पाश्वाचल निवासियों को स्वच्छ पेयजल मुहैया कराने में जुटी आरएसपी
राउरकेला इस्पात संयंत्र (आरएसपी) पाश्वाचल क्षेत्र के लोगों के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है।
जागरण संवाददाता, राउरकेला : राउरकेला इस्पात संयंत्र (आरएसपी) पाश्वाचल क्षेत्र के लोगों के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है। सुरक्षित पेयजल और स्वच्छता सुविधाएं, अच्छे स्वास्थ्य और जीवन की बेहतर गुणवत्ता के लिए आवश्यक है। एक प्रमुख गैर सरकारी संगठन, ग्राम विकास के सहयोग से आरएसपी द्वारा इसे हासिल करने के लिए आदर्श इस्पात ग्रामों और इसके पाश्वांचल गांवों के प्रत्येक परिवार को चरणबद्ध तरीके से स्वच्छ पेयजल और स्वच्छता सुविधा प्रदान करने की दिशा में लगातार कार्य कर रहा है।
परियोजना के तहत आरएसपी द्वारा एक व्यापक जलापूर्ति और स्वच्छता परियोजना शुरू की गई थी। इसके तहत ग्रामीणों की भागीदारी से गांव के प्रत्येक घर में सेप्टिक टैंक के साथ एक बाथरूम और शौचालय की सुविधा का निर्माण किया गया है। पानी की आवश्यकता को पूरा करने के लिए बोरवेल खोदे गए हैं या उपलब्धता के अनुसार गांव के मौजूदा जल संसाधन को ठीक किया गया है। सामान्य जल भंडारण के लिए प्रत्येक गांव में ओवरहेड पानी की टंकी का निर्माण किया गया था। पानी की पाइपलाइन बिछाई गई और हर घर में तीन पानी के प्वाइंट उपलब्ध कराए गए हैं जिसमें एक रसोई घर में, एक स्नानघर में और एक शौचालय में दिया गया है।
कुआरमुंडा प्रखंड के 15 गांवों में अब तक 1376 स्वच्छता सुविधाएं सृजित की जा चुकी हैं, इनमें 5 मॉडल गांव शामिल हैं और इससे 6713 निवासी लाभान्वित हो रहे है। ये गांव चुटियाटोला, डुमरजोर, बानिगुनी, उशरा कॉलोनी, जगदीशपुर, बांकीबहाल, भागटोला, मदपड़ा, रायबरना, बेजपड़ा, मंदिरा, सरंडामल, सारंडापोश, चांदीपोष और भालुडुमेर हैं।
इसी तरह से राजगांगपुर ब्लॉक के लाईंग कॉलोनी में 136 परिवार, चिकटमाटी ए और बी में 150 परिवार और बिसरा ब्लॉक के कपाटमुंडा गांव के 92 परिवार इस परियोजना से लाभान्वित हुए हैं।
परियोजना की कुल लागत 9 करोड़ रुपये से अधिक थी। इसमें से 2.6 करोड़ रुपये ग्रामीणों द्वारा वहन किए गए हैं। लोगों की भागीदारी का मुख्य उद्देश्य लंबे समय तक परियोजना की स्थिरता सुनिश्चित करना था। परियोजना के प्रशासनिक पहलू की देखभाल के लिए एक ग्राम कार्यकारी समिति का गठन किया गया है। उल्लेखनीय है कि यह परियोजना ग्रामीणों की शत-प्रतिशत भागीदारी के साथ ही शुरू होती है। शत प्रतिशत समावेशन की प्रथा गांवों को साफ रखती है और जल प्रदूषण के स्रोतों को समाप्त करती है। क्योंकि गांव का प्रत्येक सदस्य स्वच्छता प्रणाली की स्थापना, रखरखाव और लाभ में शामिल होता है।