जानें, क्या है अमेरिका का रक्षा उत्पादन अधिनियम, इसके चलते वैक्सीन बनाने वाली भारतीय कंपनियों के सांसे अटकी
अमेरिका की बाइडन प्रशासन ने भारत को वैक्सीन का कच्चा माल देने से इन्कार कर दिया है। बाइडन प्रशासन ने इस रोक के लिए रक्षा उत्पादन अधिनियम का बहाना बनाया है। इस अधिनियम की आड़ में अमेरिका ने कच्चे माल की आपूर्ति बंद कर दी गई है।
नई दिल्ली ऑनलाइन डेस्क। अमेरिकी बाइडन प्रशासन ने भारत को वैक्सीन का कच्चा माल देने से इन्कार कर दिया है। बाइडन प्रशासन ने इस रोक के लिए रक्षा उत्पादन अधिनियम का बहाना बनाया है। इस अधिनियम की आड़ में अमेरिका ने कच्चे माल की आपूर्ति बंद कर दी है। इसके चलते भारत में वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों के समक्ष एक गंभीर समस्या उत्पन्न हो गई है। इन कंपनियों को कच्चे माल के रूप में अमेरिका से आयात किए जाने वाले एक उपयोगी ट्यूब, असेंबली एडज्यूवेंट समेत कुछ रसायन आयात करने में दिक्कतें आने लगी हैं। इस प्रतिबंध के पीछे यूरोपीय देशों की भी यही मंशा है कि भारत में निर्मित कोविशील्ड और कोवैक्सीन की मांग सस्ती और प्रभावी होने के कारण तेजी से बढ़ रही है। इसके चलते अमेरिका, ब्रिटेन, रूस और अन्य देशों में निर्मित वैक्सीन कहीं वाणिज्य प्रतिस्पर्धा में पिछड़ न जाए।
क्या है अमेरिका का रक्षा उत्पादन अधिनियम
बाइडन प्रशासन ने अमेरिका के 1950 रक्षा उत्पादन अधिनियम (डिफेंस प्रोडक्शन एक्ट) को लागू किया है। यह कानून अमेरिकी राष्ट्रपति को आपात परिस्थितियों में घरेलू अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए शक्ति प्रदान करता है। इस अधिनियम के तहत राष्ट्रपति उन उत्पादों के निर्यात को प्रतिबंधित करने की अनुमति देता है, जो घरेलू मैन्युफैक्चरिंग के लिए जरूरी हो सकती है। बाइडन प्रशासन ने कहा है कि वे अधिनियम का इस्तेमाल उन चीजों की लिस्ट बढ़ाने के लिए करेंगे जिन पर अमेरिकी वैक्सीन निर्माता कंपनियों को प्राथमिकता मिलेगी। इस बाबत अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन ने अपने प्रशासन से वैक्सीन उत्पादन के लिए जरूरी चीजों में आई संभावित कमी से जुड़ी जानकारियां जुटाने को कहा है।
सीरम कंपनी ने केंद्र सरकार से लगाई गुहार
बता दें कि कि भारत कोरोना वैक्सीन का सबसे अधिक उत्पादन करने वाले देशों में से एक है, लेकिन अब भारत मांग के अनुरूप वैक्सीन आपूर्ति में समस्याओं का सामना कर रहा है। भारत में नोवावैक्स और एस्ट्राजेनेका का उत्पादन करने वाले सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने हाल में कच्चे माल की कमी को लेकर चिंता जाहिर की थी। सीरम इंस्टीट्यूट के मुखिया आदार पूनावाला ने अमेरिकी निर्यात प्रतिबंधों के चलते वैक्सीन निर्माण में प्रयोग होने वाले प्लास्टिक बैग और फिल्टर की कमी होने की आशंका जताई थी। कंपनी ने कहा था कि उसे सेल कल्चर मीडिया, सिंगल यूज ट्यूबिंग और विशेष रसायनों के आयात में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। इसका सीधा असर वैक्सीन उत्पादन पर पड़ेगा। सीरम कंपनी ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर इस मामले में हस्तक्षेप करने का आग्रह किया था, ताकि बिना किसी रुकावट के टीकों का उत्पादन किया जा सके।
भारत के वैक्सीन उत्पादन पर पड़ेगा प्रभाव
शुरुआत में भारत में दो टीकों को ही स्वीकृति मिली थी। ऑक्सफोर्ड एस्टोजेनेका वैक्सीन इसे कोविशील्ड के रूप में जाना जाता है और दूसरे कोवैक्सीन। यह भारतीय प्रयोगशालाओं में विकसित किए गए हैं। जनवरी महीने की शुरुआत से अब तक सीरम इंस्टीट्यूट कोविशील्ड की 130 मिलियन खुराक से ज्यादा निर्यात किया गया है या फिर घरलू उपयोग किया गया है। भारतीय कंपनियां उत्पादन में तेजी ला रहीं हैं ताकि घरेलू मांग के साथ वैश्चिक आपूर्ति की जरूरतों को पूरा किया जा सके। सीरम कंपनी का कहना है जनवरी महीने में एक समय उत्पादन 60 से 70 मिलियन वैक्सीन प्रतिमाह का था। कंपनी का लक्ष्य मार्च महीने में इसे बढ़ाकर 100 मिलियन प्रतिमाह करने का था, लेकिन इसमें बाधा आ रही है।