समतल जमीन पर लकड़ी की कलम से पढ़ाते थे गुरुजी

आदिवासी बहुल सुंदरगढ़ जिला स्थित बड़गांव में गांगपुर राजा का शासन था। उस समय गांव प्रमुख और वरिष्ठ लोग शिक्षा के महत्व को समझ पाये थे जिस कारण इस क्षेत्र के कुछ स्कूलों की स्थापना सौ साल पहले हुई थी। इसमें से एक तुड़ालगा उच्च प्राथमिक स्कूल एक है। घने जंगल में स्थित यह गांव शिक्षा से काफी दूर था। इसके बावजूद शिक्षा के प्रति रुचि रखने वाले उस समय के शिक्षा प्रेमियों ने किस तरह शिक्षा का विकास होगा एवं लोक शिक्षित होकर समाज को सही दिशा दे पायेंगे इसी उद्देश्य से यहां 1919 में तुड़गला के चूना खलिहान में चाटसाली गुरुकुल की शुरुआत की थी।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 09 Dec 2019 11:26 PM (IST) Updated:Tue, 10 Dec 2019 06:18 AM (IST)
समतल जमीन पर लकड़ी की कलम से पढ़ाते थे गुरुजी
समतल जमीन पर लकड़ी की कलम से पढ़ाते थे गुरुजी

अशोक षडंगी, बड़गांव

आदिवासी बहुल सुंदरगढ़ जिला स्थित बड़गांव में गांगपुर राजा का शासन था। उस समय लोग शिक्षा का महत्व समझते थे। उन्होंने इस क्षेत्र में कई स्कूलों की स्थापना की। इन्हीं में से एक तुड़ालगा उच्च प्राथमिक स्कूल भी है जो सौ साल पहले खेला गया था। उस समय यहां समतल जमीन पर लकड़ी के कलम से बच्चों को पढ़ाया जाता था। तब घने जंगल में स्थित यह गांव शिक्षा से काफी दूर था। इसके बावजूद शिक्षा प्रेमियों ने शिक्षित लोग ही होकर समाज को सही दिशा दे सकेंगे, इसी उद्देश्य से यहां 1919 में तुड़ालगा के चूना खलिहान में चाटसाली गुरुकुल की शुरुआत की थी।

यहां पुल के लिए चूना रखे जाने से नाम पड़ा चूना खलिहान

गांव के बुजुर्गो के अनुसार गांगपुर राजा ने तुड़ालगा बाइबाइ के पास सफई नदी पर 1919 में पुल बनवाया था। पुल के निर्माण में चूना, गुड़ और बेल के लट्ठा का इस्तेमाल हुआ था। यहां चूना रखने के लिए मिट्टी का घर व खलिहान बनाया गया था। इससे इसे चूना खलिहान के रूप में जाना गया। इसी खलिहान में बाइबाइ के तत्कालीन ग्राम प्रमुख स्व. पुरेन्द्रराउतराय, तुड़ालगा के ग्राम प्रमुख राजीव लोचल मुदली एवं शिक्षा प्रेमी मिनकेतन बेहरा ने चाटसाली गुरुकुल खोला। इन लोगों ने कपिल नामक व्यक्ति को शिक्षक नियुक्त किया। कपिल कहां के थे आज किसी को मालूम नहीं। उस समय ब्लैक बोर्ड नहीं था। इस कारण खलिहान को समतल कर जमीन पर लकड़ी से लिख कर बच्चों को पढ़ाया जाता था।

नारी शिक्षा को महत्व देते थे ग्रामीण : राजगांगपुर कोर्ट के वकील वीरेंद्र राउतराय को उनके पिता स्व. दाशरथी राउतराय ने बताया था कि बड़गांव आइटीआइ के संस्थापक रामचंद्र नायक की मां सेवती बेहरा उसी चाटसाली गुरुकुल में पढ़ी थीं। इससे पता चलता है कि स्थानीय लोग सौ साल पहले भी नारी शिक्षा के प्रति गांव के लोग जागरूक थे एवं अपनी बेटियों को पढ़ाई के लिए स्कूल भेजते थे। उस समय लड़कियां अपने बच्चों को पढ़ाने लायक शिक्षा ग्रहण कर लेती थी।

