World Post Day 2021: जानें क्यों बदलते दौर में डाक विभाग से लोगों का हो रहा मोहभंग, उठाने होंगे क्रांतिकारी कदम

World Post Day 2021 आवश्यकता है कि डाक विभाग कुछ सुधारवादी कदम उठाकर अपनी व्यवस्था में फेरबदल करे। ग्राहकों द्वारा भेजी जाने वाली डाक के प्रति जवाबदेही तय हो भले वो साधारण डाक ही क्यों न हो। प्रत्येक डाक के पहुंचने की अधिकतम समय सीमा तय होनी चाहिए।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Sat, 09 Oct 2021 10:40 AM (IST) Updated:Sat, 09 Oct 2021 10:40 AM (IST)
World Post Day 2021: जानें क्यों बदलते दौर में डाक विभाग से लोगों का हो रहा मोहभंग, उठाने होंगे क्रांतिकारी कदम
भारतीय डाक को घाटे से उबारने के लिए उठाने होंगे क्रांतिकारी कदम। फाइल

शिवचरण चौहान। World Post Day 2021 दुनिया आज विश्व डाक दिवस मना रही है। इसका उद्देश्य ग्राहकों के बीच डाक विभाग के बारे में जानकारी देना, उन्हें जागरूक करना और डाकघरों के बीच तालमेल बनाना है। 1969 में जापान के टोक्यो में इसकी शुरुआत हुई थी। आज डाक की उपयोगिता केवल चिट्ठियों तक सीमित नहीं है, बल्कि आज डाक के जरिये बैंकिंग, बीमा, निवेश जैसी जरूरी सेवाएं भी आम आदमी को मिल रही हैं। भारत यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन की सदस्यता लेने वाला प्रथम एशियाई देश था। भारत में एक विभाग के रूप में इसकी स्थापना एक अक्टूबर, 1854 को लार्ड डलहौजी के काल में हुई। भारतीय डाक विभाग के पास अरबों रुपये की संपत्ति है। दुनिया का सबसे बड़ा विशाल नेटवर्क है। इतना बड़ा नेटवर्क तो आस्ट्रेलिया और अमेरिका के पास भी नहीं है। फिर भी भारतीय डाक विभाग घाटे में है।

सवाल है कि क्या इंडिया पोस्ट यानी भारतीय डाक विभाग अब डूब जाएगा? दरअसल इस समय भारत सरकार के लिए करोड़ों रुपये के घाटे वाला डाक विभाग आर्थिक संकट का कारण बना हुआ है। 2019-20 की आडिट रिपोर्ट बताती है कि 1995 में डाक विभाग को साढ़े चार सौ करोड़ रुपये का घाटा उठाना पड़ा था। 2016 में यह घाटा 6,000 करोड़ रुपये, 2018 में 8,000 करोड़ रुपये और अब यह घाटा बढ़कर 15,000 करोड़ रुपये से अधिक हो गया है। माना जा रहा है कि संचार के नए साधनों इंटरनेट, गूगल, वाट्सएप फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर और कूरियर सेवाओं के लोकप्रिय हो जाने के कारण डाक विभाग से लोगों का मोहभंग हो रहा है।

केंद्र सरकार ने डाक विभाग के अधिकारियों के कहने पर घाटे से उबारने के लिए इसे पोस्टल पेमेंट बैंक बनाया जरूर, परंतु उससे कोई लाभ नहीं हुआ। एयर इंडिया को तो खरीदार मिल गया है, किंतु डाक विभाग को कोई भी कंपनी लेने को तैयार नहीं है। कुछ कूरियर कंपनियों ने स्पीड पोस्ट को खरीदने में रुचि दिखाई है, किंतु सरकार पूरा विभाग निजी क्षेत्र को देना चाहती है।

