उत्तर प्रदेश में महिला स्वयं सहायता समूह कोविड रिस्पॉन्स रणनीति में अग्रणी

काजल नारी शक्ति समूह बिजनौर से हैं जो अपनी रंगोली कला के जरिये लोगों को इस बीमारी के बारे में जागरुक बना रही हैं। उनका मानना है कि लोगों को समझाना जरूरी है।

By Vineet SharanEdited By: Publish:Sat, 06 Jun 2020 08:59 PM (IST) Updated:Sat, 06 Jun 2020 08:59 PM (IST)
उत्तर प्रदेश में महिला स्वयं सहायता समूह कोविड रिस्पॉन्स रणनीति में अग्रणी
उत्तर प्रदेश में महिला स्वयं सहायता समूह कोविड रिस्पॉन्स रणनीति में अग्रणी

नई दिल्ली। सुमन देवी हसनपुर ग्राम पंचायत, बाराबंकी, उत्तरप्रदेश में स्वयं सहायता समूह की एक सदस्य हैं। जब से उन्होंने टीवी पर कोविड-19 महामारी की खबर सुनी, तब से वे अपने समूह में मास्क बना रही हैं। काजल नारी शक्ति समूह, बिजनौर से हैं, जो अपनी रंगोली कला के जरिये लोगों को इस बीमारी के बारे में जागरुक बना रही हैं। उनका मानना है कि उनके समुदाय को हाथ धोने, लॉक डाउन और फिजिकल डिस्टेंसिंग के नियमों के पालन करने के लिए समझाना बहुत ज़रूरी है। सुमन और काजल की तरह यूपी में स्वयं सहायता समूहों की महिलाएं उत्तर-प्रदेश ग्रामीण आजीविका मिशन की कोविड-19 प्रतिक्रिया रणनीति का अभिन्न हिस्सा बन चुकी हैं।

इसके अलावा उनका योगदान छोटे पैमाने तक ही सीमित नहीं है। वे कुछ लोगों या स्वयं सहायता समूहों के सदस्यों तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि जिला स्तर पर इन प्रयासों को तेज़ी से अंजाम दिया जा रहा है। वे अब यूपी सरकार के कोविड-19 प्रयासों के साथ गहराई से जुड़ी हैं। इसके लिए मास्क का उदाहरण लीजिए। जैसे ही महामारी की खबर फैली, स्वयं सहायता समूहों के कुछ सदस्यों जैसे सुमन ने अपने समुदायों को बचाने के लिए मास्क बनाना शुरू कर दिया, आज कई ज़िलों में स्वयं सहायता समूहों के ऐसे हज़ारों सदस्य हैं जो बड़े पैमाने पर मास्क के उत्पादन में जुटे हैं। शुरूआत में एक ज़िले में सिर्फ 5 स्वयं सहायता समूह रोजाना 2000 फेस मास्क बना रहे थे। अब 52 ज़िलों में स्वयं सहायता समूहों के 12,683 सदस्य रोज़ाना 50,000 मास्क बना रहे हैं और यह संख्या लगातार बढ़ रही है।

जहां एक ओर स्वयं सहायता समूह बड़े पैमाने पर मास्क का उत्पाद कर रहे हैं, वहीं ज़िला प्रशासन आपूर्ति श्रृंखला को बनाए रखते हुए कच्चे माल की उपलब्धता को सुनिश्चित कर रहा है। वास्तव में आजकल मास्क बनाने के लिए कच्चे माल के रूप में खादी का इस्तेमाल किया जा रहा है। उत्तर-प्रदेश के खादी एवं ग्राम उद्याग बार्ड ने स्वयं सहायता समूहों को 50 लाख खादी के मास्क बनाने में मदद करने के लिए छह लाख मीटर कपड़ा उपलब्ध कराने की शपथ ली है। ये मास्क रु 13.60 प्रति मास्क की कीमत पर विभिन्न सरकारी विभागों को बेचे जाएंगे। 2अन्य मामलों में भारतीय सेना ने 2000 पीपीई का ऑर्डर दिया है, जिनका निर्माण स्वयं सहायता समूहों के द्वारा किया जा रहा है। एक अनुमान के मुताबिक 4000 स्वयं सहायता समूहों के जरिये अब तक 50 लाख से अधिक मास्क, 25,000 पीपीई किट और 7700 लीटर सैनिटाइजर का निर्माण किया जा चुका है। इसी बीच सरकार भी खरीद और आपूर्ति को सुनिश्चित कर रही है। यह स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं के लिए आय का अतिरिक्त स्रोत है।

