मानसून सीजन में होगी पानी की भरपूर खेती, दक्षिणी छोर से चला मानसून भर रहा जलाशयों का पेट

अच्छा मानसून यूं तो अच्छी खेती और उपज से ही जुड़ता रहा है लेकिन इस बार की तैयारी यह है कि मानसून हमारे जलाशयों का भी पेट भरकर जाए। इस मंशा के साथ कैच द रेन मुहिम ने रंग दिखाना शुरू कर दिया है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Publish:Fri, 18 Jun 2021 09:14 PM (IST) Updated:Fri, 18 Jun 2021 11:29 PM (IST)
मानसून सीजन में होगी पानी की भरपूर खेती, दक्षिणी छोर से चला मानसून भर रहा जलाशयों का पेट
इस बार की तैयारी यह है कि मानसून हमारे जलाशयों का भी पेट भरकर जाए।

सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। अच्छा मानसून यूं तो अच्छी खेती और उपज से ही जुड़ता रहा है, लेकिन इस बार की तैयारी यह है कि मानसून हमारे जलाशयों का भी पेट भरकर जाए। इस मंशा के साथ 'कैच द रेन' मुहिम ने रंग दिखाना शुरू कर दिया है। इसके तहत जल संरक्षण की ढांचागत परियोजनाओं को उच्च प्राथमिकता दी गई। अभियान अपने उद्देश्य को पूरा करने में सफल रहा है। गांव-देहात से लेकर कस्बों और शहरी निकायों तक में जल संरक्षण की दिशा में उल्लेखनीय ढांचागत प्रगति हुई है।

चेकडैम बनाने का काम पूरा

मानसून की बारिश के ठीक पहले ताल-तलैया, पोखर और छोटे-बड़े जलाशयों की साफ-सफाई और नए तालाबों की खोदाई के साथ वॉटर रिचार्जिंग, बरसाती नदियों व नालों में चेकडैम बनाने का काम पूरा कर लिया गया है। इस दौरान जल संरक्षण के लिए कराए ढांचागत कार्यों की जियो टैगिंग भी की गई है। पिछले दो महीनों की मुहिम में जल संरक्षण से जुड़े कार्यों में केंद्र सरकार के साथ राज्य सरकारों और स्थानीय निकायों की भूमिका अहम रही है, जिसमें जन जागरूकता अभियान का बड़ा श्रेय है।

रेन वॉटर हार्वेस्टिं‍ग के काम में तेजी

ग्रामीण विकास मंत्रालय ने इस दौरान जल संरक्षण से जुड़े ढांचागत विकास में 1.64 लाख करोड़ रुपये व्यय किए हैं। इससे अलग रेन वाटर हार्वेस्टिं‍ग के लिए 5,360 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। इसमें कुल 1.82 लाख कार्य कराए गए हैं। कुल 37,428 परंपरागत ढांचे के साथ मौजूदा पुराने तालाबों का पुनरोद्धार किया गया जिस पर कुल 2,666 करोड़ रुपये का खर्च आया।

मानसून का पूरा लाभ उठाने की तैयारी

मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक कुल 42 हजार से अधिक कार्य प्रगति पर है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत जल संरक्षण से जुड़े कार्यों पर 14 हजार करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। यानी लगभग 80 हजार जलाशय तो केवल केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय की ओर से मानसून का पूरा लाभ उठाने के तैयार है। राज्यों में अलग तैयारी हुई है। मानसून में यह भरा तो सचमुच पानी की खेती ही होगी। दक्षिण से उत्तरी राज्यों की ओर बढ़ रहा मानसून नए पुराने जलाशयों व तालाबों को भरता आ रहा है।

सरकार के ज्यादातर मंत्रालयों ने लिया बढ़-चढ़कर हिस्सा

'कैच द रेन' अभियान की नोडल एजेंसी जलशक्ति मंत्रालय के साथ केंद्र के ज्यादातर मंत्रालयों ने इस दिशा में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। ग्रामीण विकास मंत्रालय, रक्षा, पर्यावरण, वन व जलवायु परिवर्तन, कृषि, आवासीय व शहरी विकास, रेलवे, एयरपोर्ट अथारिटी, बैंक, सार्वजनिक उपक्रम और विश्वविद्यालयों के पास पर्याप्त खाली जमीन है, जिसमें बरसात के पानी को संरक्षित करने की संभावना है। कोरोना संक्रमण की गंभीर चुनौतियों के बीच अभियान के दो महीने के भीतर इन संस्थानों में जल संरक्षण की दिशा में उल्लेखनीय कार्य किए गए हैं।

शहरी इमारतों के साथ रेन वॉटर हार्वेस्टिं‍ग अनिवार्य

शहरी विकास व आवासीय मंत्रालय ने भी शहरी इमारतों के साथ रेन वाटर हार्वेस्टिं‍ग (आरडब्ल्यूएच) को अनिवार्य बना दिया है। एक लाख से अधिक आरडब्ल्यूएच का निर्माण किया जा चुका है। शहरों और कस्बों में पुराने जलाशयों को चिह्नित कर उनका पुनरोद्धार भी किया गया। रेलवे और रक्षा मंत्रालय के पास लाखों की संख्या में छोटे-बड़े तालाब और लाखों हेक्टेयर खाली जमीन में जल संरक्षण को प्रोत्साहित किया गया।

2019 में चलाया गया था अभियान का पहला चरण जलशक्ति अभियान का पहला चरण 2019 में चलाया गया था। उस दौरान यह अभियान 256 जिलों के 1,592 डार्क एरिया ब्लाक में चलाया गया था, जहां पानी की भारी किल्लत है। अभियान की सफलता के लिए जन जागरूकता अभियान के तहत 'जल आंदोलन में जन आंदोलन' भी चलाया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के ढाई लाख गांवों के सरपंचों को पत्र लिखकर अभियान में हिस्सा लेने की अपील की थी। 

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