ओडिशा कैडर होगी मेरी प्राथमिकता, स्वास्थ्य व शिक्षा के क्षेत्र में करूंगी काम : रीना

यूपीएससी में 194 रैंक पर आने वाली झारसुगुड़ा शहर के सरबाहल (डा. पीके दास गली) निवासी सेवानिवृत्त बीडीओ धरणीधर प्रधान व कल्याणी प्रधान की बेटी डा. रीना प्रधान ने झारसुगुड़ा जिले की पहली आइएएस बनने का गौरव प्राप्त किया है। पेशे से डा. रीना प्रधान साल 2017 में एमबीबीएस की परीक्षा पास करने के बाद डाक्टर बनीं।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 26 Sep 2021 07:00 AM (IST) Updated:Sun, 26 Sep 2021 07:00 AM (IST)
ओडिशा कैडर होगी मेरी प्राथमिकता, स्वास्थ्य व शिक्षा के क्षेत्र में करूंगी काम : रीना
ओडिशा कैडर होगी मेरी प्राथमिकता, स्वास्थ्य व शिक्षा के क्षेत्र में करूंगी काम : रीना

जागरण टीम, झारसुगुड़ा :

यूपीएससी में 194 रैंक पर आने वाली झारसुगुड़ा शहर के सरबाहल (डा. पीके दास गली) निवासी सेवानिवृत्त बीडीओ धरणीधर प्रधान व कल्याणी प्रधान की बेटी डा. रीना प्रधान ने झारसुगुड़ा जिले की पहली आइएएस बनने का गौरव प्राप्त किया है। पेशे से डा. रीना प्रधान साल 2017 में एमबीबीएस की परीक्षा पास करने के बाद डाक्टर बनीं। झारसुगुड़ा के डीएचएच में काम करने के बाद वर्तमान में वह नवरंगपुर के सानमूर्ति गांव स्थित सीएचसी में कार्यरत हैं। रीना ने बताया कि लोगों के लिए कुछ कर पाना ही मेरे लिए प्रेरणा बनी। मेरे पापा पंचायती राज विभाग में काम करते थे। उन्हीं से बचपन से सुनती आ रही थी कि एक जिलाधीश की क्षमता क्या होती है। समाज को बदलने में वह कैसे महत्वपूर्ण रोल अदा करता है। तभी से मुझमें आइएएस बनने की लालसा जगी। यहीं से मुझे प्रेरणा भी मिली। प्लस टू के बाद मेडिकल ज्वाइन की। बुर्ला मेडिकल कालेज से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की। काम के दौरान मुझे जितना टाइम मिलता था, उसी में आइएएस के लिए तैयारी करती थी। कभी तीन-चार घंटे तो कभी दस-बारह घंटे। काम के साथ पढ़ाई को मैनेज करना मेरे लिए काफी मुश्किल था, खासकर कोरोना के समय। पर दिल में आइएएस बनना था। इसलिए तैयारी करती गई। नवरंगपुर में इंटरनेट कनेक्टिविटी भी अच्छी नहीं थी। कभी-कभी इंटरनेट सेवा न होने पर मुझे दो-तीन किलोमीटर दूर तक पैदल जाकर करंट अफेयर के लिए न्यूज पेपर पढ़ना पड़ता था। खाने-पीने की भी समस्या थी। सातों दिन काम और जब मरीज आए तो अस्पताल जाना पड़ता था। इस दौरान दुविधा तो कई आए, लेकिन मैं शिकायत करना छोड़ उपलब्ध संसाधनों का उपयोग कर पढ़ती गई। कहा, पहले के दो प्रयास में मैं असफल भी रही। लेकिन इस बार सफलता मिली। उन्होंने कहा कि मैं हेल्थ सेक्टर से काफी करीब हूं। इसलिए हेल्थ पर ज्यादा काम करना चाहती हूं। इसके अलावा शिक्षा पर भी विशेष ध्यान रहेगा। कहा, हेल्थ व एजुकेशन ऐसी चीज है जो किसी समाज को बदल सकती है। मुझे विश्वास था कि इस बार लिस्ट में मेरा नाम आएगा। रिजल्ट आते ही मैं चिल्लाई और रो पड़ी। मेरे मुंह से अनायास ये शब्द निकले, आखिरकार मैं आइएएस बन ही गई। मेरी सफलता में मेरे मम्मी-पापा की बहुत बड़ी भूमिका है। छोटा भाई अशीष रंजन प्रधान है। उसकी प्रेरणा मेरे जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण है। मेरे दोस्त लगातार मुझे सहयोग व प्रेरित करते रहे। मेरे लिए भाषा कभी भी मुश्किल नहीं थी। अंग्रेजी में मैं काफी स्ट्रांग हो गई थी। पहले प्रयास में मुझे यूपीएससी का कुछ खास आइडिया नहीं था। मैंने ऐच्छिक विषय के रूप में मेडिकल साइंस को चुना, जो बहुत ही मुश्किल था। इस कारण उसमें कम नंबर मिले। दूसरी बार ऐच्छिक विषय बदल दिया, परंतु मुझे पढ़ने का टाइम नहीं मिला। इस बार एंथ्रोपोलॉजी ऐच्छिक विषय के तौर पर लिया और सारी रणनीति बदल दी। दोस्तों से प्रतिक्रिया ली और कामयाब रही। ओडिशा को पसंदीदा कैडेर रखी हूं। क्या मिलेगा, पता नहीं। पर आशावान हूं कि ओडिशा ही मिलेगा। अगर कहीं और भी मिले तो उतनी ही दिलचस्पी के साथ लोगों के लिए काम करूंगी। यूपीएससी की तैयारी करने वालों से यही कहना है कि लगातार प्रयास कीजिए। एक बार में न हो तो फिर प्रयास करें, क्योंकि यह मेडिकल व आइआइटी जैसे एंट्रेंस एक्जाम नहीं हैं। यूपीएससी अलग है।

chat bot
आपका साथी