डेढ़ साल में नीलाचल के 23 विस्थापितों की अकाल मृत्यु: कागजों में सिमट कर रही गई है सरकार की नीति

कलिंगनगर में उद्योग के लिए अपने घर जमीन गंवा विस्‍थापित होने वाले लोगों का बुरा हाल है। मार्च 2020 से अब तक 23 कर्मचारियों की अकाल मौत हुई है। दो दिन पहले एक कर्मचारी दुर्गा मुंडा (36) की मौत के बाद स्‍थानीय लोगों में आक्रोश का माहौल है।

By Babita KashyapEdited By: Publish:Fri, 24 Sep 2021 10:43 AM (IST) Updated:Fri, 24 Sep 2021 10:48 AM (IST)
डेढ़ साल में नीलाचल के 23 विस्थापितों की अकाल मृत्यु: कागजों में सिमट कर रही गई है सरकार की नीति
मार्च 2020 से अब तक 23 कर्मचारियों की अकाल मौत

जाजपुर, जागरण संवाददाता। कोरोना काल में इस्पात राजधानी कलिंगनगर में विकराल रूप देखने को मिला है। उद्योग के लिए अपने घर जमीन गंवा कर विस्थापित होने वाले परिवार के लोग आज जीवन जीविका के लिए संघर्ष कर रहे हैं। खासकर नीलाचल कारखाना को कोरोना के समय बंद कर दिए जाने से विस्थापितों की मुसीबत बढ़ गई है दो दिन पहले ही कारखाना के एक कर्मचारी दुर्गा मुंडा (36) को जान से हाथ धोना पड़ा है, जिसे लेकर स्थानीय लोगों में आक्रोश का माहौल है।

मिली जानकारी के मुताबिक धन की कमी के चलते इलाज के अभाव में केवल दुर्गा की ही मृत्यु नहीं हुई है बल्कि मार्च 2020 से अब तक 23 कर्मचारियों की अकाल मौत हुई है। कारखाना के बंद हो जाने एवं वेतन ना मिलने के कारण इस पर निर्भर रहने वाले परिवार के सदस्यों की चिंता बढ़ गई और वे विभिन्न बीमारी की चपेट में आने लगे। मार्च 2020 से अब तक 23 लोगों की जान चली गई है। दो दिन पहले जान गंवाने वाले दुर्गा मुंडा बीमार होने के बाद एक महीने से बिस्तर पर थे। धन की कमी के कारण मुंडा का इलाज नहीं हो सका। कारखाना की तरफ से कर्मचारियों के लिए मुफ्त में इलाज करने की व्यवस्था को भी इस दौरान बंद कर दिया गया था। ऐसे में दो दिन पहले दुर्गा मुंडा ने इलाज के अभाव में दम तोड़ दिया। छोटा बेटा सुरेन्द्र पिछले अगस्त महीने में आन्ध्र प्रदेश में एक चिंगुड़ी कारखाना में बंधुआ मजदूर के तौर पर काम करता है। बड़ा बेटा श्रमिक के तौर पर काम करता है।

दुर्गा सन् 1996 से विस्थापित होने के बाद से अपने परिवार के साथ गोवर्द्धनपुर पंचायत के गोपपुर में रहते थे। दुर्गा की मृत्यु की खबर सामने आने के बाद विभिन्न संगठनों ने कंपनी के खिलाफ आन्दोलन करने की बात कही है। कारखाने में सहभागी संस्था के मनमाने रवैये के चलते कोरोना के समय कारखाना को बंद कर देने एवं वेतन ना देने से इस तरह की परिस्थिति उत्पन्न होने का आरोप स्थानीय लोगों ने लगाया है। इस घटना को लेकर बुद्धिजीवी वर्ग के लोगों ने कड़ी प्रतिक्रिया जतायी है।

गौरतलब है कि राष्ट्रीय उद्योग नीलाचल कारखाना को जब स्थापित किया गया तब अन्य लोगों की ही तरह बागड़िया पंचायत के पसिहुडी गांव के दुर्गा मुंडा का परिवार भी विस्थापित हुआ था। सरकार की विस्थापित नीति के मुताबिक दुर्गा को कारखाना में नियुक्ति मिली थी। उन्हें मासिक 40 हजार रुपया वेतन मिल रहा था। वह कारखाना के कोक साइट में काम करते थे। इससे उनकी पत्‍नी, दो बेटे, दो बेटी वाला परिवार खुशी-खुशी जीवन यापन कर रहा था। कोरोना महामारी के कारण पिछले डेढ़ साल से कारखाना बंद है, ऐसे में मुंडा के साथ तमाम विस्थापित परिवार के लोगों की आर्थिक स्थिति बदहाल हो गई। परिवार को खाने के लाले पड़ गए।

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