रोजी के लिए रोजाना आते है शहर, मायूसी लगती हाथ
शहर का ह्रदय स्थल कहे जाने वाले सुभाष चौक के मुख्य चौक पर वर्षो से रोजाना सुबह 6 बजे से सैकड़ों की संख्या में मजदूर काम की तलाश में यहां पहुंचते हैं।
तन्मय सिंह राजगांगपुर
शहर का ह्रदय स्थल कहे जाने वाले सुभाष चौक के मुख्य चौक पर वर्षो से रोजाना सुबह 6 बजे से सैकड़ों की संख्या में मजदूर काम की तलाश में यहां पहुंचते हैं। इनमें महिलाओं की संख्या भी बहुतायत में होती है। जिससे यहां मेला जैसा लग जाता है। मजदूर चौक पर खड़े रहकर किसी ठेकेदार अथवा आम शहरी का इंतजार करते हैं कि कोई आए और उन्हें काम के लिए ले जाए जिससे वे अपना और अपने परिवार के दो वक्त की रोटी का जतन कर सकें। पर पिछले साल से कोरोना महामारी के कारण निर्माण कार्य कम हो जाने से इनमें से कुछेक को ही काम मिल पाता है और शेष घंटे दो घंटे चौक में इंतजार करने के बाद मायूस होकर घर लौटने को विवश होते हैं। इनमें राजमिस्त्री, टाइल्स मिस्त्री, रंग मिस्त्री भी शामिल होते हैं जो दिहाड़ी मिलने की उम्मीद में सुदूर गांवों से पैदल अथवा साइकिल से सुभाष चौक पहुंचते हैं। इसमें जामपाली, झाड़बेड़ा, गर्भना, बाबूडीह, मालीडीह, लखुवापाड़ा, लाइंग,घोघड़, कांसबहाल, जौरुमाल, झगड़पुर, रामा बहाल, कांसबहाल गांव सहित अन्य सुदूर गांवों के महिला-पुरुष शामिल हैं। गर्मी हो या सर्दी अथवा बरसात, हर मौसम में काम की तलाश में मजदुर सुभाष चौक पहुंचते हैं। इनकी मजदूरी भी मात्र 220 रुपये महिला एवं 300 रुपये पुरुष के लिए होती है। काबिलेगौर बात यह है कि इतनी बड़ी संख्या में मजदूरों के सुभाष चौक में पहुंचने के बावजूद न तो प्रशासन और ना ही श्रमिक संगठन इनके प्रति गंभीर हैं। जबकि निर्माण श्रमिक में पंजीकरण होने से कोरोना काल में सरकार की ओर से निर्माण श्रमिकों को मिलने वाली सहायता राशि से इनके परिवारों को कुछ राहत मिल सकती है। लेकिन कोरोना महामारी के इस दौर में इन मजदूरी की दशा पर किसी का ध्यान नहीं है।