स्वयं सहायता समूहों का योगदान सिर्फ कोविड-उन्मूलन से जुड़े आइटमों तक ही सीमित नहीं है। वे विभिन्न अभियानों के जरिये लोगों को जागरुक बना रहे हैं और संकट की इस घड़ी में जरुरतमंदों को भोजन उपलब्ध करा रहे हैं। जागरूकता की बात करें तो एसएचजी दीदियों को कोविड के ऐहतियाती उपायों के बारे में जागरुक बनाने के लिए एक रेडियो संदेश बनाया गया और महिलाओं को अपने समुदायों में जागरुकता फैलाने के लिए प्रेरित किया गया। इसके अलावा स्वयं सहायता समूहों द्वारा प्रबंधित मौजूदा ‘प्रेरणा कैन्टीनें’ जिनकी स्थापना यूपी राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन द्वारा दो साल पहले की गई, इन केन्द्रों को सामुदायिक रसोई में बदल दिया गया है जो लगातार खाना पकाकर जरूरतमंद एवं संवेदनशील परिवारों, क्वारंटाइन लोगों, और फ्रंटलाईन स्वास्थ्य कर्मियों तक भोजन पहुंचा रहे हैं। संकट के समय में 54 ग्रामीण संगठनों में ‘प्रेरणा कैंटीनों’ को सामुदायिक रसोई में बदला गया है। इसके अलावा एक समूह सखी इन प्रयासों के लिए स्वयं सहायता समूहों और ग्रामीण संगठनों के बीच तालमेल बनाती हैं। कुछ मामलों में स्वयं सहायता समूह स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर काम करते हैं, उनके सदस्य पंचायत द्वारा संचालित अस्पतालों में लंच पैक/भोजन मुहैया कराते हैं, अब जरूरी चीजों एवं कृषि उत्पादों की सुगम आपूर्ति के लिए स्वयं सहायता समूहों और निजी संगठनों एवं अन्य विकास एजेन्सियों के बीच साझेदारी की योजना भी बनाई जा रही है। 

यूपी की कोविड आपदा प्रतिक्रिया में स्वयं सहायता समूहों की इस शुरूआती सफलता को सभी हितधारकों द्वारा पहचाना गया है। रेडियो संबोधन के अलावा यूपी के ग्रामीण विकास मंत्री श्री राजेन्द्र प्रताप सिंह ने समूह सखियों के प्रति आभार व्यक्त किया और उनसे अपने प्रयास जारी रखने का आग्रह किया। पिछले सालों के दौरान यूपी ग्रामीण आजीविका मिशन एक ऐसी प्रणाली के निर्माण के लिए तत्पर है,जहाँ ग्रामीण गरीबों को आजीविका के साधन मिलें, वे वित्तीय एवं सार्वजनिक सेवाओं से लाभान्वित हो सकें। स्वयं सहायता समूहों को बुक कीपिंग, वित्तीय साक्षरता और लीडरशिप आदि में प्रशिक्षण दिया गया है। वे तीन स्तरीय संगठनात्मक सरंचना का आधार बनाते हैं जो स्वयं सहायता समूहों तथा ग्रामीण संगठनों एवं क्लस्टर स्तर के संघों के बीच तालमेल बनाता है। अगले 10-15 सालों में चरणबद्ध तरीके से 10 मिलियन से अधिक महिलाओं को प्रेरित करना इस मिशन का उद्देश्य है।

अन्य राज्यों की तरह लॉकडाउन के बाद, यूपी को भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। देश भर में आर्थिक गतिविधियां बाधित हो गई हैं, लाखों लोगों की आजीविका दांव पर है। यूपी कोई अपवाद नहीं है। यहां पर भी हमें कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। जैसे बड़ी संख्या में ग्रामीण एवं संवेदनशील परिवारों तक राशन पहुंचाना; प्रवासी मजदूरों और अटके हुए लागों को उनके घर तक पहुंचाना। कृषि, पशुधन, मछलीपालन एवं आपूर्ति श्रृंखला पर पड़े प्रभावों को हल करना, जिसकी वजह से लोगों की आय पर असर हुआ है। एक अनुमान के मुताबिक घर लौटने वाले प्रवासी मजदूरों की संख्या 2.6 से 3 मिलियन है, जिसे भोजन तथा अपनी आजीविका को दोबारा शुरू करने के लिए आर्थिक सहायता की ज़रूरत होगी। इसका अर्थ यह है कि सरकार की मानव संसाधन क्षमता को बढ़ाना होगा।

पिछले सालों के दौरान, विभिन्न राज्यों से इसके प्रमाण सामने आए हैं कि स्वयं सहायता समूह विभिन्न सरकारी योजनाओं, सामुदायिक क्षमता निर्माण एवं नीतिगत हस्तक्षेपों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इसके अलावा कई मामलों में हमने पाया है कि उनका योगदान बेहतर स्वास्थ्य परिणामों और सफल वित्तीय समावेशन प्रयासों का कारण भी बना है। उनके अभियानों ने समुदायों के सदस्यों के लिए रोल मॉडल की भूमिका निभाई है।

यूपी में हमने देखा है कि कैसे स्वयं सहायता समूह के मंच एक प्रभावी प्रतिक्रिया प्रणाली के रूप में काम करते हैं। इसने हमें स्थानीकृत एवं समुदाय उन्मुख प्रतिक्रिया के बारे में बताया। कोविड-19 प्रतिक्रिया की बात करें, तो वे प्रेरणा द्वारा लोगों के व्यवहार में बदलाव लाए, उन्होंने सामाजिक आर्थिक समस्याओं को हल करने और ज़रूरतमंदों तक भोजन पहुंचाने में मदद की। स्वयं सहायता समूहों में हमनें सामुदायिक कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित किया है, जो न केवल समुदायों का भरोसा जीत चुके हैं बल्कि सरकार, सिविल सोसाइटी एवं निजी क्षेत्र को भी सहयोग प्रदान कर रहे हैं। आने वाले समय में भी हम यूपी में कोविड-19 की प्रतिक्रिया के लिए अपने प्रयासों को जारी रखेंगे तथा बहादुरी का परिचय देते रहेंगे।

(सुजीत कुमार, आईएएस, उत्तरप्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के मिशन डायरेक्टर )

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