Snana Yatra 2021: लीलामय श्री जगन्नाथ की स्नान यात्रा,108 घड़े से करवाया गया चतुर्धा मूर्तियों को स्नान
Snana Yatra 2021 महाप्रभु श्री जगन्नाथ को गर्मी से निजात पाने के लिए चंदन का लेप लगाया जाता है उसके बाद महाप्रभु को पहंडी बिजे करवाकर स्नान मंडप पर लाया जाता है। जहां चतुर्धा मूर्तियों को 108 घड़ों के जल से स्नान कराया जाता है।
भुवनेश्वर, जागरण संवाददाता। साल भर पुरी के जगन्नाथ मंदिर के रत्न सिंहासन पर विराजमान रहने वाले महाप्रभु श्री जगन्नाथ ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन मंदिर से बाहर आते हैं और भक्तों के सम्मुख स्नान वेदी पर प्रत्यक्ष स्नान करते हैं। महाप्रभु की स्नान यात्रा से लेकर रथयात्रा एवं उसके बाद जगन्नाथ मंदिर में वापस लौटने तक की अवधि कई लोकाचार से संबंधित है।
स्नानयात्रा से पहले महाप्रभु को गर्मी से निजात पाने के लिए चंदन यात्रा पर जाते हैं जब उनके उत्सव प्रतिमा को तालाब में घुमाया जाता है और शीतलता प्रदान करने के लिए चंदन का लेप लगाया जाता है। आमतौर पर पवित्र स्नान पूर्णिमा के दिन महाप्रभु को पहंडी बिजे करवाकर स्नान मंडप पर लाया जाता है। जहां 108 घड़े से चतुर्धा मूर्तियों को स्नान कराया जाता है।
स्नान पूर्णिमा के दिन महाप्रभु भक्तों को सार्वजनिक तौर पर दर्शन देने के लिए रत्न सिंहासन से उतरकर मंदिर से बाहर आते हैं। साल में यह पहला मौका होता है जब भक्त अपने आराध्य भगवान को सम्मुख देख सकता है। श्री जगन्नाथ संस्कृति के बहुविध आयामों में से स्नान पूर्णिमा एक महत्वपूर्ण उत्सव है जहां चारों विग्रहों के साथ भगवान की उत्सव प्रतिमा मदन मोहन को भी विराजित किया जाता है। महाप्रभु श्री जगन्नाथ को 35 घड़े जल से नहाया जाता है बड़े भाई बलदेव जी को 33 एवं देवी सुभद्रा को 22 घड़े जल से स्नान कराया जाता है।
चक्र सुदर्शन को 18 घड़े जल से स्नान कराया जाता है। यह जल मंदिर परिसर में बने स्वर्ण कूप से संग्रहित किया जाता है जिसमें जाली लगी हुई होती है और इसके जल को कोई उपयोग नहीं करते। यह जल स्वर्ण कूप से केवल स्नान पूर्णिमा के पहले दिन महाप्रभु के स्नान हेतु संग्रहित किया जाता है। महाप्रभु को शीतलता प्रदान करने के लिए जल में चंदन, कर्पूर ,मुथा, देवदार, लोधा, हरिताल, बहेड़ा आदि मिलाकर उसे सुगंधित किया जाता है। आमतौर पर रत्न सिंहासन पर विराजमान महाप्रभु का बिम्ब स्नान कराया जाता है। जहां पूजा पंडा द्वारा विग्रहों के प्रतिबिंब दर्पण में देख उनकी दैनिक स्नान नीति संपादित होती है। लेकिन वास्तव में विग्रहों को स्नान पूर्णिमा के दिन ही शीतल जल से स्नान कराया जाता है। लोकाचार देखिए कि शीतल जल से अत्यधिक स्नान करने से महाप्रभु बीमार पड़ जाते हैं और उनका उपचार चलता है।