कोरोना से मौत पर क्‍यों नहीं दिया जा सकता चार लाख का मुआवजा, सरकार ने बताई इसकी कई वजहें, आप भी जानें

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बताया है कि कोरोना से जान गंवाने वाले लोगों के परिवारों को चार लाख रुपये मुआवजा नहीं दिया जा सकता। केंद्र सरकार ने सर्वोच्‍च अदालत में इसकी कई वजहें बातई हैं। आप भी जानें...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Publish:Sun, 20 Jun 2021 08:29 PM (IST) Updated:Mon, 21 Jun 2021 12:19 AM (IST)
कोरोना से मौत पर क्‍यों नहीं दिया जा सकता चार लाख का मुआवजा, सरकार ने बताई इसकी कई वजहें, आप भी जानें
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि कोरोना से जान गंवाने वालों के परिवारों को मुआवजा नहीं दिया जा सकता।

नई दिल्ली, एजेंसियां। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बताया है कि कोरोना से जान गंवाने वाले लोगों के परिवारों को चार लाख रुपये मुआवजा नहीं दिया जा सकता क्योंकि केंद्र व राज्य सरकारों की आíथक स्थिति ठीक नहीं है और इतना वित्तीय बोझ उठाना मुमकिन नहीं है। सरकार ने कहा कि महामारी की वजह से देश में 3.85 लाख से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है और यह संख्या और बढ़ने की आशंका है। साथ ही कोरोना से होने वाली किसी भी मृत्यु को कोरोना से हुई मौत प्रमाणित करना अनिवार्य है। इसमें विफल रहने पर प्रमाणित करने वाले डाक्टर सहित सभी जिम्मेदार लोग दंड के अधिकारी होंगे।

वित्तीय साम‌र्थ्य से बाहर

शीर्ष अदालत में दाखिल एक हलफनामे में गृह मंत्रालय ने कहा है कि आपदा प्रबंधन कानून, 2005 की धारा-12 के तहत 'न्यूनतम मानक राहत' के तौर पर स्वास्थ्य, बुनियादी ढांचा बढ़ाने और प्रत्येक नागरिक को खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ठोस और तेजी से कई कदम उठाए गए हैं। कोरोना के कारण जान गंवाने वाले सभी लोगों के परिवारों को मुआवजा देना राज्य सरकारों के वित्तीय साम‌र्थ्य से बाहर है।

नतीजे अच्‍छे नहीं होंगे

सरकार का कहना है कि महामारी के कारण राजस्व में कमी और स्वास्थ्य संबंधी खर्च बढ़ने से राज्य सरकारों और केंद्र सरकार की वित्तीय स्थिति पहले से दबाव में है। इसलिए मुआवजा देने के लिए सीमित संसाधनों का इस्तेमाल करने के दुर्भाग्यपूर्ण परिणाम होंगे। इसका महामारी से निपटने व स्वास्थ्य खर्च पर असर पड़ सकता है, जिससे लाभ की तुलना में नुकसान ज्यादा होगा।

सरकारों के संसाधनों की सीमाएं

सरकार का कहना है कि यह एक दुर्भाग्यपूर्ण, लेकिन महत्वपूर्ण तथ्य है कि सरकारों के संसाधनों की सीमाएं हैं और मुआवजे के रूप में कोई भी अतिरिक्त बोझ अन्य स्वास्थ्य और कल्याणकारी योजनाओं के लिए उपलब्ध धन में कमी करेगा। सरकार का यह भी कहना है कि मार्च, 2020 में घोषित प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत प्रत्येक लाभार्थी को 50 लाख रुपये का बीमा कवर उपलब्ध कराया गया है जो याचिका में मांगी गई राशि की 12 गुना है।

सिफारिश का अधिकार राष्ट्रीय प्राधिकरण को

केंद्र सरकार का कहना है कि आपदा प्रबंधन कानून, 2005 की धारा-12 के तहत 'राष्ट्रीय प्राधिकरण' है जिसे अनुग्रह सहायता सहित राहत के न्यूनतम मानकों के लिए दिशा-निर्देशों की सिफारिश करने का अधिकार है और संसद द्वारा पारित कानून के तहत प्राधिकरण को यह कार्य सौंपा गया है।

