बेजुबान जानवर के लिए मसीहा बनी सस्मिता, घर में हर जगह नजर आते हैं आवारा कुत्ते
सुंदरगढ़ शहर के ब्राह्मणपड़ा निवासी सस्मिता जोशी आवारा कुत्तों के लिए मसीहा है वे विदेशी नस्ल के कुत्तों की तरह ही आवारा कुत्तों का भी ध्यान रखती है। इसके लिए उन्हें परिवार के विरोध का भी सामना करना पड़ा।
सुंदरगढ़, जागरण संवाददाता। पालतू जानवर रखने का शौक लगभग सभी को होता है, पर सबसे लोकप्रिय पालतू जानवर कुत्ते को माना जाता है। लेकिन देशी कुत्तों की किस्मत इस मामले में जरा कमजोर है। उन्हें न घर मिलता है, न मानव परिवार। बच्चे पत्थर मारते हैं, सब दुत्कार कर भगाते हैं। किसी दुर्घटना में घायल हो गए, तो तडप तड़प कर मर जाने पर भी कोई उन्हें पलट कर नहीं देखता।
घर में दी आवारा कुत्तों को जगह
कभी-कभी मन में सवाल उठता है- क्या यह दुनिया उनकी नहीं। यह सोच है सुंदरगढ़ शहर के ब्राह्मणपड़ा निवासी सस्मिता जोशी की। हालांकि उनके घर में भी विदेशी नस्ल के कुत्ते पाले जाते थे। पर आवारा कुत्तों को देखकर उनके मन में दया, सहानुभूति उमड़ती थी। 15 साल पहले इन्हीं भावनाओं ने उन्हें विचलित कर दिया और वह सड़क पर घूमने वाले आवारा कुत्तों की सेवा के लिए आगे आईं। उन्होंने अब तक सैंकड़ों कुत्तों को अपने घर में जगह दी और उनका लालन पालन किया। एक समय में उनके घर में एक साथ 30 कुत्ते हुआ करते थे। आज भी उनके घर में हर जगह यह देशी आवारा कुत्ते नजर आते हैं।
परिवार ने किया विरोध
सस्मिता और उनके परिवार के साथ सोफे, बिस्तर पर बैठे या सोए हुए दिखाई देते हैं। सस्मिता बताती हैं कि यह सब इतना आसान नहीं था। शुरु में उन्हें अपने परिवार से ही विरोध का सामना करना पड़ा। जब परिवार वाले राजी हो गए, तो पड़ोसियों का विरोध सहना पड़ा। पर धीरे-धीरे पड़ोसी भी अभ्यस्त हो गए हैं। पर कुछ लोग अब भी विरोध करते हैं। पिछले दिनों एक व्यक्ति ने जहर देकर उनके तीन कुत्तों की जान ले ली। उनकी इच्छा है कि किसी स्वतंत्र स्थान पर वह इन आवारा पशुओं, जिनमें न केवल कुत्ते, बल्कि गाय बैल और दूसरे आवारा जानवर भी शामिल हैं, को रखकर उनका पालन करें। पर इसके लिए उन्हें वित्तीय सहायता की जरूरत होगी। पशु सुरक्षा से संबंधित संस्थाओं से वह सहयोग की कामना करती हैं और प्रशासन से रिहायशी इलाके से बाहर कोई सुरक्षित स्वतंत्र जगह की।
क्या कहते हैं पडोसी
1. अर्पण जोशी (भतीजा): पहले पहले जब चाची ने इन कुत्तों को पालना शुरु किया, तो हमें भी अजीब लगा। पर बाद में एहसास हुआ कि इनका भी जीवन है और इन्हें भी हमारी तरह जीने का अधिकार है। हमने देखा है कि यह कुत्ते भी बड़े संवेदनशील हैं तथा इंसानी भावनाओं को समझते हैं। किसी कुत्ते पर चाची नाराज होती हैं, तो वह किसी बच्चे की तरह छिप जाता है, ताकि डांट न सुननी पड़े।
2. मनीषा जोशी (पड़ोसी): सस्मिता ने आवारा कुत्तों को अपना कर बड़ा काम किया है, जो हमसे नहीं हो? सकता। यह उनकी एक मां की तरह सेवा करती है, देखभाल करती है। बीमार होने पर इलाज करवाती है। पर पशु डाक्टर भी अधिकतर विदेशी नस्ल के कुत्तों का इलाज करना चाहते हैं, इनका नहीं।
3. पद्मनाभ पुरोहित (पड़ोसी): सस्मिता अच्छा कार्य कर रही है। बेघर, बेजुबान कुत्तों को अपने परिवार का हिस्सा बनकर। यह उसका शौक भी है, और सेवा कार्य भी। पर मेरे खयाल से यह शगल रिहायशी इलाके के लिए ठीक नहीं इसके लिए कोई स्वतंत्र स्थान होना चाहिए।