पश्चिम बंगाल: ममता दीदी ने दलितों को लुभाने के लिए चली अकादमी की चाल, अन्य दलों में खलबली

ममला बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में दलित साहित्य अकादमी गठन की घोषणा कर दी है। यहां अगले साल चुनाव है। ऐसे में ये कहा जा रहा है कि इस अकादमी का गठन चुनाव को ध्यान में रखकर किया गया है।

By Vinay TiwariEdited By: Publish:Mon, 21 Sep 2020 04:03 PM (IST) Updated:Mon, 21 Sep 2020 04:03 PM (IST)
पश्चिम बंगाल: ममता दीदी ने दलितों को लुभाने के लिए चली अकादमी की चाल, अन्य दलों में खलबली
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी मंच से बोलते हुए।

नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क/एजेंसी। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दलितों पर निशाना साधकर राजनीति को एक नई दिशा की ओर मोड़ दिया है। अब वो अपने को देश भर के दलितों की हितैषी बनाने की ओर बढ़ चली है। इस दिशा में उनका पहला कदम बंगाल में ही दलित साहित्य अकादमी के गठन को माना जा रहा है। उन्होंने बंगाल में दलित साहित्य अकादमी के गठन का एलान किया है। इसको लेकर भी लोग तरह-तरह की बातें कर रहे हैं, कोई इसे बढ़िया पहल बता रहा है तो कोई दलित वोटों को पाने की रणनीति बता रहा है। इन सबके बावजूद इतना जरूर है कि पश्चिम बंगाल इस तरह की अकादमी बनाने वाला देश का पहला राज्य जरूर बन गया है।

दलित मुख्यमंत्री रहे मगर नहीं किया किसी अकादमी का गठन

यदि देश के राज्यों की राजनीति पर नजर डालें तो यहां कई राज्यों में दलित मुख्यमंत्री रहे हैं लेकिन अब तक किसी राज्य में ऐसी किसी अकादमी का गठन नहीं किया गया। यूपी, बिहार जैसे राज्यों में दलित मुख्यमंत्री राज कर चुके हैं मगर उनकी ओर से इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया। उधर ममता इससे पहले अपने राज्य में आदिवासी अकादमी के गठन का भी एलान कर चुकी हैं।

साल 2021 में विधानसभा चुनाव

राजनीति के जानकारों का कहना है कि ममता की निगाहें अगले साल होने वाले अहम विधानसभा चुनावों पर हैं। वो इस बार दलितों और आदिवासियों को अपने पाले में करने में लगी हुई हैं। हालांकि ममता बनर्जी की दलील है कि दलित साहित्य भी बांग्ला साहित्य का हिस्सा है। पहले राज्य में एक आदिवासी अकादमी थी लेकिन दलित साहित्य को समुचित स्वरूप में बढ़ावा देने के लिए ही सरकार की इस नई अकादमी के गठन का फैसला किया गया। उनका कहना है कि नई अकादमी के तहत दलित के अलावा आदिवासी, नमोशुद्र, डोम, बागदी, बाउरी और मांझी समेत अनुसूचित जनजाति में शामिल तमाम जातियों के साहित्य को बढ़ावा दिया जाएगा। 

दलित साहित्य अकादमी

सीएम ममता बनर्जी ने इसी सप्ताह पश्चिम बंगाल में देश की पहली दलित साहित्य अकादमी के गठन का एलान किया। सड़क से साहित्य के शिखर तक पहुंचने वाले मशहूर दलित लेखक मनोरंजन ब्यापारी को इस 14 सदस्यीय अकादमी का अध्यक्ष बनाया गया है। उनका कहना था कि आदिवासियों, पिछड़ों और समाज के हाशिए पर रहने वाले लोगों की भाषा को बढ़ावा देना ही इस अकादमी के गठन का मकसद है। बांग्ला भाषा पर दलित भाषाओं का काफी असर है।

दलित बहुल इलाके पर नजर

राजनीति के जानकारों का कहना है कि सीएम ममता की निगाहें बंगाल के जंगल महल इलाके पर है। बीते लोकसभा चुनाव में इस इलाके से बीजेपी का कामयाबी मिली थी, यहां के वोटरों ने बीजेपी का साथ दिया था। इस वजह से इस बार वो यहां के वोटरों को लुभाकर अपने पक्ष में करना चाह रही हैं। इस इलाके में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के करीब 40 प्रतिशत वोटर हैं। यहां के अकेले बांकुड़ा जिले में ही विधानसभा की 12 सीटें हैं और जिले में एससी व एसटी की आबादी 38.5 प्रतिशत है। 

निकाले जा रहे सियासी मतलब

पश्चिम बंगाल सरकार के ताजा फैसले के कई सियासी मतलब निकाले जा रहे हैं। सवाल उठ रहा है कि क्या ममता कि मंशा दलित साहित्य को सिर्फ मुख्यधारा में लाने की है। इस सवाल का उठना भी लाजिमी है क्योंकि वे नौ साल से सत्ता में हैं और उन्हें पता है कि दलित साहित्य की क्या स्थिति है। अब 9 साल के बाद उनको इस दलित साहित्य अकादमी के गठन की क्या सूझी? जबकि वो 9 साल से यहां की सीएम है। ऐसे में विपक्ष का कहना है कि अगले साल चुनाव होने हैं, इसको ही ध्यान में रख कर ही ऐसा किया गया है।  

राजनीति दलों में बयानबाजी

चुनाव से पहले ममता बनर्जी के इस अकादमी के गठन की घोषणा पर बीजेपी, कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय दल बयानबाजी करने लगे हैं। बीजेपी इसे चुनाव को ध्यान में रखकर किया गया फैसला कह रही है तो कांग्रेस भी इसे सियासी कदम बता रही है। हालांकि कांग्रेस का कहना है कि यदि दलितों को ध्यान में रखकर ये काम किया जा रहा है तो ठीक है मगर ये कहीं चुनावी वायदे की तरह ही न हो। इसका ध्यान रखा जाना चाहिए। चुनाव जीतने के बाद अकादमी जमीन पर कहीं भी नजर न आए।

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