जब हम कठिनाइयों से घिर जाते हैं तो यह मानना चाहिए कि यह अंधेरा भी छट जाएगा

जब हम कठिनाइयों से घिर जाते हैं तो हर तरफ मुश्किलें नजर आती हैं। कुछ सूझता नहीं। अक्सर चारों तरफ अंधेरा नजर आता है।

By Vinay TiwariEdited By: Publish:Thu, 09 Jul 2020 12:38 PM (IST) Updated:Thu, 09 Jul 2020 12:38 PM (IST)
जब हम कठिनाइयों से घिर जाते हैं तो यह मानना चाहिए कि यह अंधेरा भी छट जाएगा
जब हम कठिनाइयों से घिर जाते हैं तो यह मानना चाहिए कि यह अंधेरा भी छट जाएगा

नई दिल्ली [सीमा झा]। जब हम कठिनाइयों से घिर जाते हैं तो हर तरफ मुश्किलें नजर आती हैं। कुछ सूझता नहीं। अक्सर चारों तरफ अंधेरा नजर आता है। यह समय भी ऐसा ही है, जब आप अलग-अलग सूचनाओं के आधार पर बड़ी से बड़ी और बुरी कल्पनाओं से घिर रहे हैं।

आपको अक्सर यह लग सकता है कि समाज या देश पूरी तरह समस्याओं से घिर गया है और यह इतना बुरा है कि सब कुछ खत्म हो जाएगा। आगे बस तबाही होने वाली है। पर ऐसी बुरी कल्पनाएं हमेशा सच हों, यह जरूरी नहीं। यह कहना है जे गिलिहान का। गिलिहान यूनिवर्सिटी ऑफ पेंसिल्वेनिया, अमेरिका में साइकेट्री, डिपार्टमेंट में प्रोफेसर है। 

उनका कहना है कि ज्यादातर ये कल्पनाएं एक बुरे सपने की तरह होती हैं, लेकिन इनसे आपकी मानसिक सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है। संकट भरे समय में ऐसी कल्पनाओं के भंवर में कूद पड़ने की इस मनोदशा को आप स्वयं ही ठीक कर सकते हैं। जैसे अभी वायरस के बढ़ते संक्रमण के बीच आपकी मनोदशा इस तरह की हो सकती है।

ध्यान रहे, जब आप असहाय और निराश हो जाते हैं और आपको लगता है कि चीजें आपसे नहीं संभल सकतीं तो अक्सर ऐसी मनोदशा हावी हो जाती है। संभव है कि आपके मन में कुछ ऐसे खयाल आएं कि मेरा दोस्त संक्रमित हो गया है, अब कभी उसे नहीं देख पाएंगे, या फिर अब मेरी आर्थिक स्थिति कभी ठीक नहीं होगी आदि। 

ये कल्पनाएं जरूरी नहीं कि वास्तव में सच हो जाएं। यह बात कहने का यह अर्थ नहीं है कि आपको सच्चाई से मुंह मोड़ लेना है या इसे छिपाना है या फिर आपके साथ कुछ बुरा हुआ है तो उसे अनदेखा करना है। संभव है कि जो कुछ आपको लग रहा है, आपकी कल्पनाएं उसके करीब हों। पर यह भी तथ्य है कि भविष्य में क्या होगा, यह आप नहीं जानते। हालांकि ऐसे बहुत से कारण हैं, जो आपको परेशान करने के लिए काफी हैं और आप इन कारणों से पलायन किए बिना भी खुद को संभाल सकते हैं।

आइए जानते हैं, ऐसे वक्त में क्या करें :

- अपने मन को शांत करें। इस दौरान उन घटनाओं को याद करें, जब आपने खुद को किसी मुश्किल से बाहर निकाल लिया था।

- वह कौन-सा या किस प्रकार का डर है, जो आपको सबसे अधिक संशय में डाल रहा है? उसे लिख लेने से आप उसे पहचान सकेंगे।

- सोचिए कि क्या कभी इतना बुरा घटा है, जो आपकी कल्पनाओं से भी बड़ा हो।

(साइकोलॉजी टुडे से साभार)

शब्दों का आदान-प्रदान कम हो, बस भावों से बात हो

अक्सर जब अपनों के साथ कुछ बुरा हुआ हो, वे शोक में डूबे हों तो आपको समझ में नहीं आता कि उनसे क्या कहें। फोन पर ही किस तरह से बात करें। कई बार मिलने पर भी असमंजस रहता है कि फोन ही किया जाए या मिलकर ढांढस बंधाया जाए। पर यह ध्यान रहे कि शब्द हमेशा महत्वपूर्ण नहीं होते।

यदि आप अपनी उपस्थिति दिखाना चाहते हैं। आप चाहते हैं कि उन्हें यह एहसास दिलाएं कि उनके दुख में आप उनके साथ हैं तो बेहतर होगा उन्हें बस भावनात्मक मदद दें। यानि शब्दों का आदान-प्रदान कम हो, बस भावों से बात हो। यह आपके साथ-साथ संबंधित दोस्त या प्रियजन के लिए भी बेहतर हो सकता है।

क्या करें: साथ बैठें

यदि साधन डिजिटल है तो उस पल पूरी तरह उनके साथ रहने का प्रयास करें। बस अपने होने का एहसास कराएं। मन से स्पष्ट रहें कि आप उनकी मदद करना चाहते हैं। पारदर्शी हों, एहसास आपके चेहरे पर झलके, इससे सुंदर क्या हो सकता है।

याद रखें, यह मदद करने के अतिशय आत्मविश्वास से कहीं ज्यादा बेहतर है। इस समय आप अपने अनुभवों से प्रियजनों की स्थिति की तुलना करें तो समानुभूति प्रभावी होती जाएगी। साथ ही आपको अच्छी तरह सुनना भी सीखना है। ऐसा न हो कि आप बस बोलते जाएं।

सामने वाला कुछ कहना चाह रहा हो, पर कह न सके। अपनों को एहसास कराएं कि आप सलाह देने नहीं, बस सुनने आए हैं। इससे आपके अपनों की शोक के दौरान बदल सकती हैं मन की राहें। इस राह पर वे अकेले नहीं हैं, यह यकीन बढ़ने लगता है। फिर हम उनके साथ कुछ मिनट रहें या कुछ घंटे, यह मायने नहीं रखता। साथ ही, किसी भी दुख या शोक भरे मन को ठीक होने में समय भी तो लगता है।  

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