World Tourism Day 2020 : चलते-चलते खुद से आ मिले हम
World Tourism Day 2020 कभी पैदल कभी साइकिल तो कभी गाड़ी से अपनों से मिलने-जुलने का यह दौर ऐसा है जैसे जिंदगी की गाड़ी बैकगियर’ में बहुत पीछे चली गई हो। सड़क पसंदीदा साथी बन गई है तो प्रकृति की गोद में मिल रहा है सुकून।
सीमा झा, नई दिल्ली। वायरस ने जिंदगी पर ब्रेक लगायी तो खुल गया अनुभूतियों का नया संसार। घरबंदी के दौर में भी बंद नहीं थीं यात्राएं। वायरस से लगातार जंग में घायल और आहत मन को कहीं पहुंचने की जल्दी नहीं है।
कभी पैदल, कभी साइकिल तो कभी गाड़ी से अपनों से मिलने-जुलने का यह दौर ऐसा है जैसे जिंदगी की गाड़ी 'बैकगियर’ में बहुत पीछे चली गई हो। सड़क पसंदीदा साथी बन गई है तो प्रकृति की गोद में मिल रहा है सुकून। आगे 'नए सामान्य’ में आने वाली जीवन यात्रा के लिए यह ठहराव अच्छा है, जहां आपदा की थकान के बीच स्प्रिचुअल हो गए हैं लोग, प्रकृति के बीच खुद से मिल रहे हैं...
‘मौन,शांत और रहस्यपूर्ण। एक गहरी नीली-हरी झील,मिलते-जुलते रंगों वाला आसमान और विशाल पहाड़ों के साथ एक अंतहीन क्षितिज। ऐसे माहौल में मन क्यों न उस दुनिया की ओर निकल जाएं, जहां बस सुकून हो। ऐसे माहौल में आने के बाद चीजें साफ होने लगती हैं और साथ होता है केवल अपना,- कहते हैं चार्टर्ड अकाउंटेट निखिल वर्मा। उनके अनुसार, कोरोना वायरस ने अचानक मन के मंजर को बदल दिया है, यह अक्सर स्प्रिचुअल हो जाता है।
पल में जीवन है और पल में ही आप नहीं होते हैं। इसलिए प्रकृति की गोद उन्हें राहत देती है, जहां वे मैं आखिर हूं कौन? इस जीवन का मकसद क्या है? जैसे सवालों से मन को दोबारा हकीकत से संघर्ष के लिए तैयार करते हैं। वे नियमित यात्रा करते थे, जिस पर आपदा ने अचानक ब्रेक लगा दिया। पर अनलॉक के बाद ट्रैवल को नए सिरे से मायने या विस्तार मिला है। लोग आपदा के बुरे अनुभवों को इससे मिटा देना चाहते हैं। निखिल वर्मा के अनुसार, मन एक उत्साही मुसाफिर है।
वह उस दौरान भी देश-दुनिया के सफर पर रहा जब लॉकडाउन के सख्त नियमों पर इसे चलना था। इंटरनेट सहारा था। वर्चुअल ट्रेवल का आंनद लिए,दिल को तसल्ली मिली। मेक माइ ट्रिप के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर विपुल प्रकाश कहते हैं कि कोरोना वायरस ने ट्रैवल इंडस्ट्री पर न केवल बुरा प्रभाव डाला है बल्कि इसके कारण बड़े बदलाव भी देखने को मिले हैं। उन्होंने अनलॉक के बाद यानी अब लॉकडाउन के बाद बंद पड़ी जिंदगी के खुलने के बाद नए ट्रेंड 'रिवेंज ट्रैवल' के शरू होने की बात कही। रिवेंज यानी कई माह तक बंद होने के बाद लोगों ने इसकी प्रतिक्रिया में घर से निकलना न केवल शुरू किया बल्कि इसे खूब एंजॉय भी कर रहे हैं।
जैसे नया-नया सीखा हो चलना
'ऊंचाई से गिरते पानी की आवाज इतनी दूर तक नहीं आती पर उसका झाग,उसके छींटे मन पर पड़ रहे हैं। पैरों को पुल की धड़कन महसूस होती है जो किसी भारी वाहन के गुजरने से तेज हो जाती है।' यह अंश है भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त आलोक रंजन की चर्चित पुस्तक 'सियाहत का। आलोक रंजन ने इस किताब में दक्षिण भारत की अपनी यात्रा की जीवंत दास्तान पेश की है।