50 के दशक में चाटसाली से स्कूल स्थानांतरित : चूना खलिहान में कई वर्षों तक चाटसाली गुरुकुल चला। इसके बाद तुड़ालगा गांव के निकट डेरागुड़ी गांव में स्थानांतरित किया गया। इसी गुरुकुल में खुटमुंडा गांव के स्व.बैकुंठ त्रिपाठी व बड़गांव के स्व. चापधारी नायक शिक्षक थे। इस चाटसाली गुरुकुल में रामचंद्र नायक, पद्मनाभ मुदली, चंद्रभानू जेना, रथी माझी, फकीर जेना, सुरेंद्र जेना, जंगली गांव प्रमुख दामोदर साह, शंकर बेहरा ने पढ़ाई की थी। उनके अनुसार उस समय घना जंगल था एवं जंगली जानवर अधिक थे। 1950 के आसपास स्कूल तक आने जाने का कोई साधन नहीं था।

नहीं थे शिक्षक तो बच्चों ने अधिकारी को कुछ नहीं बताया

उन्होंने बताया कि एक दिन जिला शिक्षा अधिकारी घोड़े में बैठकर गुरुकुल आए थे। उस समय स्कूल में शिक्षक नहीं थे। बच्चों से किताब कांपी दस्तावेज दिखाने को कहा तो बच्चों साफ इन्कार कर दिया कि जब तक शिक्षक नहीं आते वे कुछ नहीं दिखाएंगे। तब उन्होंने मात्रा युक्त शब्द पूछे और लिखने को कहा। बच्चो ने जवाब दिया कि मात्रा शब्द नहीं शब्दावली पूछें। बच्चों ने बिना किसी गलती के सब कुछ बता दिया। उस समय शिक्षक पिटायी करते थे पर बच्चों के प्रति उतना प्यार भी था।

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हमने तुड़ालगा डेरागुड़ी चाटसाली गुरुकुल में पढ़ाई की थी। उस समय शिक्षक बच्चों पूरी तह तक समझाने के लिए पढ़ाते थे। जितना पीटते थे कहीं उससे अधिक प्यार भी करते थे। हमारे समय में चॉक एवं ब्लैकबोर्ड नहीं था। जमीन में गोबर लीप कर लिखाई करते थे। यहीं पढ़ाई कर उसी स्कूल में शिक्षक भी बने।

- बिरंची बेहरा।

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मैंने 1946 में डेरागुड़ी में शिशु श्रेणी में पढ़ाई की थी। शिक्षक हमें पीटते थे इसलिए पढ़ाई में ध्यान देना पड़ता था। छात्र यदि अनुपस्थित होते थे शिक्षक घर जाकर स्कूल तक लाते थे। कपास के सूत एवं लकड़ी की काठी से गणित सिखाते थे। आज भी वैसी व्यवस्था की जरूरत है, जिससे बच्चे आसानी से सीख सकें।

-चंद्रभानू जेना।

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मेरे समय में स्व. कालीचरण राउडिया, स्व. सुरेंद्र पुरोहित, वंशीधर पाणीग्राही शिक्षक थे। सभी अच्छे शिक्षक थे एवं हमारा आदर करते थे। हम स्कूल की सफाई करते थे। चॉक खुद तैयार कर उसमें लिखते थे। आज के बच्चे उस तरह का मेहनत नहीं कर सकते हैं।

-गणेश्वर पिग।

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स्कूल में कक्षा आठ तक पढ़ाई होती है। यहां आवश्यक कक्षा गृह अब तक उपलब्ध नहीं हैं। इससे तीन कमरे में कक्षा आठ तक के बच्चों पढ़ाना पड़ रहा है। अपनी दक्षता के अनुसार बच्चे पढ़ रहे हैं। खेलकूद के प्रति बच्चों की अधिक दिलचस्पी हैं।

-नमिता राउत, प्रधानाध्यापिका

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