Kumbh Mela 2019: भवानी को 13 साल की उम्र में पता चला-वह किन्नर हैं

वे बताती हैं कि घर छोड़ने का निर्णय उनका खुद का है। पिता ने बहुत रोका कि घर से न जाऊं, लेकिन उनकी बात नहीं मानी।

By Sachin BajpaiEdited By: Publish:Fri, 18 Jan 2019 10:05 PM (IST) Updated:Fri, 18 Jan 2019 10:05 PM (IST)
Kumbh Mela 2019: भवानी को 13 साल की उम्र में पता चला-वह किन्नर हैं
Kumbh Mela 2019: भवानी को 13 साल की उम्र में पता चला-वह किन्नर हैं

शरद द्विवेदी, कुंभनगर।  मैं तो आम बच्चों की तरह थी। सबके साथ खेलना, उठना-बैठना था। स्कूल भी साथ जाती थी। फिर अचानक जीवन में ऐसा मोड़ आया कि सब कुछ बदल गया। मुझे 13 साल की उम्र में पता चला कि किन्नर हूं। फिर वाणी में कुछ देर का ठहराव..।

यह दर्द है किन्नर अखाड़ा की उत्तर भारत की महामंडलेश्वर भवानी मां का। दिल्ली के चाणक्यपुरी में जन्मी भवानी बताती हैं कि बचपन से ही वह सुंदर थीं। इस वजह से लोगों की खराब निगाहों का भी सामना करना पड़ा।

वे बताती हैं कि घर छोड़ने का निर्णय उनका खुद का है। पिता ने बहुत रोका कि घर से न जाऊं, लेकिन उनकी बात नहीं मानी। पहली गुरु नूरी थीं, जहां शबनम नाम मिला। कहती हैं कि किन्नरों की पहली उपेक्षा उनके घर में शुरू होती है। आम लड़का-लड़की से अलग देखते हैं उन्हें। अधिकार व सम्मान के लिए लड़ना पड़ता है। उपेक्षा का दंश उन्हें बहुत परेशान करता है, जबकि किन्नर समाज उनके लिए सबसे सुरक्षित होता है। वहां गुरु-शिष्य परंपरा होती है। वह सरकार से किन्नरों के लिए सम्मान की मांग करती हैं।

कहती हैं किन्नरों के लिए अलग शौचालय का प्रबंध होना चाहिए। इस्लाम स्वीकार करने वाले किन्नरों को पुन: हिंदू बनाने के प्रश्न पर कहती हैं कि वह ऐसा कुछ नहीं करेंगी, हां अपना काम बेहतर तरीके से करेंगी, जिससे सीख लेकर दूसरे किन्नर खुद का जीवन सुधारें। जो किन्नर सनातन धर्म से जुड़ेगा, उसे किन्नर अखाड़ा हरस्तर पर मदद देगा।

शबनम से बनीं मो. असलम

किन्नर समाज में शबनम का रुतबा तेजी से बढ़ता गया। पहली गुरु नूरी के पास से 2007 में सीमा हाजी के पास आ गई। धीरे-धीरे मेरा प्रभाव बढ़ता गया। चेलों की संख्या में इजाफा हुआ। वह 2010 में दिल्ली के बदलपुर क्षेत्र की इंचार्ज बन गईं। प्रभाव बढ़ने पर काम करने में दिक्कत आने लगी, इस पर उन्होंने 2011 में इस्लाम स्वीकार कर लिया। यहां नाम मिला मो. असलम। वह 2012 में हज भी कर चुकी हैं, लेकिन इस्लाम में मन नहीं लगा। इसके बाद 2014 में पुन: सनातन धर्म में वापसी कर ली।

किन्नर अखाड़ा का किया गठन

भवानी माई किन्नर अखाड़ा की संस्थापक सदस्य हैं। लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी के साथ उन्होंने 2015 में किन्नर अखाड़ा की रूपरेखा तैयार कराकर उसका गठन कराया। किन्नर अखाड़ा के जरिए स्वयं का रहन-सहन, आचार-व्यवहार बदलने के साथ किन्नर समाज को दिशा देने का प्रयत्न कर रही हैं।

महाकाली की उपासक हैं भवानी

भवानी का जन्म 17 नवंबर 1972 में दिल्ली के चाणक्यपुरी में हुआ। पिता स्व. चंदरपाल सेना में चतुर्थश्रेणी कर्मचारी थे। आठ भाई-बहनों में सबसे बड़ी भवानी का बचपन का नाम भवानी ¨सह वाल्मीकि है। वह बचपन से मां महाकाली की उपासक हैं। इस्लाम स्वीकार करने के बावजूद उनके घर में काली की पूजा होती थी। आज भी उनकी उपासना में घंटों समय बिताती हैं।

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