ओडिशा इस्पात उद्योग के लिए लौह अयस्क का संकट, लाखों का रोजगार होगा प्रभावित

पीएमएआई ने कहा प्रदेश के उद्योगों के लिए कच्चे माल की व्यवस्था राज्य सरकार को सुनिश्चित करनी चाहिए। आंध्र प्रदेश अन्य राज्यों को लौह अयस्क निर्यात करने से राज्य सरकार को 16000 करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है।

By Babita KashyapEdited By: Publish:Tue, 22 Jun 2021 09:26 AM (IST) Updated:Tue, 22 Jun 2021 09:26 AM (IST)
ओडिशा इस्पात उद्योग के लिए लौह अयस्क का संकट, लाखों का रोजगार होगा प्रभावित
ओडिशा इस्पात उद्योग के लिए लौह अयस्क का संकट

भुवनेश्वर, जागरण संवाददाता। ओडिशा से खदान का उत्पादन होता है। लीज धारक खदान मालिकों द्वारा उत्पादित खदानों को अन्य राज्यों को भेजने से हर साल 16245 करोड़ रुपए का राजस्व नुकसान हो रहा है। यही स्थिति यदि जारी रहती है तो फिर 50 साल में राज्य को 8 लाख 12 हजार करोड़ रुपए का राजस्व नुकसान होगा। राज्य इस्पात एवं खदान विभाग के प्रमुख सचिव को एक पत्र लिखकर पैलेट मैन्युफैक्चरिंग के मैन्युफैक्चर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (पीएमएआई) ने यह जानकारी दी है।

पीएमएआई ने कहा है कि राज्य के बाहर मात्राधिक लौह अयस्क भेजे जाने से राज्य में मौजूद उद्योगों के लिए कच्चे माल की कमी हो रही है एवं लौह अयस्क का मूल्य बढ़ गया है, जो कि आगे चलकर राज्य में लाखों की संख्या में रोजगार के ऊपर प्रभाव डाल सकता है। विडंबना की बात है की राज्य में मौजूद इस्पात कारखानों को लौह अयस्क के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है जिससे राज्य के राजस्व पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ने के साथ ही ओडिशा में 10 लाख से अधिक जीविका पर भी अब खतरा मंडराने लगा है। राज्य के बाहर बड़ी मात्रा में लौह अयस्क निर्यात किया जा रहा है।

इसमें महाराष्ट्र, गुजरात, पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश एवं कर्नाटक जैसे राज्य शामिल हैं। इन राज्यों में मौजूद कारखानों के लिए कच्चा माल भेजे जाने की बात पीएमएआई के महासचिव दीपक भटनागर ने कही है। भटनागर ने कहा है कि राज्य में मौजूद इस्पात कारखाने में कच्चे माल की का मुख्य कारण उत्पादित खदान का लगभग 50% हिस्सा अन्य राज्यों के कारखानों को भेजा जाना है। परिणाम स्वरूप अन्य राज्य ओडिशा राज्य की तुलना में एवं अन्य वैधानिक दे के बाबत अधिक राजस्व पा रहे हैं। पीएमएआई के इस पत्र के मुताबिक ओडिशा में वर्तमान भारत के 33% पेलेट (31 एमटीपीए), 25% इस्पात (33 एमटीपीए) एवं 33% स्पंज (15 एमटीपीए) उत्पादन क्षमता है, जो कि देश की सर्वाधिक है। उचित मूल्य में लौह अयस्क की कमी के कारण ये उद्योग संस्थान बंद हो जाते हैं या फिर अपनी क्षमता से कम उत्पादन करते हैं तो फिर राज्य सर्वाधिक उत्पादन करने के श्रेय से भी वंचित हो जाएगा।

राज्य में मौजूद इस्पात कारखानों के लिए सालाना लगभग 81 टन लौह अयस्क की जरूरत है। इन कारखानों की आवश्यकता को ओडिशा में मौजूद व्यवसायिक खदानों, जिसका कुल उत्पादन क्षमता सालाना 118.36 टन है, राज्य सरकार की उचित नीति की मदद से आसानी से पूरा किया जा सकता है। हालांकि पर्यावरण मंजूरी सीमा से कम उत्पादन एवं उत्पादित लौह अयस्क का अधिक हिस्सा राज्य के बाहर भेजे जाने से राज्य में मौजूद इस्पात कारखानों के लिए कच्चे माल की कमी हो रही है, पीएमएआई के महासचिव दीपक भटनागर ने यह जानकारी दी है।

राज्य सरकार के राजस्व आय के साथ ओडिशा में मौजूद इस्पात कारखाना एवं इससे सृष्टि होने वाले लाखों लाख रोजगार की सुरक्षा के लिए अंत:राज्य लौह अयस्क निर्यात एवं राज्य आधारित उद्योगों के लिए कच्चे माल की समस्या के समाधान हेतु हस्तक्षेप करने के लिए राज्य सरकार से उन्होंने अनुरोध किया है। इसके साथ ही राज्य के इस्पात उद्योग को स्थाई रूप से कच्चामाल आपूर्ति व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकार की तरफ से पूर्व निर्गमन नीति को पुनः लागू करने की बात उन्होंने कही है।

व्यवसायिक खदानों द्वारा उत्पादित लौह अयस्क, राज्य के इस्पात कारखानों के लिए सुनिश्चित करने हेतु राज्य सरकार को एक नीति बनानी चाहिए। राज्य के बाहर खदान निर्यात पर कर्नाटक में पूरी तरह से रोक है। इसके चलते कर्नाटक में स्थापित कारखानों को अपनी क्षमता बढ़ाने का मार्ग खुला हुआ है जिससे राज्य सरकार का राजस्व, राज्य में रोजगार की सुविधा एवं छोटे एवं मझोले व्यापारियों को लाभ मिल रहा है।

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