मत साथ और ना ही सरकार
राहुल के रग्बी स्टार होने के बावजूद उन्हें सरकारी नौकरी नहीं मिल रही और टाइल्स ढोने वाले पिता की नौकरी भी लॉकडाउन के कारण छूट गई।
अरुण सिंह, पटना। बिहार को गौरवान्वित करने वाले राहुल कुमार के परिवार पर कोरोना काल में चौतरफा मार पड़ी है। रग्बी स्टार होने के बावजूद उन्हें सरकारी नौकरी नहीं मिल रही और टाइल्स ढोने वाले पिता की नौकरी भी लॉकडाउन के कारण छूट गई। आखिरी उम्मीद धान की फसल थी, जिसे गंडक नदी की बाढ़ बहा ले गई। आज पिता-पुत्र समेत 10 लोगों का परिवार भुखमरी की हालत में है, फिर भी रग्बी के प्रति राहुल की दीवानगी कम नहीं हुई है। अपने खेल को जारी रखते हुए वह 100 गरीब बच्चों को प्रशिक्षण देने में जुटे हैं।
नहीं जा सका बेंगलुरु : छह साल की उम्र से रग्बी खेलना शुरू करने वाले राहुल की उपलब्धियों की फेहरिस्त लंबी है। हैदराबाद में राष्ट्रीय स्कूल खेलों में उन्होंने बिहार को स्वर्ण पदक दिलाया। पिछले साल जम्मू-कश्मीर में खेलो इंडिया विंटर ओलंपिक रग्बी में रजत पदक जीता। इसके अलावा सीनियर राष्ट्रीय चैंपियनशिप और मध्य क्षेत्र में प्रदर्शन सराहनीय रहा, लेकिन 2014 के बाद बिहार सरकार की ओर से खेल कोटे से बहाली नहीं निकलने के कारण नौकरी नहीं मिली। थक कर राहुल ने बेंगलुरु में पिता के साथ टाइल्स ढोने के काम को अपनाने की सोची, लेकिन लॉकडाउन के कारण वहां जा नहीं सके। अब तो पिता की नौकरी भी छूट गई और उन्हें अपने घर मुजफ्फरपुर के चढवां गांव लौटना पड़ा। पिता-पुत्र ने 10 हजार रुपये कर्ज लेकर धान की खेती शुरू की, लेकिन बाढ़ में धान के बिचड़े डूब गए।
गरीब बच्चों को दे रहे प्रशिक्षण : कष्ट झेलने के बाद भी अपना खेल जारी रखते हुए राहुल गांव के खेल मैदान पर 100 गरीब बच्चों को प्रशिक्षण दे रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी गुडि़या कुमारी उनके कैंप की देन हैं। उन्होंने बताया कि मेरे प्रशिक्षु आíथक रूप से कमजोर हैं, ऐसे में गुरु दक्षिणा के रूप में उनसे क्या ले सकता हूं। नौकरी ही आखिरी उम्मीद है। मुजफ्फरपुर और पटना में रग्बी सेंटर खुल जाए तो सभी समस्या का समाधान हो जाएगा।