वे इन दिनों केरल में हैं। अपना अनुभव साझा करते हुए कहते हैं, ' लॉकडाउन जब लगा तो उम्मीद थी कि थोड़े दिनों की बात है लेकिन यह इंतजार लंबा होता गया। मैं अपने घर से बाहर निकल सूनी सड़कों को निहारकर संतोष कर लेता था। सड़क गतिशीलता का प्रतीक है, उसे देख भर लेना ही मेरे लिए यात्रा थी।‘ आलोक बताते हैं कि कैसे लॉकडाउन में बाहर की दुनिया से कट जाने निराशा और अवसाद भरता जा रहा था और जब अनलॉक में नियमों में ढील हुई तो वे उस बालक की तरह हो गए थे, जिसने अभी-अभी चलना सीखा हो।
जिधर मन हो निकल जाने वाला,बेलौस भागने वाला। पर आलोक रंजन अक्सर उन जगहों की ओर जाते, जो उन्हें हमेशा से प्रिय रही हैं-नदी, झरने और अनजाने पहाड़ों व गुफाओं की ओर। वे कहते हैं, परिचित रास्तों को भी समय के नए संदर्भों में देखना एक नया अहसास भर रहा था, जिसने दोबारा जिंदगी में जिंदगी भरने का काम किया। इन दिनों अपने आसपास पर नजर पड़ी तो इतना कुछ है कि वह आपको नए सिरे से रोमांचित कर सकता है।
मंजिल से बेहतर लगने लगे रास्ते
अनलॉक होने के बाद लगभग सबने जैसे राहत की सांस ली। पर उन घुमक्कड़ों को इससे बड़ी राहत मिली है, जिनके लिए ट्रैवल भागती-दौड़ती जिंदगी में दवा की तरह है। जैसे, ब्लॉगर और मीडिया पर्सनैलिटी निकिता चावला की व्यस्त दिनचर्या में ट्रैवलिंग न हो तो वह अधूरा रहता है। वे दुनिया के कई देशों की यात्रा कर चुकी हैं। अनलॉक के बाद अपने अनुभवों को कुछ यूं बयां करती हैं, 'मेरे लिए ट्रैवल का अर्थ ही जैसे बदल गया हो। पहले मैं ट्रैवल को मजे के अर्थ में लेती थी। कुछ नई जगह, वहां का फूड, रोमांच मेरी खास प्राथमिकताएं होती थीं।
ये सब अचानक बदल गए हैं। निकिता अब महसूस करती हैं कि देश-दुनिया की नई जगहों को देखने की लालसा में हमने वह नहीं देखा, जो करीब था। हमारे ही घर के पास, शहर में, कस्बे में। हाल ही में हिमाचल गई थी, वहां रहकर इस बात को और करीब से महसूस किया। वहां का गांव दुनिया के सबसे सुकूनदायक पड़ाव लगा, जो कोरोना आपदा के कारण हुए घायल मन को आराम दे रहा था। वे कहती हैं, 'अब रास्ते मंजिल से अधिक प्यारे लगते हैं, जिस पर चलते रहें बस, कहीं पहुंचने की जल्दी नहीं है।
शुक्र है यात्राओं का अनुभव पास है
पहाड़ की विराटता के आगे अपनी सूक्ष्मता का आभास परेशान नहीं करता। ऊंचे दरख्तों के पास खड़े रहकर जीवन सरल लगने लगता है। बहती नदी के किनारे बैठिए वे बहाव में रहने का संदेश देती हैं। सागर की मौजें मन के आवेगों की तरह ही हैं, जिसका अपना संदेश है। कुछ ऐसा ही अहसास है हैदराबाद की विजया प्रताप का। वह कहती हैं, 'मैं कभी कभी वायरस के कोहराम और तबाही के मंजर देखकर बहुत परेशान हो जाती हूं। डराती हैं भविष्य की आशंकाएं फिर एक यकीन मन में लौट आता है शायद आसपास प्रकृति की गतिशीलता को महसूस करके।‘
