विवाह रोकने के बाद स्वावलंबी होने के मार्ग पर 'लीजा'

बाल विवाह एक कुत्सित परंपरा है। आज के आधुनिक समाज में भी यह परंपरा विद्यमान है।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 23 Nov 2021 08:00 AM (IST) Updated:Tue, 23 Nov 2021 08:00 AM (IST)
विवाह रोकने के बाद स्वावलंबी होने के मार्ग पर 'लीजा'
विवाह रोकने के बाद स्वावलंबी होने के मार्ग पर 'लीजा'

संसू, झारसुगुड़ा : बाल विवाह एक कुत्सित परंपरा है। आज के आधुनिक समाज में भी यह परंपरा विद्यमान है। इस प्रकार की प्रथा को रोकने के लिए वैसे तो कानूनी व्यवस्था है। फिर भी कुछ लोग इसकी अवेहलना करने में पीछे नहीं हटते। कम उम्र में विवाह कर मातृत्व का बोझ देने के लिए मता-पिता भी अपनी बेटियों को बाध्य करते हैं। हालांकि 'लीजा' एक वृतिक्रम है। उसके परिवार के लोग उसे विवाह के लिए बाध्य कर रहे थे। विवाह कि सारी तैयारी भी कर चुके थे। परंतु लीजा की जिद के आगे वे सफल नहीं हो पाए। लीजा ने स्वयं चाइल्डलाइन को फोन कर दिया था। उसके बाद जिला शिशु कल्याण समिति व जिला सुरक्षा शाखा के हस्तक्षेप के बाद विवाह रोका गया। आज लीजा स्वयं अपने पैर में खड़ा होकर स्वावलंबी होने की राह पर है। वह दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत बन चुकी है। जिला के कोलाबीरा थाना के भालूपाड़ा में 10 जनवरी 2019 को लीजा मांझी के विवाह के लिए सभी प्रकार की तैयारी की गई थी। अपनी इच्छा के विरुद्ध हो रहे विवाह को रोकने के लिए लीजा ने आंगनबाड़ी की महिला से फोन नंबर लेकर चाइल्डलाइन से संपर्क किया और उन्हें सारी जानकारी दी। इसके बाद चाइल्डलाइन, शिशु सुरक्षा समिति व पुलिस के अधिकारी लीजा के घर पहुंचे और विवाह रुकवाया। इसके बाद लीजा को सीडब्ल्यूसी के समक्ष हाजिर कर शिशु यत्न अनुष्ठान में रखा गया। सीडब्ल्यूसी व डीसीपीयू की मदद से लीजा ने अपनी पढ़ाई भी जारी रखी। मैट्रिक की परीक्षा देकर उत्तीर्ण भी हुई। इसके बाद आर्थिक प्रोत्साहन राशि प्रति माह दो हजार रुपये प्रदान करने के साथ लीजा को उसके परिवार के पास भेजा गया। वहीं बीजु सुरक्षा योजना के तहत सहायता राशि प्रदान की गई। वह वर्तमान में आइटीआइ में इलेक्ट्रॉनिक ट्रेड में अध्यनरत है। लीजा ने कम उम्र में अपने विवाह व परिजन का विरोध कर स्वावलंबी होने की दिशा में अग्रसर है। आइटीआइ की पढ़ाई पूरा करने के बाद वह एक कुशल श्रमिक के रूप में काम कर सकेगी।

जब लीजा से बात की गई तो उसने कहा कि कम उम्र में उसकी शादी एक अभिशाप की तरह थी। वह नहीं चाहती थी, फिर भी परिवार के लोग उसे विवाह करने के लिए बाध्य कर रहे थे। जबकि उसने पढ़ाई कर स्वयं को स्वावलंबी बनाने का लक्ष्य रखा था। आने वाले दिनों में वह नौकरी कर आर्थिक दृष्टिकोण से स्वावलंबी बन कर अपना जीवन खुद संवारेगी। विवाह को रोक कर लीजा दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत बन गई है। उसका यह साहसिक कदम दूसरों के लिए अनुकरणीय है। लीजा के इस साहसिक कदम के लिए वर्ष 2020 में जिला स्तरीय महिला दिवस पर जिलाधीश ने स्वतंत्र प्रोत्साहन राशि के रूप में पांच हजार रुपये प्रदान कर उसे सम्मानित किया था। लीजा बाल-विवाह का प्रतिरोध कर एक उदाहरण बन गई है। वह वर्तमान में अन्य किशोरियों को कम उम्र में विवाह नहीं करने के लिए समझा रही है। किशोरियों को पढ़ाई कर स्वावलंबी बनने कि प्रेरणा प्रदान कर रही है।

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