ँअर्चना मल्लिक ने 15 दिनों में 160 मरीजों का किया इलाज
कोरोना संक्रमण काल में मानो जैसे मानवता खो गई। लेकिन संक्रमण की आशंका के बावजूद स्वास्थ्य कर्मी अपनी जान जोखिम में डाल कर कोरोना रोगियों की देखभाल के लिए दिन-रात एक किए हुए है।
जागरण संवाददाता, राउरकेला : कोरोना संक्रमण काल में मानो जैसे मानवता खो गई। लेकिन संक्रमण की आशंका के बावजूद, स्वास्थ्य कर्मी अपनी जान जोखिम में डाल कर कोरोना रोगियों की देखभाल के लिए दिन-रात एक किए हुए है। वे अपने और अपने परिवार की बात बाद में, पहले अस्पताल के बिस्तर पर मौत से जूझ रहे कोरोना रोगियों का जीवन पहले की मानसिकता के साथ दिन-रात मरीजों की सेवा कर रहे हैं। ऐसी ही एक नर्स हैं अर्चना मल्लिक, जो हाईटेक कोविड अस्पताल के आइसीयू की प्रभारी हैं।
उनका घर ओडिशा जगतसिंहपुर जिले के रायबराइ में है। पिछले एक साल से वह कोरोना मरीजों की सेवा कर रही है। वह दिन में 24 में से 20 घंटे मरीज की देखभाल करती हैं। संक्रमण के भय से दूर, वह पीपीई किट पहन कर तथा अपने चेहरे पर एक मास्क लगाकर उन रोगियों का इलाज कर रही है जो आइसीयू में एक बिस्तर से दूसरे बिस्तर पर सुबह से देर रात तक आते रहते हैं। न केवल आइसीयू, बल्कि जनरल बेड, केबिन में मरीजों की सेवा भी करती है। मानसिक रूप से परेशान मरीज के चेहरे पर वे मुस्कान भी लाती है। पिछले 15 दिनों में आइसीयू में भर्ती 160 से अधिक मरीजों का इलाज उन्होंने किया है। चिकित्सा सेवा के दौरान एक भी मरीज के रिश्तेदारों का कॉल नहीं काटती है। अर्चना सभी का फोन उठाती है तथा परिवार के लोगों को रोगी की स्थिति से अवगत कराती है। वह सांत्वना के साथ धैर्य न खोने की सभी को सलाह देती है। मरीज की सेवा में वह इतनी व्यस्त हैं कि उन्हें रात में केवल 3 से 4 घंटे ही सोने का समय मिलता है। उनका केबिन आइसीयू रूम के बगल में है। वहां वह खाती हैं, सोती हैं तथा आराम करती हैं। उन्हें दो दोस्त राजू पटनायक और मनोरमा जेना सहयोग करते है। अप्रैल 2020 से वह हाईटेक कोविड अस्पताल के आइसीयू रूम की प्रभारी हैं। अर्चना कहती हैं कि उनके माता-पिता ने उन्हें यह काम से करने से कभी नहीं रोका। अर्चना ने कहा कि आज तक आइसीयू बेड में आने वाले गंभीर रूप से बीमार कोरोना रोगियों का इलाज कर रही है। लेकिन भगवान की कृपा से, मैं अब तक कोरोना पीड़ित नहीं हुई हूं ना ही कोरोना का कोई लक्षण मुझमे दिखा है। कई रोगियों को मृत्यु के मुंह में जाने से बचा पाई हूं, लेकिन कईयों के आगे हार गई। शव लेने आने वाले मृतकों के परिजनों का रोना दिल को दहला देता है। इस कारण वह अपने आंसूओं को रोक नहीं पाती है। लेकिन फिर से काम मे जुट जाती है। वह याद करते हुए छह दिन पहले की घटना बताती है, जो उन्हें हमेशा याद रहेगी। आइसीयू के दो पास-पास के बेड में 82 साल के वृद्ध व 32 साल का युवक इलाजरत थे। 82 वर्षीय वृद्ध कोरोना से जंग जीत कर अपने परिवार के साथ खुशी-खुशी घर लौट गए। लेकिन 32 वर्षीय युवक बेड पर ही कोरोना से अपनी लड़ाई हार गया। बुजुर्ग के बेटे और परिवार ने उन्हें धन्यवाद दिया। जबकि 32 वर्षीय मृतक की पत्नी, दीदी मेरे पति को वापस कर दो कहकर रो रही थी। इस तरह की घटना से वह काफी आहत हुई थी। अर्चना की मां भी कोरोना योद्धा हैं तथा वह होमगार्ड में कार्यरत हैं।