DATA STORY : घरेलू यात्राओं पर पाबंदी बढ़ा सकता है कोरोना का संक्रमण, यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो का शोध

घरेलू यात्रा प्रतिबंध कितना जायज है इस पर यूनिवर्सिटी और शिकागो ने अध्ययन किया। अध्ययन में भारत समेत चीन इंडोनेशिया फिलीपींस दक्षिण अफ्रीका और केन्या को शामिल किया गया। अध्ययन के मुताबिक कोरोना संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए घरेलू यात्राओं पर लगाया गया प्रतिबंध अनुचित हो सकता है।

By Vineet SharanEdited By: Publish:Fri, 07 May 2021 08:52 AM (IST) Updated:Fri, 07 May 2021 07:11 PM (IST)
DATA STORY : घरेलू यात्राओं पर पाबंदी बढ़ा सकता है कोरोना का संक्रमण, यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो का शोध
आपदा में घर जाने की जल्दी होती है। लोगों को रोकने के बजाय, उन्हें जाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।

नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। देश एक बार फिर से कोरोना जैसी जानलेवा बीमारी की गंभीर चपेट में है। इसकी दूसरी लहर पहली लहर से ज्यादा खतरनाक है। स्थितियां ज्यादा डरावनी हैं। सवाल यह है कि क्या लोगों को एक जगह रोककर इस महामारी पर काबू पाया जा सकता है? क्या इसके संक्रमण को रोकने के लिए घरेलू यात्राएं प्रतिबंधित कर देना जायज है? जैसा कि इसकी पहली लहर के दौरान ट्रेन, बस और विमान पर प्रतिबंध लगाकर किया गया था, जबकि इसके उलट उस दौरान सरकार की पाबंदियों के बाद देश के अलग-अलग हिस्सों से प्रवासी श्रमिक पैदल मीलों की यात्रा तय कर अपने घर पहुंचे थे।

घरेलू यात्राओं पर यह प्रतिबंध कितना जायज है, इस पर यूनिवर्सिटी और शिकागो की तरफ से एक अध्ययन किया गया। हालिया इस अध्ययन में भारत समेत चीन, इंडोनेशिया, फिलीपींस, दक्षिण अफ्रीका और केन्या जैसे देशों को शामिल किया गया। इस अध्ययन के मुताबिक कोरोना संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए घरेलू यात्राओं पर लगाया गया प्रतिबंध अनुचित हो सकता है। सरकार की ओर से निर्धारित प्रतिबंध की अवधि के आधार पर संक्रमण और ज्यादा प्रभावी हो सकता है, खासकर जब एक बड़ी शहरी-ग्रामीण प्रवासी आबादी साथ हो।

शिकागो यूनिवर्सिटी के शिक्षाविद् के मुताबिक, स्थिति को नियंत्रित करने के उद्देश्य से यात्राओं पर लगाया गया प्रतिबंध स्थितियों को बिगाड़ सकता है, खासकर तब जब एक शहरी क्षेत्र में बड़ी आबादी ग्रामीण श्रमिकों की होती है और आप उन्हें उनके घर जाने से रोकते हैं। स्थिति को समझने के लिए शोधकर्ताओं ने यात्राओं पर पाबंदी, शहरी-ग्रामीण प्रवास और संक्रण के डाटा का अध्ययन किया है। इसके आधार पर वे कहते हैं कि लॉकडाउन का मुख्य उद्देश्य इन प्रवासियों को अपने घर जाने से रोकना था, ताकि संक्रमण के प्रसार को रोका जाए। इसका नतीजा सबसे सामने है। इसे मुंबई की स्थिति से बेहतर तरीके से समझा जा सकता है।

ऐसे किया गया शोध

अध्ययन के लेखक और द इनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट, साउथ एशिया के डायरेक्टर अनंत सुदर्शन बताते हैं कि पहली लहर में किया गया देशव्यापी लॉकडाउन प्रवासी श्रमिकों को बड़े शहरों में कैद कर दिया, जहां संक्रमण तेजी से फैल रहा था। स्थिति की भयावहता को देख कर लोग अपने-अपने घर लौटना चाहते थे, लेकिन सरकार की तरफ से इन्हें एक लंबी अवधि तक रोक कर रखा गया। इनकी यात्रा पर पाबंदी हटाना कितना सही निर्णय रहा, इसे इस बात से भी समझ सकते हैं कि जिन्हें श्रमिक एक्सप्रेस व अन्य साधनों से जल्दी घर लौटा दिया गया, वहां संक्रमितों की संख्या बेहद कम रही। इसके उलट जहां बड़ी संख्या में श्रमिक शहरों में कंटोनमेंट जोन में लंबे समय तक फंसे रह गए, वहां मजदूर जब अपने गंतव्य की ओर लौटे तो वहां भी केस बढ़ गए। कारण साफ था, उनका कंटोनमेंट जोन में लंबे समय तक फंसे रहना।

मुंबई के अलावा इस अध्ययन में पांच अन्य देशों के डाटा का विश्लेषण किया गया है। इसमें चीन, इंडोनेशिया, फिलीपींस, दक्षिण अफ्रीका और केन्या जैसे देशों के शहरों को शामिल किया गया। इन पांच देशों में कुल वैश्विक आबादी के 40 फीसदी लोग रहते हैं। अध्ययन में शोधकर्ताओं ने इन सभी देशों से यात्रा पर प्रतिबंध लगाने के बाद संक्रमण के आंकड़े, प्रवासी श्रमिकों का डाटा व अन्य सूचनाओं का इस्तेमाल किया है। अध्ययन में यह बात निकलकर सामने आई कि अगर सरकारें लंबी अवधि के लिए प्रतिबंध का निर्णय लेती हैं, तब तो वे संक्रमण के प्रसार को रोकने में कारगर हो सकती हैं, लेकिन कम समय के लिए लगाया गया प्रतिबंध प्रसार को कम करने की बजाय उसमें तेजी से वृद्धि कर सकता है।

ये दिए गए सुझाव

शिकागो यूनिवर्सिटी के हैरिस स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी की असिस्टेंड प्रोफेसर फिओना बर्लिंग ने बताया कि आपदा की स्थिति में लोगों को घर जाने की जल्दी होती है। ऐसे लोगों को रोकने के बजाय, उन्हें जाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए, उसके लिए इंतजाम करना चाहिए, बजाय इसके कि उन्हें एक-दूसरे शहर में रोक कर रखा जाए। उन्होंने कहा कि अगर यात्रा प्रतिबंध लंबे समय तक के लिए नहीं है तो ऐसी स्थिति में श्रमिकों की समस्याओं के समाधान पर विचार करना चाहिए, ताकि उनपर किसी अन्य प्रकार की परेशानियों का बोझ न बढ़े। एक सचाई ये भी है कि किसी के पास इसकी सही जानकारी नहीं है कि कितने दिन के प्रतिबंध लगाने से कोविड संक्रमण के प्रसार को रोका जा सकता है। ऐसी स्थिति में प्रतिबंधों को आसानी से बरकरार रख पाना संभव नहीं है। 

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