देखा जाए तो मानव सभ्यता के इतिहास में जबसे मनुष्य ने पढ़ना-लिखना सीखा खतो-किताबत का सिलसिला तभी से चल रहा है। राजाओं ने अपने संदेश पहुंचाने के लिए हरकारों की व्यवस्था की थी तो अंग्रेजों ने मुंबई में पहला डाकघर खोलकर भारत में पोस्ट आफिस की सुव्यवस्थित नींव रखी। ईसा पूर्व भी भारत में डाक लाने ले जाने की व्यवस्था थी। हरकारे तेज रफ्तार ऊंट और घोड़ों से डाक ले जाते थे तो सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के समय कबूतर डाक वाहक का काम करते थे। ये कबूतर केवल शाही डाक पहुंचाते थे। हरकारों से पहले भारत में नाई और ब्राह्मण अपने जजमानों का संदेशा पहुंचाने का काम करते थे।

आजादी के बाद भारत सरकार ने संसद में घोषणा की थी कि वह पूरे देश में डाकघरों का ऐसा बड़ा जाल बिछा देगी कि कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक का कोई भी गांव, कस्बा, शहर बिना डाकघर के नहीं होगा, किंतु भारत में अभी भी आधे से ज्यादा गांव डाकघरों से वंचित हैं। ताजा आंकड़ों के अनुसार देश की 52 प्रतिशत आबादी अभी भी डाक सेवाओं से अछूती है। डाक विभाग के पास चार लाख 33 हजार कर्मचारी हैं। इनमें तीन लाख कर्मचारी अस्थायी हैं। वहीं जब डाकघरों का पुनर्गठन किया गया था तो डाक विभाग के अधिकारियों ने अहर्निश सेवामहे यानी रात दिन सेवा के आदर्श को अपनाया था, किंतु आज यह आदर्श वाक्य डाक विभाग भूल गया लगता है। कभी डाक विभाग को ईमानदारी के लिए हरिश्चंद्र कहा जाता था, किंतु 1980 के बाद अनियमितताओं और घोटालों का जो सिलसिला शुरू हुआ वह दिन-प्रतिदिन बढ़ता गया है।

डाक विभाग की वार्षिक रिपोर्ट देखने से पता चलता है कि 1977-78 में यह विभाग लाभ में था, किंतु 1979-80 में घाटे में चला गया और आज तक घाटे में चल रहा है। डाक, तार और टेलीफोन कभी एक ही विभाग थे, किंतु जनवरी 1985 से टेलीफोन विभाग इससे अलग हो गया। कई कर्मचारी मानते हैं कि डाक विभाग की खराब हालत होने के जिम्मेदार कुछ बड़े अधिकारी भी रहे हैं, जिन्होंने डाक विभाग में बड़े-बड़े घोटाले किए और घाटा पहुंचाया। वहीं इसकी आय का 90 फीसद से अधिक हिस्सा अपने कर्मचारियों को वेतन और पेंशन बांटने में खर्च हो जाता है। एक पोस्ट कार्ड की छपाई पर 12.15 रुपये खर्च आता है, जबकि यह पोस्ट कार्ड सिर्फ 50 पैसे में बिकता है। इसी तरह अंतर्देशीय पत्र की बिक्री में भी सरकार को भारी घाटा उठाना पड़ता है। विशेषज्ञों का मानना है कि देशभर में 812 से अधिक प्रधान डाकघर हैं। इनमें अधिकारियों की एक बहुत बड़ी फौज बैठती है, जो सिर्फ वेतन लेती है और गांव-घर का काम बढ़ाने में कोई सहयोग नहीं करती। स्पीड पोस्ट, रजिस्टर्ड डाक को छोड़कर सामान्य डाक का वितरण अब लगभग बंद हो चुका है। इसके अलावा पत्र-पत्रिकाएं और किताबें भी घरों तक डाकिये नहीं पहुंचाते हैं। इन कारणों से डाक विभाग का घाटा बढ़ा है। संचार के नए साधनों गूगल, वाट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर और कूरियर सेवाओं के लोकप्रिय हो जाने के कारण डाक विभाग से लोगों का मोहभंग होता जा रहा है

[वरिष्ठ पत्रकार]

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