बदहाली की जिदगी जीने को विवश हो रहे रिक्शा चालक

शहर में दिन पर दिन बढ़ती ऑटो रिक्शा की तादाद के कारण रिक्शा वाले बदहाली की जिंदगी जीने को मजबूर हो रहे हैं।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 15 Jan 2021 08:00 AM (IST) Updated:Fri, 15 Jan 2021 08:00 AM (IST)
बदहाली की जिदगी जीने को विवश हो रहे रिक्शा चालक
बदहाली की जिदगी जीने को विवश हो रहे रिक्शा चालक

तन्मय सिंह, राजगांगपुर : शहर में दिन पर दिन बढ़ती ऑटो रिक्शा की तादाद के कारण रिक्शा वाले बदहाली की जिंदगी जीने को मजबूर हो रहे हैं। कोरोना महामारी को लेकर ट्रेनों का परिचालन कम होने से अब स्थिति यह हो गई है कि रिक्शा चालकों का दिन सवारी के इंतजार में गुजर जाता है। किसी तरह एक-दो सवारी ढोकर रिक्शा चालकों को अपना गुजारा करना पड़ रहा है। ऐसे में जिस दिन रिक्शा बंद उस दिन जीविका बंद।

एक समय ऐसा था कि शहर के भीतर सौ से अधिक रिक्शा चलते थे। स्थानीय लोग ज्यादातर रिक्शा पर ही निर्भर रहते थे। धीरे-धीरे ऑटो रिक्शा के परिचालन से शहर रिक्शा का प्रचलन कम होते चला गया। अब मंजर यह है कि शहर में लगभग दस ही रिक्शा नजर आते हैं। जो 10 रिक्शा बचे हैं उनके चालकों की उम्र 50 से 60 हो चुकी है। उनकी जीविका का एक मात्र साधन रिक्शा खींचने के अलावा और कुछ नहीं है। बाकी जो युवा रिक्शा वाले थे। उन्होंने अपने सवारी रिक्शा को माल ढोने वाले ठेला में तब्दील कर अपनी जीविका चला रहे हैं। जो बुजुर्ग रिक्शा चालक माल ढोने में असमर्थ हैं वे जैसे तैसे सवारी रिक्शा को खींचकर अपना गुजारा करने को मजबूर हैं।

लेकिन ट्रेन का आवागमन कम हो जाने से इनका बचा-खुचा धंधा भी चौपट हो गया है। ट्रेन का जब आवागमन सामान्य था तब इनकी जीविका जैसे-तैसे चल जाती थी। अब ट्रेन कम हो जाने से इनका काम ना के बराबर हो गया है। इक्का दुक्का ट्रेन के चलने से सभी रिक्शा चालकों उम्मीद भरी निगाहों से ब्रिज के ऊपर यह सोचकर ताकते है कि कोई यात्री उनके रिक्शे में बैठ जाए। पर ऐसा नहीं होता। उनकी उम्मीद पर तब पानी फिर जाता है जब सीढ़ी से यात्री उतरकर ऑटो रिक्शा में सवार जाते हैं। आजकल हर कोई ऑटो रिक्शा में ही चलना पसंद करता है रिक्शे की तरफ कोई मुड़कर भी नहीं देखता। इस कारण रिक्शा चलाने वालों का हाल आज यह है कि दिन भर में 100 रुपये कमाना मुश्किल सा हो जाता है।

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