शहर की चकाचौंध छोड़ युवा डाक्टर युगल ने जानें कैसे बदली गांव के अस्‍पताल की सूरत

दोनों डाक्टरों ने शहरी चकाचौंध को छोड़कर गांव में ही बसेरा बनाया और अस्पताल के सुधार पर काम किया। सरगुजा में स्वास्थ्य समेत दूसरे विभागों के अधिकारी अपने कार्यस्थल पर रहने के बजाय 30 किलोमीटर दूर अंबिकापुर शहर में रहना पसंद करते हैं।

By Arun Kumar SinghEdited By: Publish:Sat, 10 Apr 2021 11:04 PM (IST) Updated:Sat, 10 Apr 2021 11:04 PM (IST)
शहर की चकाचौंध छोड़ युवा डाक्टर युगल ने जानें कैसे बदली गांव के अस्‍पताल की सूरत
छत्तीसगढ़ में दो युवा चिकित्सकों डा. राहेला समरीन और डा. इमरान की फाइल फोटो

असीम सेनगुप्ता, अंबिकापुर। छत्तीसगढ़ में दो युवा चिकित्सकों डा. राहेला समरीन और डा. इमरान ने सेवा भाव और काम के प्रति समर्पण की अनूठी मिसाल पेश की है। दोनों सरगुजा क्षेत्र के सुदूर आदिवासी अंचल के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों लुंड्रा व रघुनाथपुर में पदस्थ हैं। इनकी लगन व सेवाभाव के कारण ही भारत सरकार के स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय ने दोनों स्वास्थ्य केंद्रों को नेशनल क्वालिटी एश्योरेंस स्टैंडर्ड सर्टिफिकेट से नवाजा है। 

छत्तीसगढ़ के दो डाक्टरों की कोशिश से सरकारी अस्पतालों को मिला राष्ट्रीय गुणवत्ता मानक प्रमाणपत्र

दोनों डाक्टरों ने शहरी चकाचौंध को छोड़कर गांव में ही बसेरा बनाया और अस्पताल के सुधार पर काम किया। सरगुजा में स्वास्थ्य समेत दूसरे विभागों के अधिकारी अपने कार्यस्थल पर रहने के बजाय 30 किलोमीटर दूर अंबिकापुर शहर में रहना पसंद करते हैं। मध्य प्रदेश के इंदौर मेडिकल कालेज से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के बाद डा. राहेला समरीन व डा. इमरान ने वनवासी क्षेत्र सरगुजा को अपनी कर्मभूमि के रूप में चयनित किया। डा. इमरान यहीं के मूल निवासी हैं, जबकि डा. राहेला इंदौर की हैं। 

जनसहयोग से आदिवासी क्षेत्र में सर्वाधिक कोरोना टीकाकरण का भी बना रिकार्ड

सगाई कर चुके दोनों युवा चिकित्सकों ने सरकारी अस्पताल को जनसहयोग से सुव्यवस्थित कर दिया है। सरगुजा में एक दिन में सर्वाधिक टीकाकरण का रिकार्ड भी इन युवा चिकित्सकों ने बनाया है। कोरोना जांच, टीकाकरण और संक्रमण का प्रसार रोकने की इनकी कोशिश से लोगों में जागरुकता भी आई है। अब दोनों ने संकल्प लिया है कि कोरोना से जंग जीतने के बाद जीवनसाथी बनेंगे। 

मुख्यालय में रहने की आदत से सुधरी व्यवस्था

27 फरवरी 2014 को डा. इमरान ने जब लुंड्रा अस्पताल में पदभार संभाला तो पहले दिन से ही मुख्यालय में रहना शुरू किया। इससे अंबिकापुर जाकर इलाज कराने से ग्रामीणों को छुटकारा मिला। अधीनस्थ स्टाफ भी मुख्यालय में रहने लगा। ऐसी ही शुरुआत डा. राहेला समरीन ने रघुनाथपुर अस्पताल में की तो जनप्रतिनिधियों और विभागीय अधिकारियों का साथ मिलना शुरू हुआ। यही वजह रही कि इन दोनों अस्पतालों की गुणवत्ता में सुधार आया।

दोनों के बीच प्रतिस्पर्धी भाव

डा. इमरान और डा. राहेला के बीच अब प्रतिस्पर्धा का भाव है। प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव और क्षेत्र के विधायक डा. प्रीतम राम भी अस्पताल की गुणवत्ता में सुधार के साथ मरीजों को बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराने की इनकी जिद के कायल हैं। 

छत्तीसगढ़ के स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री टीएस सिंह देव ने कहा कि मैंने अस्पताल को शीर्ष पर ले जाने का भाव दोनों चिकित्सकों में देखा है। दोनों चिकित्सकों की बदौलत ही राष्ट्रीय स्तर पर गुणवत्ता मानक का प्रमाण पत्र मिला है।  

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