जीने की राह: परिवर्तन को करना है स्वीकार, एक-दूसरे को समझें, सहयोग करें
सबके प्रति दया एवं उदारता का भाव रखें। मेहनत करें। कर्म करें और धैर्य रखें। अध्यात्म भी यही सीख देता है कि एक-दूसरे को समझें सहयोग करें साथ में खुशियां बांटें। बौद्ध धर्म ने हमें सिखाया है कि दूसरों के दुख को कैसे दूर करो।
नई दिल्ली, जेएनएन। क्या आपने कीड़े-मकोड़ों, जीव-जंतुओं को साथ में रहते देखा है? वे आपस में कितने प्रेम के साथ रहते हैं। वे हमें सीख देते हैं कि कैसे प्रेम भाव के साथ खुशी से रहा जा सकता है। लेकिन आज मानवता के सामने अनेक प्रकार की चुनौतियां आ रही हैं। मनुष्य-मनुष्य का शत्रु बन गया है। वे राग-द्वेष-ईर्ष्या के वशीभूत हो गए हैं। जो हमारे सामने होता है या दिखाई देता है, उसे ही हम सत्य मान लेते हैं। उसके पीछे के कारणों के बारे में जानने की कोशिश नहीं करते हैं। इन दिनों हमें हर चीज से डर लग रहा है। इसलिए जो स्थायी नहीं होता है, हम उसे खारिज कर देते हैं। हम सब कुछ स्थायी होने की अपेक्षा रखते हैं। किसी वस्तु या व्यक्ति से अलग नहीं होना चाहते हैं।
इस कारण मृत्यु को भी नकार देते हैं। हमारे बाल सफेद हो रहे होते हैं, लेकिन हम उसे डाई करते रहते हैं, क्योंकि हम बदलाव को स्वीकार नहीं करते या नहीं करना चाहते हैं। यह सबसे बड़ी गलती हम अपने जीवन में करते हैं, जबकि यह अटल सत्य है कि जो इस धरती पर आया है, उसे वापस जाना है। फिर क्यों न स्वयं को यह याद दिलाते रहें कि एक दिन सब छूट जाएगा। यही सत्य है। हां, सबका अपना नियत समय होता है। अगर हम भिक्षुओं की ही बात करें, तो वे रात्रि में सोने से पहले अपना कप उलट कर सोते हैं। क्योंकि उन्हें स्मृति होती है कि संभव है कि अगली सुबह वह उस कप में चाय या काफी का सेवन करने के लिए जीवित न रहें। किसी को अपने जाने की खबर नहीं होती, लेकिन जाना सभी को है। ऐसे में क्यों न परिवर्तन को सहजता से स्वीकार करें। परिवर्तन सतत चलता रहता है। आप दूसरों को जितना देंगे, उतना ही पाएंगे। इसलिए सबको प्यार दें। सबके प्रति दया एवं उदारता का भाव रखें। मेहनत करें। कर्म करें और धैर्य रखें। अध्यात्म भी यही सीख देता है कि एक-दूसरे को समझें, सहयोग करें, साथ में खुशियां बांटें। बौद्ध धर्म ने हमें सिखाया है कि दूसरों के दुख को कैसे दूर करो।
लेखक- पलगा रिनपोचे, बौद्ध शिक्षक एवं दार्शनिक, लद्दाख
(हिमालयन इंस्टीट्यूट आफ आल्टरनेटिव लर्निंग एवं ओमनिवर्स के एक कार्यक्रम में हुए संबोधन से)