एससी/एसटी जनसंख्या के आधार पर पुन: प्रकाशित करें संरक्षण सूची

पंचायती राज विभाग की ओर से एक अक्टूबर को पंचायत निर्वाचन के लिए मार्गदर्शिका प्रकाशित की गई थी। अखिल भारतीय गोंडवाना गौंड महासभा के राज्य अध्यक्ष व सम्मिश्रण आदिवासी समाज के सलाहकार महेंद्र नायक ने पंचायत निर्वाचन के लिए प्रकाशित मार्गदर्शिका में कानून का उल्लंघन कि ए जाने का आरोप लगाया है।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 22 Oct 2021 06:00 AM (IST) Updated:Fri, 22 Oct 2021 06:00 AM (IST)
एससी/एसटी जनसंख्या के आधार पर पुन: प्रकाशित करें संरक्षण सूची
एससी/एसटी जनसंख्या के आधार पर पुन: प्रकाशित करें संरक्षण सूची

संसू, झारसुगुड़ा : पंचायती राज विभाग की ओर से एक अक्टूबर को पंचायत निर्वाचन के लिए मार्गदर्शिका प्रकाशित की गई थी। अखिल भारतीय गोंडवाना गौंड महासभा के राज्य अध्यक्ष व सम्मिश्रण आदिवासी समाज के सलाहकार महेंद्र नायक ने पंचायत निर्वाचन के लिए प्रकाशित मार्गदर्शिका में कानून का उल्लंघन कि ए जाने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि इसके कारण समग्र ओडिशा के आदिवासी अंचल के आदिवासियों की क्षमता संकुचित हो जाएगी। आदिवासी अधिसूचित अंचल में जिलाधीशों ने त्रिस्तरीय पंचायती राज के विभिन्न पदों को संरक्षित करने के लिए जो सूची प्रकाशित की है, उसमें कई विभेद हैं। इस कारण आदिवासियों की सीट आधी कम हो गई है। जिले के लैयकरा ब्लाक में आदिवासियों की संख्या 50 प्रतिशत से अधिक है। 2017 के चुनाव में ब्लॉक की 11 पंचायतों में से छह पंचायत आदिवासियों के लिए सुरक्षित थे, जो चलित निर्वाचन में घट कर तीन रह गई है। इसी प्रकार, झारसुगुड़ा जिला में 78 पंचायतों के संरक्षण सूची में भी कई विभेद हैं। ओड़िशा ग्राम्य पंचायत एक्ट 1964 धारा 5(बी), 6 (व) में दर्शाया गया है कि राज्य में रहने वाले एससी/एसटी की कुल जनसंख्या के हिसाब से ही सीट संरक्षित की जाएगी। परंतु प्रकाशित संरक्षण सूची में ब्लॉक की जनसंख्या के आधार पर एससी/एसटी के लिए सीट संरक्षित की गई है। राज्य के 314 ब्लॉक में रहने वाले एससी/एसटी व ओबीसी की संख्या एक समान नहीं है। विभिन्न अंचलों में संबंधित वर्ग के लोगों की संख्या कम या अधिक है। अत: राज्य में प्रचलित जनजातीय, अनुसूचित जनजाति के लिए संरक्षण कुल जनसंख्या का क्रमश: 23.5 व 15.5 ही है। इसलिए कानून व मार्गदर्शिका में अंतर है। यह कानून का उल्लंघन है। इसी प्रकार समिति सदस्य, पंचायत समिति अध्यक्ष व जिला परिषद अध्यक्ष के क्षेत्र में भी किए गए संरक्षण में विभेद है। इससे आदिवासियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। सम्मिलित आदिवासी समाज ने राज्य सरकार से मांग करते हुए कहा कि राज्य में रहने वाले जनजातीय व अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या के अनुपात के तहत कानून को आधार मान कर संरक्षण की सूची पुन: प्रकाशित की जाए। साथ ही आदिवासियों को राज्य के विकास की धारा में मुख्य स्रोत के रूप में शामिल किया जाए। अन्यथा राज्य में रहने वाले एक करोड़ से अधिक आदिवासियों को सड़क पर उतर कर अपने अधिकार के लिए आंदोलन करने के लिए मजबूर होना होगा।

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