दलाई लामा को मोदी की ओर से जन्मतिथि की शुभकामनाओं के पीछ के क्या हैं मायने? भारत सरकार ने चीन को दिया यह संकेत

प्रधानमंत्री ने चीन को दिया तिब्बत नीति में बदलाव का संकेत। अभी तक दलाई लामा से संवाद को सार्वजनिक करने से बचती रही है भारत सरकार। पीएम का पद पहली बार संभालने के बाद मोदी ने वर्ष 2014 में दलाई लामा से मुलाकात की थी।

By Nitin AroraEdited By: Publish:Tue, 06 Jul 2021 09:23 PM (IST) Updated:Tue, 06 Jul 2021 09:23 PM (IST)
दलाई लामा को मोदी की ओर से जन्मतिथि की शुभकामनाओं के पीछ के क्या हैं मायने? भारत सरकार ने चीन को दिया यह संकेत
दलाई लामा को मोदी की ओर से जन्मतिथि की शुभकामनाओं के पीछ के क्या हैं मायने?

नई दिल्ली, जयप्रकाश रंजन। भारत में पिछले छह दशकों से निर्वासित जीवन बिता रहे तिब्बत के धार्मिक नेता दलाई लामा की मंगलवार को 86वीं जन्मतिथि थी और पीएम नरेंद्र मोदी ने उन्हें टेलीफोन कर लंबे जीवन की शुभकामनाएं दी। चीन के साथ बेहद तनावपूर्ण रिश्ते को देखते हुए पीएम मोदी की तिब्बत के धार्मिक नेता से टेलीफोन वार्ता को बहुत ही अहम माना जा रहा है। भारत सरकार के दलाई लामा के साथ रिश्तों को लेकर चीन की भृकुटियां हमेशा से तनी रहती हैं और अभी तक मोदी बतौर प्रधानमंत्री चीन के रवैये का एक हद तक लिहाज भी कर रहे थे। दलाई लामा के उत्तराधिकारी के मुद्दे पर पहले से ही भारत व चीन के बीच अंदरूनी तानातनी चल रही है।

मोदी ने दोपहर में ट्विटर पर बताया, 'मैंने दलाई लामा से उनकी 86वीं जन्मतिथि पर बात की और उन्हें लंबे व स्वस्थ जीवन की शुभकामनाएं दी।' इस संक्षिप्त संदेश को भारत की तिब्बत नीति में बदलाव के तौर पर देखा जा रहा है। भारतीय पीएम की अभी तक दलाई लामा के साथ अपनी मुलाकात या टेलीफोन वार्ता को सार्वजनिक नहीं करने की परंपरा रही है।

पीएम का पद पहली बार संभालने के बाद मोदी ने वर्ष 2014 में दलाई लामा से मुलाकात की थी। लेकिन उसके कुछ ही दिनों बाद चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग का भारत दौरा होना था। संभवत: इसे देखते हुए दलाई लामा के साथ मुलाकात को ज्यादा प्रचारित नहीं किया गया था। यही नहीं मोदी और चिनफिंग की वुहान में हुई पहली अनौपचारिक बैठक से पहले भारत सरकार ने अपने अधिकारियों को दलाई लामा के आधिकारिक सम्मेलन में हिस्सा लेने से भी रोका था। जाहिर है कि उन्होंने अब इस नीति से दूर होने का संकेत दे दिया है। चीन लगातार दलाई लामा को लेकर सशंकित रहा है और उसने कई बार भारत पर दबाव बनाने की कोशिश की है। कई बार भारत ने चीन की आपत्तियों को दरकिनार भी किया है। वर्ष 2017 में दलाई लामा के अरुणाचल प्रदेश यात्रा को लेकर भी चीन ने काफी विरोध किया था। इसके बावजूद उन्होंने भारत व चीन की सीमा पर स्थित इस पूर्वोत्तर राज्य का दौरा किया था।

कम्युनिस्ट पार्टी को 100 साल होने पर कोई बधाई संदेश नहीं 

यह पिछले एक हफ्ते के भीतर दूसरा मौका है, जब भारत ने चीन को बताने की चेष्टा की है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर बढ़ रहा तनाव दोनों देशों के रिश्तों को किस हद तक बदल चुका है। अभी चार जुलाई को मोदी ने अमेरिका के स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर राष्ट्रपति जो बाइडन व अमेरिकी जनता को बधाई दी। लेकिन, इससे पहले एक जुलाई को जब चीन की कम्युनिस्ट पार्टी अपनी स्थापना की शताब्दी मना रही थी तो भारत की तरफ से कोई बधाई संदेश नहीं भेजा गया था। चीन के सैनिकों ने मई 2020 में पूर्वी लद्दाख स्थित वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) का उल्लंघन कर भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ की थी। उसके बाद से ही दोनों देशों के बीच सैन्य गतिरोध बना हुआ है।

भारत को अब चीन की संवेदनाओं का ख्याल रखने की जरूरत नहीं
कई जानकारों का कहना है कि भारत को अब मौजूदा दलाई लामा के मुद्दे पर चीन की संवेदनाओं का ख्याल रखने की जरूरत नहीं है। खास तौर पर तब जब चीन की तरफ से दलाई लामा के बाद उनकी जगह पर नए दलाई लामा को बिठाने को लेकर अंदरखाने कई तरह की साजिशें रची जा रही हैं। देश के प्रमुख रणनीतिक विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी का कहना है कि पीएम मोदी ने दलाई लामा को जन्मतिथि की बधाई दे कर बहुत अच्छा किया है। वह दुनिया में सबसे आदरणीय बौद्ध नेता हैं। चीन उनके बाद उनकी जगह पर अपने किसी कठपुतली को बिठाना चाहता है। इस योजना को उन देशों को असफल बनाना चाहिए जो आजादी में विश्वास रखते हैं।

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