अदालत के माध्यम से निष्‍पादन नहीं

सरकार के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों के माध्यम से यह अच्छी तरह स्थापित है कि यह ऐसा मामला है जिसे प्राधिकरण द्वारा निष्पादित किया जाना चाहिए जिसे इसकी जिम्मेदारी दी गई है और अदालत के माध्यम से यह नहीं होना चाहिए। दूसरे माध्यम से कोई भी प्रयास अनपेक्षित व दुर्भाग्यपूर्ण संवैधानिक और प्रशासनिक प्रभाव पैदा कर सकता है। यह भी ध्यान देने योग्य है कि अनुग्रह राशि (एक्स-ग्रेशिया) शब्द ही यह दर्शाता है कि राशि कानूनी अधिकार पर आधारित नहीं है।

केवल अनुग्रह राशि ही मदद करने का जरिया नहीं

केंद्र ने शीर्ष अदालत से कहा कि यह कहना गलत है कि अनुग्रह राशि के जरिये ही मदद की जा सकती है क्योंकि यह पुराना और संकीर्ण दृष्टिकोण होगा। स्वास्थ्य देखभाल, सामाजिक सुरक्षा और प्रभावित समुदायों के लिए आíथक बेहतरी जैसा व्यापक दृष्टिकोण ज्यादा विवेकपूर्ण, जिम्मेदार और टिकाऊ नजरिया होगा। वैश्विक स्तर पर अन्य देशों में भी सरकारों ने इसी दृष्टिकोण को अपनाया है और ऐसे उपायों की घोषणा की जिससे अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन मिले। भारत सरकार ने भी यही दृष्टिकोण अपनाया है।

सरकारों ने हजारों करोड़ खर्च किए

केंद्र ने यह भी कहा कि किसी बीमारी के फैलने या लंबी अवधि की किसी आपदा जो महीनों या वर्षो तक चले, में अनुग्रह राशि देने का कोई पूर्व उदाहरण नहीं है। वास्तव में एक बीमारी के लिए अनुग्रह राशि प्रदान करना और दूसरे में अधिक मृत्यु दर होने पर भी इन्कार करना उचित नहीं होगा। इसके अलावा वर्तमान महामारी में केंद्र व राज्य सरकारों ने रोकथाम, टेस्टिंग, इलाज, क्वारंटाइन, अस्पताल में भर्ती कराने, दवाइयों और टीकाकरण इत्यादि पर हजारों करोड़ रुपये खर्च किए हैं जो अभी भी जारी है। अभी यह भी नहीं पता कि कितने और धन की जरूरत पड़ेगी।

सभी संक्रमितों की मौत प्रमाणित करना जरूरी

हलफनामे में केंद्र सरकार का यह भी कहना है कि अन्य गंभीर बीमारियों से पीडि़त होने के बावजूद कोरोना संक्रमितों की सभी मौतों को संक्रमण के कारण होने वाली मौतों के रूप में वर्गीकृत किया जाना है। इसका एकमात्र अपवाद वहां होगा जहां मृत्यु का एक स्पष्ट वैकल्पिक कारण हो और जिसके लिए कोरोना को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। जैसे- आकस्मिक आघात या जहर से मौत इत्यादि।

पहले कहा था- सरकार कर रही विचार

शीर्ष अदालत अधिवक्ता रीपक कंसल और गौरव कुमार बंसल की दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। इनमें केंद्र व राज्यों को कानून के तहत कोरोना से जान गंवाने वाले लोगों के परिवारों को चार लाख रुपये मुआवजा देने और मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने के लिए एक समान नीति का अनुरोध किया गया है। 11 जून को केंद्र ने अदालत को बताया था कि याचिकाओं में उठाए गए मुद्दे सही हैं और सरकार इस पर विचार कर रही है।

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