7 अरब के पार है विश्व की जनसंख्या, लाखों हैं बेघर और करोड़ों को नहीं मिलता पीने का साफ पानी
विश्व की जनसंख्या जिस तेजी से बढ़ रही है उसके हिसाब से इस आबादी का पेट भरना भविष्य में बेहद मुश्किल होगा।
नई दिल्ली (ऑनलाइन डेस्क)। पूरी दुनिया की जनसंख्या सात अरब को पार कर चुकी है। माना जा रहा है कि 2025 तक इसके 8 अरब होने की उम्मीद की जा रही है। ऐसे में धरती को अपार संसाधन चाहिए होंगे। लेकिन विडंबना ये भी है कि आज भी दुनिया की बड़ी आबादी अपनी मूलभूत सुविधाओं से वंचित रहते हुए ही जीवन यापन करती है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक दुनिया में एक अरब से ज्यादा लोगों को पानी उपलब्ध नहीं है। वहीं यूएन की एक अन्य एजेंसियों द्वारा कराया गया एक अध्ययन ये बताता है कि यदि लोगों को पीने का साफ पानी मुहैया करा दिया जाता है तो हर साल प्रदूषित पानी पीने से होने वाली लाखों मौतों को टाला जा सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि यदि लोगों को पीने का साफ पानी और सेनिटेशन की उचित व स्तरीय सुविधाएं मुहैया की जाएं दुनिया में बीमारियों से पड़ने वाले बोझ को 9 फीसदी और भारत समेत दुनिया के 32 सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में 15 फीसदी तक कम किया जा सकता है।
विश्व जनसंख्या दिवस के मौके पर हमारे लिए ये भी जान लेना बेहद जरूरी हो जाता है कि दुनिया के कई देशों में छाई अशांति की वजह से लाखों लोगों को अपना घर, अपना देश छोड़कर दूसरे देशों में शरणार्थी जीवन जीने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक अकेले अफगानिस्तान में ही अब तक 46 लाख लोग विस्थापित हो चुके हैं। भारत की ही बात करें तो यहां पर 40 हजार से अधिक शरणार्थी संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (यूएनएचसीआर) में रजिस्टर्ड हैं। एक अनुमान के मुताबिक दुनिया में 7 करोड़ लोग ऐसे हैं जो देश छोड़कर दूसरे देशों में रहने पर मजबूर हैं। इनमें से ज्यादातर शरणार्थी उन देशों से हैं जहां पर आतंकवाद या फिर गृहयुद्ध की वजह से हालात खराब हो चुके हैं। दुनियाभर में फैले शरणार्थियों में आधे से ज्यादा सीरिया, अफगानिस्तान, दक्षिण सूडान, म्यांमार और सोमालिया से आते हैं। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2018 में पलायन करने वालों की संख्या 1।3 करोड़ थी। 2017 की तुलना में यह आंकड़ा करीब 27 लाख ज्यादा था।
यूएन की ही रिपोर्ट बताती है कि अपना देश छोड़ने वालों में ज्यादातर लोग वापस आने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं। यूएन के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2017 में 6,67,400 लोग अपने देश लौटे थे वहीं वर्ष 2018 में इनका आंकड़ा 5,93,800 था। गृहयुद्ध की मार झेल रहे सीरिया की बात करें तो वहां पर 2,10,000 लोगों ने वापस जाने की हिम्मत दिखाई। यूएन की रिपोर्ट शरणार्थियों में शामिल उन बच्चों की भी विडंबना को दिखाती है जो किसी कारणवश मानव तस्करी का शिकार हो जाते हैं। यूएन की हालिया रिपोर्ट भी इस बारे में बेहद चौंकाने वाली है। इसके मुताबिक कई देशों में मानव तस्करों की निगाह इनको तलाशती रहती है। एक बार इनके चंगुल में आने के बाद इससे निकलना इनके लिए बेहद मुश्किल हो जाता है। इतना ही हीं इस तरह का ऑर्गेनाइज क्राइम करने के मामले में जर्मनी पूर्वी यूरोप के देशों में सबसे आगे है। रूस के विघटन के दौरान 1997 में यहां करीब 175,000 महिलाओं को देह व्यापार के धंधे में धकेलने के लिए बेचा गया था। यूएन की रिपोर्ट के मुताबिक हर वर्ष करीब 40 लाख लोगों को उनकी इच्छा के विरुद्ध दूसरे धंधों के लिए बेचा जाता है। इनमें अधिकतर कम उम्र की महिलाएं होती हैं।
विश्व जनसंख्या दिवस के मौके पर सिर्फ जनसंख्या को नंबर में बता देना सही नहीं होगा। यही वजह है कि बढ़ती जनसंख्या और उससे पड़ने वाले बोझ को भी समझना हम सभी के लिए बेहद जरूरी है। वर्तमान की ही बात करें तो जब पूरी दुनिया कोरोना की मार से बेहाल है तो विश्व की इस बड़ी जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा वर्तमान में बेहद संघर्ष के पल जीने को मजबूर है। अकेले अमेंरिका में ही इस वायरस के बाद से लाखों लोग बेरोजगार हो चुके हैं। व्यापारिक प्रतिष्ठान नाममात्र के लिए काम कर रहे हैं। वहीं विकासशील देशों में हाल और भी बुरा हो गया है। इस महामारी से पहले जहां एक बड़ी आबादी देश की अर्थव्यवस्था के पहिए को चलाने में मदद करती थी वर्तमान में आज इसका एक बड़ा हिस्सा बेरोजगारी का शिकार है। विश्व की बढ़ती आबादी में एशिया का सबसे बड़ा योगदान है। बढ़ती आबादी ने न सिर्फ प्राकृतिक संसाधनों को खत्म करने में तेजी से योगदान दिया है बल्कि इसकी वजह से विश्व का तापमान भी लगातार बढ़ रहा है। इसको रोकपाना दुनिया के लिए मुश्किल हो रहा है।
ये भी पढ़ें:-
मानवाधिकारों पर पाकिस्तान की खुली पोल, यूएन ह्यूमन राइट्स काउंसिल में गरजे प्रोफेसर
अपने नेताओं पर लगे अमेरिकी प्रतिबंध से तिलमिलाया चीन, जवाबी कार्रवाई की दे डाली धमकी