यूरोपीय यूनियन और चीन में निवेश समझौते से भारत की बढ़ेगी चुनौतियां, जानें क्या कहते हैं विशेषज्ञ
चीन एक के बाद अंतरराष्ट्रीय निवेश समझौतों पर आगे बढ़ रहा है। चीन और यूरोपीय संघ के बीच बुधवार को नए निवेश समझौते को अंतिम रूप दे दिया गया। जानकार मानते हैं कि इसका असर इन दोनों के बीच के कारोबारी एवं कूटनीतिक रिश्तों पर पड़ना तय है।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। दूसरे देशों के साथ व्यापार और निवेश समझौता करने को लेकर भारत की हिचकिचाहट बरकरार है जबकि चीन एक के बाद अंतरराष्ट्रीय निवेश समझौतों पर आगे बढ़ रहा है। इस क्रम में बुधवार को चीन और यूरोपीय संघ के बीच नए निवेश समझौते को अंतिम रूप दे दिया गया, जिसका असर इन दोनों के बीच के कारोबारी व कूटनीतिक रिश्तों पर पड़ना तय है। जानकार यह भी मान रहे हैं कि इसका असर भारत और ईयू के बीच ट्रेड व इंवेस्टमेंट समझौते को लेकर होने वाली बातचीत पर भी पड़ेगा।
भारत के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ी
भारत और ईयू के बीच हाल में इसको लेकर शुरुआती बातचीत हुई है और मई, 2021 में पीएम नरेंद्र मोदी की यूरोपीय संघ की यात्रा के बाद इसके रफ्तार पकड़ने की उम्मीद है। भारत ने इसके पहले चीन समेत 15 देशों की सदस्यता वाले व्यापार समझौते आरसेप (रीजनल कंप्रेहेंसिव ट्रेड एग्रीमेंट) से बाहर रहने का फैसला किया था। देश के निर्यातकों के संगठन फियो के डीजी और सीईओ अजय सहाय का कहना है, 'चीन ने यूरोपीय संघ के साथ निवेश समझौते को अंतिम रूप देकर भारत के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ा दी है। यूरोपीय कंपनियों के समक्ष भारत को बेहतर प्रस्ताव रखना होगा।'
भारत को भी बढ़ाना चाहिए कदम
अजय सहाय कहते हैं कि चीन भी भारत की तरह ही एक बड़ा बाजार है जहां निवेश करने से कंपनियों को कई फायदे हैं। भारत के साथ अच्छी बात यह है कि यहां कानून का जोर चलता है और नीतियों को लेकर ज्यादा स्थिरता है। चीन में शुरुआत में सारी मंजूरी आसानी से मिल जाती है लेकिन बाद में हालात बिगड़ जाते हैं। साथ ही विदेशी कंपनियों के अधिकारी भी भारत के कर्मचारियों के साथ काम करने को ज्यादा महत्व देते हैं। भारतीय बाजार भी अच्छा रिटर्न देता है। मोटे तौर पर भारत पर असर तो होगा लेकिन हमें यूरोपीय संघ के साथ समझौते पर आगे बढ़ने में अब ज्यादा देरी नहीं करनी चाहिए।
वैश्विक गुस्से को शांत करने की जुगत में चीन
कुछ जानकार यह मानते हैं कि कोविड के बाद से चीन को लेकर जो वैश्विक माहौल बना है उसे देखते हुए चीन की सरकार ने ईयू के साथ निवेश समझौते को अंतिम रूप देने में जल्दबाजी दिखाई है। वह दुनिया को संदेश देना चाहता है कि वह वैश्विक कारोबार के लिए खुला है। यही वजह है कि यूरोपीय संघ की कंपनियों के लिए वह अपने ऑटोमोबाइल, फाइनेंशियल सर्विसेज, रियल एस्टेट, पर्यावरण व स्वास्थ्य जैसे सेक्टर में ज्यादा रियायत देने को तैयार हुआ है। हाल के दिनों में बड़ी संख्या में कंपनियां चीन से अपने प्लांट दूसरे देशों में ले गई हैं।
अमेरिका और ईयू की दोस्ती पड़ेगी कमजोर
बहरहाल, इस समझौते से चीन और ईयू के बीच के कूटनीतिक तनाव को भी कम करने में मदद मिलेगी। कई अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक विशेषज्ञों ने अपनी टिप्पणी में लिखा है कि हाल के दिनों में ईयू ने चीन की विस्तारवादी नीतियों के खिलाफ खड़े होने के जो संकेत दिए थे, उन पर अब सवाल उठ खड़ा हुआ है। साथ ही चीन की आक्रामक विस्तारवादी नीतियों के समक्ष अमेरिका और यूरोपीय संघ के बीच एक गठजोड़ की संभावना भी दरकती दिख रही है।
चीन के खिलाफ ढीले पड़ेंगे ईयू के तेवर
भारत के पूर्व विदेश सचिव कवल सिब्बल मानते हैं कि इस समझौते से चीन और ईयू के बीच संबंध गहरे होंगे और चीन की चुनौतियों के खिलाफ खड़े होने की ईयू की इच्छाशक्ति भी कमजोर पड़ेगी। सिब्बल ने ट्वीट किया, 'खास तौर पर जर्मनी और चीन के बीच रिश्ते और मजबूत होंगे। जब तक जर्मनी का सहयोग न हो ईयू चीन के गलत व्यवहार के सामने नहीं खड़ा हो सकेगा।'