Vijay Rupani Resigns: विजय रूपाणी के सीएम पद से इस्तीफे के ये हैं प्रमुख कारण
विजय रूपाणी को चेहरा बनाकर पार्टी अगले चुनाव में नहीं उतरना चाहती थी। इसके पीछे एक बड़ी वजह थी गुजरात का जातीय समीकरण। रूपाणी जैन समुदाय से आते हैं। उनकी संख्या गुजरात में काफी कम है। रुपाणी के रहते गुजरात के जातीय समीकरण साध पाना मुश्किल हो रहा था।
नई दिल्ली, आनलाइन डेस्क। अहमदाबाद में विश्व पाटीदार समाज के सरदार धाम के उद्घाटन के चंद घंटों बाद गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने शनिवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया। गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत से मुलाकात के बाद उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उनका इस्तीफा राज्य में विधानसभा चुनाव से करीब एक साल पहले आया है। उन्होंने 7 अगस्त 2016 को गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला था। वह वर्तमान में विधायक के रूप में गुजरात के राजकोट पश्चिम का प्रतिनिधित्व करते हैं।
विजय रूपाणी को साल 2016 में तत्कालीन मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल को हटाकर गुजरात के सत्ता की कमान सौंपी गई थी। 2017 का विधानसभा चुनाव बीजेपी ने विजय रूपाणी के नेतृत्व में लड़ा था, लेकिन यह चुनाव जीतने में भाजपा को बड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी। गुजरात में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं, जिसके लिए भाजपा अपने आपको को मजूबत करने में जुट गई है। हालांकि विजय रूपाणी हटाए जाने की चर्चा काफी समय थी। लेकिन अभी उन्होंने इस्तीफा क्यों दिया, इसको लेकर अटकलबाजियों का दौर तेज है। वैसे बताया जा रहा है कि विजय रूपाणी भाजपा के गुजरात विधान सभा के विजय अभियान में फिट नहीं बैठ रहे थे। आइये जानते हैं वो कौन से कारण थे, जिसके कारण विजय रूपाणी को उनके पद से हटाया गया।
नहीं बन सके दमदार चेहरा नहीं
विजय रुपाणी पांच साल तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के बावजूद राजनीतिक तौर पर प्रभाव नहीं जमा सके। 2017 में भले ही विजय रुपाणी चेहरा रहे हैं, लेकिन चुनाव नरेंद्र मोदी के दम पर भाजपा जीती थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह ने गुजरात में पूरी ताकत झोंककर भाजपा की सत्ता को तो कायम रखा, लेकिन विधानसभा की 182 सीटों में से भाजपा 99 पर ही अटक गई थी। वहीं कांग्रेस 77 सीट जीतने में सफल रही थी। । भाजपा ने तय किया कि विधानसभा चुनाव वाले राज्यों में अपने चेहरे को मजबूत करेगी। इसी का नतीजा है कि उत्तराखंड, कर्नाटक के बाद अब गुजरात में सीएम मुख्यमंत्री है, ताकि 2022 के चुनाव में मजबूत चेहरे के सहारे कमल खिला सके।
पाटीदार समाज की राजनीतिक ताकत और जातीय समीकरण में अनफिट
विजय रूपाणी को चेहरा बनाकर पार्टी अगले चुनाव में नहीं उतरना चाहती थी। इसके पीछे एक बड़ी वजह थी गुजरात का जातीय समीकरण। रूपाणी जैन समुदाय से आते हैं। उनकी संख्या गुजरात में काफी कम है। रुपाणी के रहते भाजपा के लिए गुजरात के जातीय समीकरण साध पाना मुश्किल हो रहा था। विजय रूपाणी के इस्तीफे को गुजरात में पाटीदार समाज के पटेल समाज की ताकत रूप में देखा जा रहा है।
राज्य में पाटीदार के बाद दूसरे नंबर पर मौजूद ओबीसी समुदाय और दलित-आदिवासी वोटर सबसे अहम है। गुजरात में पाटीदार समुदाय काफी अहम है, जो सूबे के राजनीतिक खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखता है। राज्य में पाटीदार समाज भाजपा का परंपरागत वोटर रहा है, जिसे साधे रखने के लिए भाजपा हरसंभव कोशिश में जुटी है। यही वजह है कि गुजरात के सीएम पद की दौड़ में सबसे आगे नितिन पटेल, केंद्रीय मंत्री मनसुख मांडवीया, केंद्रीय मंत्री पुरुसोत्तम रूपाला तथा गुजरात भाजपा के उपाध्यक्ष गोवर्धन झड़फिया का नाम चर्चा में है।
कोरोना के नियंत्रण में फेल रहे रुपाणी
विजय रुपाणी के सीएम पद की कुर्सी जाने में प्रमुख वजह कोरोना महामारी बनी। गुजरात में कोरोना संकट को निपटने में विजय रूपाणी बहुत बेहतर नहीं रहे, जिसे लेकर विपक्ष और गुजरात हाईकोर्ट ने तमाम सवाल खड़े किए हैं। गुजरात में कोरोना की दूसरी लहर को लेकर लोगों के बीच नाराजगी देखने को मिल रही थी। कोरोना में बीजेपी सरकार के कामों को लेकर भी खुश नहीं थे. ऐसे में विजय रुपाणी इसे खत्म नहीं कर पा रहे थे। कोरोना के दौरान रुपाणी के कामकाज से पीएम नरेंद्र मोदी भी खुश नहीं थी। अपने गृह प्रदेश में इस तरह की लापरवाही होती देख पीएम मोदी काफी रेशान थे।
सीआर पाटिल से अनबन
विजय रूपाणी के सीएम पद से हटने की सबसे बड़ी वजह प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल से अनबन रही। सीआर पाटिल के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद से दोनों के बीच बन नहीं रही थी। रुपाणी गृहमंत्री अमित शाह के करीबी माने जाते हैं। इसीलिए वह इतने समय तक बचे रहे। असल में पाटिल ने पार्टी नेतृत्व के सामने इरादा जाहिर किया है कि वह प्रदेश में बड़ी जीत हासिल करना चाहते हैं। उनके इस प्लान में विजय रूपाणी फिट नहीं बैठ रहे थे। ऐसे में विजय रूपाणी को रास्ता खाली करना पड़ा। सीआर पाटिल ने पार्टी से स्पष्ट कर दिया था कि अगर अगले साल चुनाव में बड़ी जीत हासिल करनी है तो फिर राज्य में नेतृत्व परिवर्तन करना होगा।
रोजगार बना अहम मुद्दा
अन्य राज्यों की तरह गुजरात में नौकरी एक बड़ा चुनावी मुद्दा बना है। विपक्ष लगातार इस मुद्दे पर भाजपा को घेर रहा है। गुजरात में अब तक कांग्रेस ही प्रमुख विपक्षी दल थी, लेकिन अब आम आदमी पार्टी भी तीसरी ताकत के तौर पर जगह बना रही है। इसके अलावा विपक्ष गुजरात के विकास को लेकर भी हमलावर है। माना जा रहा है कि भाजपा सत्ताविरोधी लहर से निपटने के लिए सीएम फेस बदलने का दांव चला है।