इच्छाशक्ति के आगे हार मानी कमजोरियां

कहा जाता है कि अगर इच्छाशक्ति है तो सब कुछ संभव है। अपने प्रयासों और रुचि के कारण एक दिव्यांग दंपती ने अपनी कमजोरियों को पछाड़ दिया है।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 26 Nov 2021 10:04 PM (IST) Updated:Fri, 26 Nov 2021 10:04 PM (IST)
इच्छाशक्ति के आगे हार मानी कमजोरियां
इच्छाशक्ति के आगे हार मानी कमजोरियां

जागरण संवाददाता, राउरकेला : कहा जाता है कि अगर इच्छाशक्ति है तो सब कुछ संभव है। अपने प्रयासों और रुचि के कारण एक दिव्यांग दंपती ने अपनी कमजोरियों को पछाड़ दिया है। पेशेवर रूप से साइकिल की मरम्मत करके, वे अपने पैरों पर खड़े होने और आत्मनिर्भर बनने में सक्षम हुए है। उनकी इस क्षमता ने युवाओं को प्रेरित किया है। यह दपंती सुंदरगढ़ जिले के लाठीकाटा ब्लॉक के जोड़ाबंध निवासी कचे तुरी और उनकी पत्नी एंजेला तिर्की हैं। दिव्यांग होने के बावजूद, उनकी असाधारण कार्य नीति ने युवाओं के लिए एक मिसाल कायम की है। कचे और उनकी पत्नी एंजेला दोनों दिव्यांग हैं। दोनों जब एक दूसरे से मिले तो उनकी किस्मत बदल गई। पति पत्नी दोनों ही दिव्यांग होने के बावजूद पेट पालने के लिए उन्होंने किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया। कड़ी मेहनत के साथ वे अपने दोनों पैरों पर खड़े हो पाए है। साइकिल की मरम्मत से मिलने वाले पैसों से दोनों काफी खुश हैं। साइकिल की मरम्मत करते हुए दोनों अब क्षेत्र में मशहूर हो गए हैं। सुबह से शाम तक दोनों साइकिल की मरम्मत में एक दूसरे की मदद करते हैं।

कचे बनाते पंक्चर, एंजेला करती है साइकिल की मरम्मत : कचे जहां पंक्चर बनाता है, वहीं एंजेला साइकिल की मरम्मत करती है। स्थानीय लोगों ने दिव्यांग दंपती द्वारा किए जा रहे साइकिल मरम्मत के काम की प्रशंसा की है। कचे के अच्छे काम की वजह से ज्यादातर स्थानीय लोग उसकी दुकान पर साइकिल ठीक कराने आते हैं। कचे मरम्मत के नाम पर ज्यादा पैसा भी खर्च नहीं करता है। अच्छा व्यवहार व काम करने की शैली ने दोनों की क्षेत्र में अच्छी पहचान बना दी है। सुबह खाना खाने के बाद दोनों हाथ पकड़कर दुकान की ओर निकल पड़ते हैं। जहां से वे शाम को काम के बाद घर लौटते है।

दोनों का बचपन बीता दुखों में : दोनों का बचपन बेहद दुखदायी रहा है। कचे तुरी ने 17 साल की उम्र में अपने पिता जोसेफ तुरी को खो दिया। बाद में, मां राहिल भी उसे छोड़कर दूसरे स्थान पर चली गई। कचे अकेला रह गया। खेत की जोताई करते समय गिरने से उसके दोनों पैर टूट गए। पैर ठीक तो हो गया लेकिन वह हमेशा के लिए दिव्यांग हो गया। पेट भरने के लिए जोड़ाबंध मैदान के पास अपनी साइकिल मरम्मत की दुकान शुरू की। 16 साल तक मरम्मत का काम करने के बाद कचे के जीवन में आई गुरुंडिया के मातेलगढ़ की एंजेल तिर्की। दिव्यांग एंजेल के परिवार की आर्थिक स्थिति खराब थी और वह दर्जी के रूप में काम करती थी।

दोनों ने एक दूसरे को कभी नहीं समझा दिव्यांग : कचे से उसकी शादी 2020 में तय हुई। कोरोना के डर से एंजेल के परिवार ने कचे को शादी बाद में करने की सलाह दी। शादी तय होने के कुछ महीने बाद ही एंजेल के परिवार पर आपदा आ पड़ी। उसकी मां हमेशा के लिए उसे छोड़ गई। कचे अंतत: एंजेल को चर्च ले गया और उससे शादी कर ली। शादी के बाद एंजेल साइकिल की मरम्मत के काम में मदद करने के लिए मन बना लिया था। उसने पति से साइकिल मरम्मत का काम सीखा। बाद में दोनों साइकिल मैकेनिक बन गए। उनका कहना है कि हमने कभी एक-दूसरे को दिव्यांग नहीं समझा। आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण दुकान व घर नहीं बना पा रहे है। दिव्यांगों के लिए सरकार कई योजनाएं हैं। अगर सरकार हमें थोड़ी सी आर्थिक मदद देती है तो बेहतर घर और दुकान कर रह पाते।

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