डायबिटीज से डरना कैसा- ये रहे तमाम लक्षण और बचाव के सारे उपाय

डायबिटीज एक ऐसा रोग है, जिस पर अगर नियंत्रण न किया गया, तो यह कई रोगों और स्वास्थ्य समस्याओं को बुलावा देता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Wed, 14 Nov 2018 12:47 PM (IST) Updated:Wed, 14 Nov 2018 12:52 PM (IST)
डायबिटीज से डरना कैसा- ये रहे तमाम लक्षण और बचाव के सारे उपाय
डायबिटीज से डरना कैसा- ये रहे तमाम लक्षण और बचाव के सारे उपाय

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। यह तथ्य चिंताजनक है कि दुनिया में डायबिटीज (मधुमेह) से ग्रस्त सबसे ज्यादा मरीज भारत में हैं। डायबिटीज एक ऐसा रोग है, जिस पर अगर नियंत्रण न किया गया, तो यह कई रोगों और स्वास्थ्य समस्याओं को बुलावा देता है। अनियंत्रित डायबिटीज के कारण कालांतर में हाई ब्लड प्रेशर, हृदय और किडनी आदि से संबंधित रोग होने का खतरा बढ़ जाता है, लेकिन कुछ सजगताएं बरतकर इस मर्ज को नियंत्रित किया जा सकता है...

जरूरी है जागरूकता
डायबिटीज वाले व्यक्ति के रक्त में ग्लूकोज की मात्रा आवश्यकता से अधिक हो जाती है। हम जो खाना खाते हैं, वह पेट में जाकर ऊर्जा में बदलता है। उस ऊर्जा को हम ग्लूकोज कहते हैं। खून इस ग्लूकोज को हमारे शरीर के सारे सेल्स (कोशिकाओं) तक पहुंचाता है, परंतु ग्लूकोज को हमारे शरीर में मौजूद लाखों सेल्स के अंदर पहुंचाना होता है। यह काम इंसुलिन का है। इंसुलिन हमारे शरीर में अग्नाशय (पैन्क्रियाज) में बनता है। इंसुलिन के बगैर ग्लूकोज सेल्स में प्रवेश नहीं कर सकता।

शुगर का स्तर
सामान्य स्वस्थ व्यक्ति में खाली पेट रहने पर रक्त में शुगर का स्तर 70 से 99 एम.जी. / डी.एल. रहता है। खाने के बाद यह स्तर 139 एम.जी. / डी.एल. से कम होता जाता है, पर डायबिटीज हो जाने पर यह स्तर सामान्य नहीं हो पाता। डायबिटीज के मुख्य रूप से दो प्रकार हैं- टाइप 1 और टाइप 2 ।

टाइप 1 डायबिटीज
टाइप 1 डायबिटीज के दौरान शरीर में इंसुलिन का निर्माण बंद हो जाता है या उत्पादन बहुत कम हो जाता है। ऐसे में मरीज को बाहर से इंसुलिन देनी पड़ती है। टाइप 1 डायबिटीज को नियंत्रित किया जा सकता है, परंतु पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सकता। यह बचपन में किसी भी समय हो सकता है। यहां तक कि शैशव अवस्था में भी हो सकता है। देश में 1 से 2 प्रतिशत लोगों में ही टाइप 1 डायबिटीज पाया जाता है। इस प्रकार की डायबिटीज से

ग्रस्त लोगों के लिए इंसुलिन लेना अनिवार्य है, अन्यथा उनकी जान पर भी बन आ सकती है।

टाइप 1 के लक्षण

ज्यादा प्यास लगना। ज्यादा पेशाब आना। ज्यादा भूख लगना। अचानक वजन घट जाना। थकावट महसूस होना।

टाइप 1 को नियंत्रित करने के तरीके टाइप 1 डायबिटीज में पैनक्रियाज की बीटा कोशिकाएं इंसुलिन बनाने में असमर्थ होती हैं। इसलिए टाइप-1 डायबिटीज में कोई दवाएं काम नहीं करती बल्कि इंसुलिन ही प्रभावी होती है। इंसुलिन लेने से पहले शुगर की नियमित रूप से जांच अनिवार्य है। संतुलित आहार और प्रतिदिन व्यायाम करना चाहिए। आहार में वसा की मात्रा कम रखनी चाहिए और मीठे खाद्य पदार्थों से परहेज करना चाहिए।

टाइप 2 डायबिटीज
टाइप 2 डायबिटीज होने पर आपका शरीर पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं बनाता या फिर इंसुलिन का समुचित प्रयोग नहीं कर पाता। इस प्रकार के डायबिटीज से पीड़ित लोगों का इलाज संतुलित आहार, नियमित व्यायाम और दवाएं देकर या फिर इंसुलिन देकर किया जा सकता है। टाइप 2 डायबिटीज का होना गलत जीवनशैली और जीन संबंधी कारकों से संबंधित है।

इन्हें हैं ज्यादा खतरा यदि आपके माता-पिता को डायबिटीज है। डायबिटीज आनुवांशिक कारणों से भी संभव है। आपका वजन सामान्य से अधिक है। आपकी उम्र 40 वर्ष से अधिक है। आप व्यायाम नहीं करते। यदि किसी महिला को गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज की समस्या रही हो। अगर किसी महिला को 4 किलोग्राम से ज्यादा वजन का बच्चा पैदा हुआ हो, तो उस महिला में डायबिटीज होने की आशंका बढ़ जाती है।

