महाप्रभु जगन्नाथ गुण्डिचा मंदिर में कर रहे हैं विश्राम, जानें क्यों खास है ये स्थान
Jagannath Rathyatra गुण्डिचा मंदिर रथयात्रा के समय पुरी धाम के आकर्षण का दूसरा केन्द्र बन जाता है। भगवान जगन्नाथ सात दिनों तक अपने बड़े भाई बलभद्र लाडली छोटी बहन सुभद्रा तथा सुदर्शन जी के साथ विश्राम कर रहे हैं।
भुवनेश्वर, शेषनाथ राय। उत्कलीय स्थापत्य एवं मूर्तिकला का बेजोड़ उदाहरण हैं श्री जगन्नाथ पुरी धाम का गुण्डिचा मंदिर। यहा पर रथयात्रा के क्रम में भगवान जगन्नाथ सात दिनों तक अपने बड़े भाई बलभद्र, लाडली छोटी बहन सुभद्रा तथा सुदर्शन जी के साथ विश्राम कर रहे हैं। अनादिकाल के उस मंदिर को ब्रह्मलोक, सुंदराचल तथा जनकपुरी भी कहते हैं। कुल लगभग 5 एकड भू-भाग पर यह मंदिर हरे-भरे बाग-बगीचों के मध्य अवस्थित है जो देखने में बहुत ही भव्य, सुंदर और आकर्षक है।
पुरी धाम के आकर्षण का दूसरा केन्द्र
रथयात्रा के समय 9 दिनों तक पुरी धाम के आकर्षण का दूसरा केन्द्र बन जाता है। जिस प्रकार जगन्नाथ मंदिर का निर्माण किया गया है ठीक उसी प्रकार गुण्डिचा मंदिर का भी किया गया है जो कि हल्के भूरे रंग के सुंदर कलेवर में समस्त जगन्नाथ भक्तों को लुभाता है। गुण्डिचा मंदिर का पिछला हिस्सा विमान, उसके अन्दर का जगमोहन और फिर भोगमण्डप है। चतुर्धा देवविग्रहों के गुण्डिचा मंदिर में निवास के क्रम में सात दिनों तक वहां मनाये जाने वाले महोत्सव को गुण्डिचा महोत्सव कहते हैं।
कहते हैं कि इस मंदिर को मालवा नरेश इन्द्रद्युम्न ने अपनी महारानी गुण्डिचा के नाम पर भगवान विश्वकर्मा से मंदिर के महावेदी पर बनवाया था। गुण्डिचा मंदिर की रत्नवेदी चार फीट ऊंची तथा 19 फीट लंबी है। मंदिर के आसपास का क्षेत्र श्रद्धाबाली कहलाता है जहां कि बालुकाराशि के कण-कण में श्रद्धा है।
नित्य होती है पूजा-अर्चना
पहली बार यहीं पर राजा इन्द्रद्युम्न ने एक हजार अश्वमेध यज्ञ किया था। सात दिनों के प्रवास के क्रम में चतुर्धा देवविग्रहों को मंदिर के रत्नवेदी पर आरुढ कराकर उनकी नित्य पूजा-अर्चना की जाती है। भगवान जगन्नाथ, आनन्दमय चेतना के प्राण, अपनी जन्मस्थली गुण्डिचा घर में बड़े ही आनन्दमय तरीके से 13 जुलाई से विश्राम कर रहे हैं। सात दिनों तक विश्राम के उपरांत चतुर्धा देवविग्रह 20 जुलाई को बाहुडा विजयकर श्रीमंदिर के सिंहद्वार पधारेंगे। 21 जुलाई को देवविग्रहों का सोना वेश होगा। 22 जुलाई के उनका अधरपणा तथा 23 जुलाई को नीलाद्रि विजयकर महाप्रभु अपने श्रीमंदिर के रत्नवेदी पर विराजमान होकर पूर्ववत अपने भक्तों को दर्शन देंगे।