उतना ही लो थाली में जूठा न जाए नाली में, दुनिया में भारत एक ऐसा देश है जहां अन्न को देवता माना जाता

शादी समारोह में तो लोग जिस प्रकार से प्लेट में खाद्य लेते हैं और जितना खा सके खाए बाकी प्लेट में ही छोड़ देते हैं। शायद उन्हें पता नहीं है कि हमारे देश में आज भी ऐसेलोगों की आबादी कम नहीं जिन्हें बमुश्किल दो वक्त की रोटी नसीब होती है।

By Priti JhaEdited By: Publish:Mon, 07 Jun 2021 10:15 AM (IST) Updated:Mon, 07 Jun 2021 10:15 AM (IST)
उतना ही लो थाली में जूठा न जाए नाली में, दुनिया में भारत एक ऐसा देश है जहां अन्न को देवता माना जाता
उतना ही लो थाली में जूठा न जाए नाली में,

शेषनाथ राय, भुवनेश्वर। पूरी दुनिया में भारत ही एक ऐसा देश है जहां अन्न को भी देवता माना जाता रहा है। आज भी फसल जब पक कर तैयार हो जाती है तो पहले उसकी पूजा की जाती है और फिर उसके उपभोग करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। हालांकि शहरी क्षेत्र में रहने वाले अधिकांश लोगों को शायद अन्न की महत्ता की जानकारी नहीं है। यही कारण है कि आज प्राय: शादी समारोह, उत्सव आदि सामूहिक भोज या घरों में भी लाखों लोगों के खाने को नालियों में फेंक दिया दिया जाता है। शादी समारोह में तो लोग जिस प्रकार से प्लेट में खाद्य लेते हैं और मनमर्जी से जितना खा सके खाए बाकी प्लेट में ही छोड़ देते हैं। शायद उन्हें पता नहीं है कि हमारे देश में आज भी ऐसे लोगों की आबादी कम नहीं जिन्हें बमुश्किल दो वक्त की रोटी नसीब होती है।

ऐसे में अन्न बरबाद न होने पाए इसके लिए राजधानी भुवनेश्वर में पहली बार बाबा रामदेव रुणिचावाले ट्रस्ट एवं अब राजस्थान सेवा संस्थान की तरफ से इतना लो थाली में जूठा न जाए नाली में के नारे के साथ मुहिम शुरू की गई है।

जानकारी के मुताबिक उतना ही लो थाली में जूठा न जाए नाली में नामक एक मुहिम चलाकर राजस्थान सेवा संस्थान ने न सिर्फ शादी ब्याह जैसे समारोह में अन्न की बर्बादी को रोका बल्कि समाज के प्रति अन्न के महत्व को भी बखूबी परोसा। संस्थान की तरफ से विभिन्न समारोह में इसके लिए बकायदा पोस्टर एवं बैनर लगाए जाते हैं। इसके अलावा जहां पर जूठे बर्तन रखने की व्यवस्था होती है वहां पर संस्थान के कार्यकर्ता खड़े रहते हैं और लोगों में यह संदेश देने का प्रयास करते हैं कि वह जो भी खाना अपनी थाली में लिए हैं उसे खाकर ही थाली को रखें अन्यथा कार्यकर्ता स्वयं थाली मैं बचे हुए खाने को खाते है जिससे आदमी शर्मिंदगी से जूठा छोड़ना बंद कर देता है। आज हर समाज इस प्रकार के प्रचार प्रसार करने लगा है जिससे लोगो में अन्न को जूठा नही छोड़ने के लिए जागृति फ़ैल रही है।

इस संदर्भ में संस्थान के वरिष्ठ सदस्य तथा भुवनेश्वर में इस मुहिम की शुरूआत करने वाले लालचन्द मोहता ने कहा है कि मैं राजस्थान जोधपुर में एक समारोह में भाग लेने गया था, जहां पर इस तरह का अनूठा प्रयास देखने को मिला। समारोह में जहां कहीं भी जूठा बर्तन रखने की व्यवस्था की गई थी, वहां पर कुछ लोग खड़े थे और जो कोई भी व्यक्ति खाना खाने के बाद टोकरी में बर्तन रखने आता था, यदि उसके बर्तन में जूठा होता था तो वहां पहले से खड़े कार्यकर्ता उन्हें उक्त खाद्य न फेंकने की अपील करने के साथ यह कहते सुने जाते हैं कि खाद्य सामग्री मत फेंकिए, आप खुद खा लीजिए या फिर अपने हाथों से मुझे खिलाइए। अन्न का अपमान मत करिए। इसके लिए समारोह में बकायदा माइक के जरिए भी लोगों से अपील की जाती थी। हमें यह उनका यह प्रयास अच्छा लगा और इसे हमने भुवनेश्वर में बाबा रामदेव रुणिचा वाले मंदिर ट्रस्ट की तरफ से आयोजित समारोह में प्रयोग किया। समान तरीके से इस व्यवस्था को हमने यहां अपनाया। पहली बार राजधानी भुवनेश्वर में यह व्यवस्था शुरू हुई तो लोगों को थोड़ा अजीब लगा, मगर लोगों ने हमारे इस प्रयास को धीरे धीरे ही सही अपनाना शुरू कर दिया है।

मोहता ने बताया कि इस मुहिम के कई फायदे हैं, एक तो हम अन्न की बर्बादी को रोकते हैं और दुसरे इससे कई भूखों पेट भी भर जाता है। जैन समुदाय के नवरतन बोथरा ने बताया कि जैन धर्म में ये प्रचलन हैं की लोग थाली में खाना खाने के बाद थाली को धो कर उसका पानी पी लेते है जिससे उसमे किसी प्रकार का कोई कीटाणु न पैदा हो सके और कोई जीव हत्या ना हो। आज बहुत सारे लोग आज खाना न मिलने की वजह से भूखे रहते है, सोते है तो आज हमारा फर्ज बनता है कि हम लोग खाने की थाली में खाना उतना ही ले जितना खा सके और खाने को व्यर्थ न गवाएं।

नवरतन बोथरा ने बताया कि राजस्थान सेवा संस्थान इसके अलावा कई तरह के सामाजिक कार्यक्रम राजधानी भुवनेश्वर में चला रही है। कोरोना की प्रथम लहर में जब लोग इस महामारी से अनजान थे, सरकार ने शट डाउन घोषित कर दिया था, उस समय संस्थान की तरफ अग्रिम पंक्ति के कोरोना योद्धा से लेकर गरीब मजबूर लोगों के बीच पका हुआ खाद्य पुलिस की मदद से आवंटित किया गया। हमने इस दौरान लगभग 82 हजार लोगों के बीच खाद्य पैकेट आवंटित किए। 

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