टाइप 2 डायबिटीज के लक्षण बहुत प्यास लगना। लगातार भूख लगना। थकान महसूस होना। बार-बार पेशाब आना। हाथ-पैरों का सुन्न होना अथवा झनझनाहट महसूस होना। बार-बार इंफेक्शन होना। जख्म देर से भरना। धुंधला दिखाई देना।

स्वयं की ऐसे करें देखभाल
सीनियर एंडोक्राइनोलॉजिस्ट मेदांता दि मेडिसिटी, गुरुग्राम के डॉ.अंबरीश मित्तल का कहना है कि लक्ष्य यह है कि आप अपना ब्लड शुगर जहां तक हो सके सामान्य रखें। इसके लिए आप... नियमित रूप से ग्लूकोमीटर से ब्लड शुगर की जांच करें। संतुलित और पोषक आहार लें। फैट का सेवन कम करें। 20 ग्राम फाइबर हर दिन खाएं। जैसे सब्जियां, साबुत दाल, साबुत फल आदि। मैदा का सेवन न करें और मीठे खाद्य पदार्थों से परहेज करें। प्रतिदिन 30 मिनट व्यायाम जरूर करें। दवाएं और इंसुलिन समय पर लें। ग्लूकोज स्तर की जांच करवाएं। ग्लूकोज स्तर का कम होना या फिर ज्यादा होने के लक्षणों को पहचानें। अगर वजन ज्यादा है, तो वजन कम करें। मोटापा डायबिटीज से होने वाली जटिलताओं को और बढ़ा देता है

वजन को नियंत्रित करें
आमतौर पर डायबिटीज जीवनशैली से संबंधित बीमारी है। इसलिए दवाओं के अलावा इस मर्ज के प्रति जागरूकता की आवश्यकता है।

ये हैं कारण
अस्त-व्यस्त दिनचर्या, बेवक्त खानपान, सोने और उठने का कोई एक निश्चित नियम न होना और भागमभाग वाली अत्यधिक तनावपूर्ण जीवनशैली डायबिटीज के कुछ प्रमुख कारण हैं। हालांकि आनुवांशिक कारणों से भी यह रोग संभव है।

संभव है रोकथाम
बहरहाल, व्यवस्थित जीवनशैली से डायबिटीज को काफी हद तक रोका जा सकता है या इसके दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है। नियमित व्यायाम, योग, संतुलित आहार के साथ नियंत्रित वजन व दवाओं से इस मर्ज की रोकथाम संभव है।

मोटापा और डायबिटीज
अनियंत्रित शारीरिक वजन तमाम बीमारियों को बुलावा देता है। जैसे डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर आदि। एक अध्ययन के अनुसार अत्यधिक मोटापे से ग्रस्त लगभग 80 फीसदी लोग डायबिटीज से ग्रस्त हैं। ऐसा देखने में आया है कि यदि डायबिटीज वाले अपना शारीरिक वजन नियंत्रित कर लें, तो डायबिटीज भी काफी हद तक नियंत्रित हो जाती है। यही नहीं, मोटापे के कारण शरीर पर पड़ने वाले अनेक दुष्प्रभावों से भी छुटकारा मिल सकता है।

मोटापे का सर्जिकल इलाज
यह सही है कि मोटापे को नियमित व्यायाम, योग और संतुलित आहार ग्रहण कर काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। बावजूद इसके तमाम लोग ऐसे होते हैं, जिनका मोटापा उपरोक्त नियमों पर अमल करने के बाद भी कम या नियंत्रित नहींहोता, लेकिन अब सर्जरी द्वारा भी डायबिटीज से छुटकारा दिलाया जा रहा है, जिसके परिणाम काफी उत्साहवर्धक हैं। मोटापे को कम करने के लिए की जाने वाली सर्जरी को बैरियाट्रिक सर्जरी कहते हैं। इस सर्जरी के बाद अधिकांश रोगियों का मोटापा नियंत्रित हो जाता है और उनकी ब्लड शुगर भी काफी हद तक नियंत्रित हो जाती है।

बैरियाट्रिक सर्जरी के अंतर्गत स्लीव गैस्ट्रैक्टॅमी, गैस्टिक बाइपास और अलियम ट्रांसपोजीशन आदि को शामिल किया जाता है। यह सर्जरी दूरबीन विधि से की जाती है और अधिकांश व्यक्तियों को अस्पताल से दो-तीन दिनों में छुट्टी मिल जाती है। यह सर्जरी अनुभवी बैरियाट्रिक सर्जन द्वारा की जाती है। बैरियाट्रिक सर्जरी का मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि नियमित व्यायाम या व्यवस्थित जीवनशैली का कोई महत्व नहीं है। यदि डायबिटीज पांच वर्ष से कम समय से है, तो ऐसे लोगों में सर्जरी का प्रभाव सर्वश्रेष्ठ होता है।
[डॉ. मनीष वर्मा, लैप्रोस्कोपिक व बैरियाट्रिक सर्जन] 

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