विधानसभा अध्यक्ष की मंजूरी के बिना पश्चिम बंगाल के मंत्री की गिरफ्तारी गैरकानूनी- एक्सपर्ट
पश्चिम बंगाल के मंत्री की गिरफ्तारी के बाद एक बार फिर से राज्य सरकार और केंद्र सरकार आमने-सामने आ गए हैं। पश्चिम बंगाल की सरकार और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इसको गलत बता रही हैं। इस संबंध में संविधान विशेषज्ञ की भी यही राय है।
नई दिल्ली (ऑनलाइन डेस्क)। पश्चिम बंगाल की राजनीति चुनाव के बाद एक बार फिर से चरम पर है। सीबीआई के बहाने एक बार फिर से पश्चिम बंगाल की सरकार और केंद्र आमने-सामने आ गए हैं। इस बार वजह बनी है पश्चिम बंगाल के मंत्री की गिरफ्तारी। इस गिरफ्तारी के लिए सीबीआई ने विधानसभा अध्यक्ष बिमान बनर्जी की मंजूरी तक लेनी जरूरी नहीं समझी। यही वजह है कि पश्मिच बंगाल की मुख्यमंत्री इसको केंद्र के इशारे पर सीबीआई द्वारा उठाया गया एक कदम बता रही हैं।
इस संबंध में जानें माने सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील डॉक्टर एपी सिंह का कहना है कि इस तरह की गिरफ्तारी में विधानसभा अध्यक्ष की मंजूरी बेहद जरूरी होती है। सीबीआई को इस गिरफ्तारी से पहले पश्चिम बंगाल के विधानसभा अध्यक्ष की मंजूरी नियमानुसार लेनी चाहिए थी। भारतीय संविधान इस तरह से किसी भी मंत्री की गिरफ्तारी की इजाजत नहीं देता है। उनके मुताबिक यदि कोई विधानसभा का सदस्य होता है तो उसके लिए संविधान में यही नियम है कि पुलिस या सीबीआई उसकी गिरफ्तारी से पहले विधानसभा अध्यक्ष की मंजूरी हासिल करे। इसके बाद ही उसकी गिरफ्तारी को सही करार दिया जा सकता है।
ये पूछे जाने पर कि अब पश्चिम बंगाल की सरकार के पास में क्या विकल्प बचता है तो उन्होंने बताया कि सरकार इसको हाईकोर्ट और फिर वहां से किसी भी तरह से संतोषजनक निर्णय न होने पर सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले को चैलेंज कर सकती है। डॉक्टर एपी सिंह के मुताबिक पुलिस या सीबीआई ऐसी स्थिति में जहां आरोपी भगोड़ा हो अथवा लगातार अपराध करने वाला हो, वहां पर इस तरह का कदम उठा सकती है। लेकिन पश्चिम बंगाल में मंत्री की गिरफ्तारी में ये दोनों ही सूरत लागू नहीं होती हैं।
आपको बता दें कि सीबीआई ने नारदा स्टिंग मामले में पश्चिम बंगाल के मंत्री फिरहाद हकीम, सुब्रत चटर्जी, सोवन चटर्जी और मदन मित्रा को गिरफ्तार किया है। इसके खिलाफ ममता बनर्जी भी सीबीआई दफ्तर पहुंचीं और कहा कि उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया जाए। गौरतलब है कि फिरहाद हकीम के खिलाफ सीबीआई जांच के लिए पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीश धनखड़ ने मंजूरी दी थी।
ये मामला दरअसल, वर्ष 2016 का है। यह स्टिंग ऑपरेशन नारदा न्यूज पोर्टल के मैथ्यू सैमुअल ने किया था। साल 2017 में कलकत्ता हाईकोर्ट ने इन टेप की जांच का आदेश सीबीआई को दिया था। इसमें पश्चिम बंगाल की सत्ताधारी पार्टी के मंत्री, सांसद और विधायक को कथिततौर पर एक कंपनी के प्रतिनिधि से रिश्वत लेते हुए दिखाया गया था।