महानदी के गर्भ में दिखा 500 वर्ष पुराना मंदिर: पद्मावती गांव में जमी लोगों की भीड़

ओडिशा की महानदी में करीबन 500 साल पुराने गोपीनाथ मंदिर के अवशेष दिखाई दे रहे है। जिसने पूरे राज्‍य का ध्‍यान अपनी और आकर्षित किया हुआ है।

By Babita kashyapEdited By: Publish:Fri, 12 Jun 2020 01:08 PM (IST) Updated:Fri, 12 Jun 2020 01:08 PM (IST)
महानदी के गर्भ में दिखा 500 वर्ष पुराना मंदिर: पद्मावती गांव में जमी लोगों की भीड़
महानदी के गर्भ में दिखा 500 वर्ष पुराना मंदिर: पद्मावती गांव में जमी लोगों की भीड़

भुवनेश्वर, शेषनाथ राय। नयागड़ जिले के भापुर ब्लाक पद्मावती के समीप से बहने वाली महानदी में करीबन 500 साल पुराने एक गोपीनाथ मंदिर (राधाकृष्ण-विष्णु) के अवशेष दिखाई देने को लेकर प्रदेश में चहुंओर चर्चा हो रही है। कुछ साल पहले भी इस मंदिर का अग्र भाग नदी का पानी कम हो जाने से दिखाई दिया था, इस साल मंदिर का कुछ भाग पुन: दिख रहा है। 

 'इंडियन नेशनल ट्रस्ट फार आर्ट एंड कल्चरल हेरीटेज' (इनटाक) के 'डाक्यूमेंटेशन ऑफ दि हेरिटेज आफ दि महानदी वैली, प्रोजेक्ट' के अधीन आने से इसने पूरे राज्य का ध्यान आकर्षित किया है। यह खबर सामने आते ही अब इस जगह पर लोगों की भीड़ भी जम रही है। पद्मावती गांव के लोग तथा इतिहासकारों के मुताबिक पहले इस जगह पर पद्मावती गांव था। यह पद्मावती गांव का मंदिर है। 

महानदी के गर्भ में समाया पद्मावती गांव 

 महानदी के गतिपथ बदलने के साथ बाढ़ आने के कारण 1933 में पद्मावती गांव सम्पूर्ण रूप से महानदी के गर्भ में समा गया था। नदी को गतिपथ बदलकर पद्मावती गांव को अपने गर्भ में लेने में 30 से 40 साल का समय लगा। धीरे-धीरे पद्मावती गांव ने गहरे जल में समाधि ले ली। पद्मावती गांव के लोग वहां से स्थानान्तरित होकर रगड़ीपड़ा, टिकिरीपड़ा, बीजीपुर, हेमन्तपाटणा, पद्मावती (नया) आदि गांव में बस गए। पद्मावती गांव के लोग हथकरघा, कुटीर शिल्प सामग्री निर्माण के साथ कैवर्त के तौर पर कार्य कर रहे थे। अपनी सामग्री पश्चिमांचल में भेज रहे थे। उस समय परिवहन के लिए जलपथ का व्यापक रूप से प्रयोग होने से पद्मावती गांव के लोगों ने नदी किनारे अपना डेरा डाला था।

400 से 500 साल पुरानी  हैै मंदिर की निर्माण शैली  

इस गांव एवं गांव के मंदिर के नदी में लीन होने के 100 से 150 साल लगने की बात वरिष्ठ अनुसंधानकर्ता अनील धीर ने कही है। धीर ने कहा है कि मंदिर के निर्माण शैली आज से 400 से 500 साल पुरानी है। नदी के गर्भ में लीन होने वाली इस मंदिर की प्रतिमा वर्तमान पद्मावती गांव के कैवर्तसाही के पास निर्माण किए गए मंदिर में स्थापित किए जाने की बात कही जाती है। उसी तरह से नदी के गर्भ में लीन होने वाले पद्मावती गांव के जगन्नाथ मंदिर की प्रतिमा टिकिरीपड़ा में दधिवामनजीउ मंदिर में, पद्मावती गांव के पद्मनाभ सामंतराय के द्वारा प्रतिष्ठित रास विहारी देव मंदिर की प्रतिमा वर्तमान समय में पद्मावती में है। मूल पद्मावती गांव नदी के गर्भ में लीन होने के बाद इस तरह के अनेकों मंदिर की प्रतिमा को उठाकर नए पद्मवती गांव में स्थापित किया गया है। 

इस गांव में अनेक मंदिर होने की बात स्थानीय ग्राम के लोग कहते हैं। नदी का पानी कम होने के बाद भी सभी मंदिर स्पष्ट रूप से नहीं दिखते हैं। गोपीनाथ मंदिर की ऊंचाई अधिक होने से पानी कम होने के बाद यह दिखाई देने की बात पिछले 40 साल से महानदी में नाविक के तौर पर काम करने वाले आनंद बेहेरा ने कही है। 

इनटाक का यह अभिनव प्रयास

अनिल धीर वरिष्ठ गवेषक तथा इंटाक महानदी प्रोजेक्ट मुख्य अनिल धीर ने कहा है कि इंडियन नेशनल ट्रस्ट फार आर्ट एण्ड कल्चरल हेरिटेज (इनटाक) की तरफ से डाक्यूमेंटेशन ऑफ दि हेरिटेज आफ दि महानदी रिवर वैली प्रोजेक्ट शुरु किया गया है। छत्तीसगढ़ से महानदी के निकलने वाले स्थान से जगतसिंहपुर जिले के पारादीप तक 1700 किमी. (दोनों तरफ) के किनारे से 5 से 7 किमी. के बीच सभी पुरानी कीर्तियों की पहचान की जाएगी। इन तमाम सामग्रियों की रिकार्डिंग की जा रही है। फरवरी महीने में इसकी सूची प्रकाशित की जाएगी। 

 धीर ने कहा है कि ओडिशा में ऐसे बहुत से मंदिर हैं पानी में डूबे हुए हैं। इसमें हीराकुद जलभंडार में 65 मंदिर शामिल हैं। नदियों में भी बहुत से मंदिर समाहित हैं, जिनका सर्वे होना चाहिए। कुछ मंदिर अभी भी खड़े हैं और कुछ ढह गए हैं। एक माडल के तौर पर गोपीनाथ मंदिर को पुन: महानदी से निकालकर जमीन में स्थापित किया जाना चाहिए। 

 पद्मावती ग्रामवासी सनातन साहू ने कहा है कि सन् 1933 में हमारा गांव सम्पूर्ण रूप से नदी में विलीन हो गया था। उस समय हमारी उम्र 6 साल थी। हम पांच भाई-बहनों ने पद्मावती यूपी स्कूल में शरण ली थी। उस साल बाढ़ आने के साथ नदी गतिपथ बदलकर हम सबके लिए काल बन गई थी।

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