जानें- क्‍या है Moscow Format और भारत के लिए 20 अक्‍टूबर का दिन क्‍यों है खास

मास्‍को फार्मेट में के जरिए दूसरी बार तालिबान औ भारत आमने सामने आने वाले हैं। इस फार्मेट की शुरुआत रूस ने वर्ष 2017 में की थी। एक वर्ष बाद इसमें तालिबान को भी बातचीत के लिए शामिल किया गया था।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Sun, 17 Oct 2021 10:17 AM (IST) Updated:Sun, 17 Oct 2021 03:04 PM (IST)
जानें- क्‍या है Moscow Format और भारत के लिए 20 अक्‍टूबर का दिन क्‍यों है खास
वर्ष 2017 में रूस ने की थी मास्‍को फार्मेट की शुरुआत

नई दिल्‍ली (जेएनएन)। अफगानिस्‍तान में तालिबान के आने के बाद से भारत ने उससे पूरी तरह से दूरी बना रखी है। तालिबान के आने के बाद से अब तक केवल एक ही बार 31 अगस्‍त को दोनों की औपचारिक बातचीत हुई है। ये बातचीत दोहा में हुई थी। तालिबान को लेकर भारत की स्थिति बेहद स्‍पष्‍ट है। भारत चाहता है कि अफगानिस्‍तान आतंकियों के लिए जन्‍नत न बन सके। भारत हमेशा से ही अफगानिस्‍तान की शांति, अखंडता का हिमायती रहा है। यही वजह है कि आतंकवाद के दिनों में भी भारत ने अफगानिस्‍तान के विकास में पूरी मदद की है।

तालिबान लगातार अपील करता रहा है कि भारत अफगानिस्‍तान से अपनी हवाई सेवा और दूसरी चीजें शुरू करे। हालांकि भारत इस फैसले को लेने से पहले तालिबान का पूरा विश्‍लेषण कर लेना चाहता है। यही वजह है कि भारत तालिबान के साथ होने वाली अहम बैठक मास्‍को फार्मेट में शामिल हो रहा है। ये बैठक 20 अक्‍टूबर को मास्‍को में होनी है।

भारत ने इसमें शामिल होने के लिए अपनी स्‍वीकृति दे दी है। इस बैठक का आयोजन रूस की तरफ से किया जा रहा है। ये बैठक मुख्‍यरूप से अफगान संकट का समाधान निकालने के लिए आयोजित की गई है। आपको बता दें कि तालिबान के आने के बाद से अफगानिस्‍तान में आईएस -के के हमले काफी बढ़ गए हैं। इस बैठक में दुनिया के ग्‍यारह देश हिस्‍सा लेने वाले हैं। इस बैठक का एक अहम मकसद ये भी है कि तालिबान को इस बात पर राजी किया जाए कि वहां पर ज्यादा समावेशी सरकार का गठन बेहद जरूरी है। भारत की तरफ से कहा गया है कि तालिबान की सरकार समावेशी नहीं है।

गौरतलब है कि वर्ष 2017 में मॉस्को फॉर्मेट की शुरुआत हुई थी। उस वक्‍त इसके केवल छह सदस्‍य देश थे, जिसमें रूस, अफगानिस्तान, भारत, ईरान, चीन और पाकिस्तान का नाम शामिल था। तालिबान की बात करें तो सबसे पहले वर्ष 2018 में रूस ने तालिबान को इस फार्मेट में बातचीत के लिए आमंत्रित किया था। हालांकि उस वक्‍त भारत ने इस वार्ता में अनौपचारिक स्तर पर भाग लिया था।

अफगानिस्‍तान में तालिबान की सरकार बनने के करीब दो माह बाद भी भारत ने अब तक तालिबान को किसी भी तरह का सहयोग देने का कोई संकेत नहीं दिया है। भारत का ये भी कहना है कि वो तालिबान के मुद्दे पर विश्‍व बिरादरी के साथ है। अफगानिस्तान में स्थित अपने दूतावास और वाणिज्य दूतावासों को भारत पहले ही खाली कर चुका है। हालांकि तालिबान ने अपील की है कि इनको दोबारा शुरू करना चाहिए।

गौरतलब है कि बीते दिनों जी-20 देशों की बैठक में भारत की तरफ से साफ कहा गया था कि अफगानिस्तान को एक समावेशी सरकार और लोगों को सहयोग की जरूरत है। साथ ही इस बात की भी चिंता जताई थी कि कहीं अफगानिस्‍तान आतंकवाद को जन्‍म देने वाले आतंकियों की भूमि बनकर न रह जाए। बता दें कि काबुल में रूस का दूतावास बादस्‍तूर काम कर रहा है। अफगानिस्‍तान और तालिबान के मुद्दे पर रूस ने अमेरिका, चीन और पाकिस्तान के साथ मिलकर एक ग्रुप बनाया है।

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