आलीशान जीवन तब बेमतलब का मालूम हो रहा हैं, जब खुद का जीवन संकट में महसूस हो रहा। विजया दुनिया के कई देशों की यात्रा कर चुकी हैं और देशभर की जानी मानी ट्रैवल मैगजीन में उनके अनुभव प्रकाशित होते रहे हैं। पर अब पास की ही नदी,शहर के कुछ पर्यटन स्थल जो कभी पर्यटकों की भीड़ से गुलजार रहती थीं, वहां के सूनेपन में सुकून मिलता है। वे अब महसूस कर पा रही हैं कि प्रकृति में कितना बड़ा उपचारात्मक गुण मौजूद है, जिसे पहले शायद ही कभी इस तरह महसूस किया हो।
सेफ्टी रूल्स में ढल रहे हैं पर्यटक
न्यू नॉर्मल यानी नए सामान्य ने सुरक्षा और हाइजिन यानी साफ सफाई को जीवन का प्रमुख अंग बना दिया है और ट्रैवल भी इससे पीछे नहीं। विपुल प्रकाश के अनुसार, लोग अपनी पसंद से ट्रैवल के प्लान बनाते हैं और इसका आनंद लेते हैं। इसमें रोड ट्रिप को खूब प्राथमिकता मिल रही है। कह सकते हैं कि रोड ट्रिप आपदा के दौरान एक नए स्वरूप में ट्रैवल के साथ जुड़ गया है, जिसमें सुरक्षा नियमों का पूरा ध्यान रखा जाता है। विपुल प्रकाश के अनुसार अब यह ट्रैवल एक अहम अंग बन जाएगा।
अपने परिचितों के साथ गाड़ी निकाली और आसपास के किसी क्षेत्र में निकल जाना आज ट्रैवल का प्रमुख ट्रेंड बनता जा रहा है। इसमें उन लोगों की तादाद अधिक है जो कामकाजी हैं और आसपास के क्षेत्रों खासतौर पर पहाड़ी क्षेत्रों में बुकिंग को वरीयता दे रहे हैं पर वहां भी सुरक्षा नियमों का पूरा ख्याल रखा जाता है। इसमें टेक्नोलॉजी की भी पूरी मदद ली जा रही है, जैसे मेकमाइ ट्रिप ने इसके लिए एप बनाया है जो मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग के बाद ही यात्रा को सुनिश्चित करने में मदद करता है।
छोटी दूरी और ऑफबीट डेस्टिनेशन
इस समय लोग छोटी दूरी की यात्रा को पसंद कर रहे हैं। यह तकरीबन तीस सौ किलोमीटर के दायरे में होती है। हालांकि आपदा के दौरान देखा गया था कि लोगों ने रोड ट्रिप के दौरान लंबी दूरी की यात्राएं भी कीं। ये वे लोग थे जो सपरिवार गृह राज्यों की ओर निकल पड़े थे। अब लोग ज्यादातर मन की शांति के लिए उन स्थानों को चुन रहे हैं जो कि उन्हें आपदा के कारण होने वाली थकान और तनाव से राहत दे सकें। जैसे हिमाचल पद्रेश, उत्तराखंड, राजस्थान के साथ साथ लोग गोवा को भी इसके लिए चुन रहे हैं।
दिल्ली एनसीआर के लोग अपने आसपास के स्टेशंस को चुन रहे हैं, जहां वे शांति से काम कर सकें और प्रकृति का लुत्फ लेकर अपनी मानसिक थकान मिटा सकें। ये क्षेत्र हैं, कसौली, मनाली आदि। मेकमाइ ट्रिप के अनुसार, दक्षिण भारत के लोग इसी तर्ज पर कूर्ग और चिकमंगलूर क्षेत्रों के लिए बुकिंग कर रहे हैं। इनके लिए ज्यारदातर सेल्फ ड्राइव का ही विकल्प चुना जाता है।
दरअसल, अभी हाइपरलोकल ट्रैवल का ट्रेंड शुरू हुआ है। मेकमाईट्रिप ने ऐसे कुछ शॉर्ट टर्म चार हजार हॉलिडे प्लान लॉन्च किए हैं जो तकरीबन 700 से ज्यादा टूरिस्ट डेस्टिनेशन को कवर करता है। टूरिस्ट की सुविधा के लिए विशेष बजट प्लान भी तैयार किए गए हैं जो कि हिमाचल प्रदेश के सांगला,जिभी और चितकुल के लिए है। इसमें पोलेची तमिलनाडु,तरकुल महाराष्ट्र और डॉकी मेघालय और शिमोगा कनार्टक के लिए है। सिक्किम के अरितर और केरल स्थित वेगामोन भी इसमें शामिल है।