Subhash Chandra Bose Jayanti 2021: पराक्रम दिवस के इस मौके पर याद आये बिरेन सरकार, जानें नेता जी से क्या था इनका रिश्ता
Subhash Chandra Bose Jayanti 2021 नेताजी सुभाषचंद्र बोस की 125वीं जयंती को केंद्र सरकार ने पराक्रम दिवस के रुप में मनाए जाने पर राष्ट्रभक्तों में खुशी की लहर है। इस मौके पर कांग्रेस नेता स्वर्गीय बिरेन सरकार की बरबस याद आ जाती है।
संबलपुर, जागरण संवाददाता। ओडिशा के महान माटीपुत्र व गुलाम भारत के आज़ाद फौजी नेताजी सुभाषचंद्र बोस की 125 वीं जयंती को केंद्र सरकार ने पराक्रम दिवस के रुप में मनाए जाने का निर्णय लेकर राष्ट्रभक्तों को खुश कर दिया है। पराक्रम दिवस के इस मौके पर संबलपुर के जाने माने कांग्रेस नेता स्वर्गीय बिरेन सरकार की बरबस याद आ जाती है। बिरेन अपने किशोरावस्था में ना केवल महात्मा गांधी बल्कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस के साथ भी संपर्क में रहे और आज़ादी की लड़ाई में सक्रिय रुप से शामिल रहकर गांधीजी और नेताजी के आंदोलनों को सफल बनाया। बिरेन सरकार का निधन 24 दिसंबर 2003 के दिन संबलपुर के नयापाड़ा स्थित पैतृक निवास में हो गया।
बिरेन सरकार के परिवार में ख़ुशी की लहर
केंद्र सरकार द्वारा नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जयंती को प्रति वर्ष पराक्रम दिवस के रुप में मनाए जाने की खबर के बाद बिरेन सरकार के परिवार में ख़ुशी की लहर है। बिरेन के भतीजे सुभाशीष सरकार ने केंद्र सरकार के इस निर्णय का स्वागत करते हुए बताया कि आज अगर उनके चाचा बिरेन सरकार जीवित होते तो उन्हें इसकी ख़ुशी होती।
नेताजी के यूथ ब्रिगेड में हुए शामिल
सुभाशीष के अनुसार संबलपुर में अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करते के बाद इनके चाचा बिरेन सरकार आगे की पढ़ाई के लिए कोलकाता चले गए थे। कोलकाता में रहने के दौरान वह नेताजी सुभाषचंद्र बोस के बारे में जानकर काफी प्रभावित रहे और बाद में कई बार उनसे मुलाकात भी की। नेताजी के कई आंदोलन में भी वह सक्रिय रुप से शामिल रहे और नेताजी के यूथ ब्रिगेड में शामिल होकर जुलाई 1940 में कोलकाता में स्थापित हालवेट स्तंभ को तोड़कर अंग्रेजी हुकूमत का घमंड भी चूर-चूर करने में शामिल रहे। देशवासियों पर अंग्रेजों के अमानवीय अत्याचार और इसके लिए फोर्ट विलियम में बनाए गए ब्लैक होल के खिलाफ नेताजी सुभाषचंद्र के जन आंदोलन में भी बिरेन शामिल रहे।
महात्मा गांधी समेत कई अन्य नेताओं से रहा संपर्क
संबलपुर जिला कांग्रेस के अध्यक्ष रहे बिरेन सरकार का महात्मा गांधी समेत कई अन्य नेताओं के साथ भी संपर्क रहा। कांग्रेस के नरमपंथी और चरमपंथी नेताओं के बीच उन्होंने अपना तालमेल बनाए रखते हुए कार्य किया। गांधीजी के संबलपुर प्रवास के दौरान बिरेन अन्य नेताओं के साथ उनके साथ रहे और असहयोग आंदोलन और भारत छोडो आंदोलन को भी संबलपुर में सफल बनाया। देश की आज़ादी के बाद वह सक्रिय राजनीति से दूर रहे और आजीवन अविवाहित रहकर अपने स्वर्गीय बड़े भाई के परिवार का पोषण करने समेत खुद को सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों से जोड़े रखा।