Madhya Pradesh: कोरोना मरीजों में 15 फीसद को टायफाइड भी निकल रहा, इलाज में हो रही गफलत
गांधी मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) भोपाल से संबद्ध हमीदिया अस्पताल में 680 कोरोना मरीज भर्ती हैं। रेसीडेंट मेडिकल ऑफिसर डॉ. हरीश पाठक ने बताया कि 10 से 15 फीसद कोरोना मरीजों की टायफाइड रिपोर्ट भी पॉजिटिव आ रही है।
भोपाल, जेएनएन। कोरोना संक्रमण के बीच ब्लैक फंगस और अब टायफाइड भी मरीजों-डॉक्टरों को परेशान कर रहा है। दरअसल, कोरोना मरीजों में अन्य जांच में 10 से 15 फीसद को टायफाइड भी पॉजिटिव मिल रहा है। हालांकि इनमें से ज्यादातर रिपोर्ट गलत होती हैं और यहीं से इलाज में गफलत शुरू हो रही है। डॉक्टरों के मुताबिक यह टायफाइड का सीजन है, इसलिए सतर्कता के लिए जांच करवाई जाती है पर ज्यादातर कोरोना मरीजों में टायफाइड पता करने के लिए किया जाने वाला विडाल टेस्ट गलत पॉजिटिव आ रहा है। इसकी वजह यह है कि किसी भी संक्रमण के दौरान कई तरह की एंटीबॉडी बनती हैं। इससे दूसरी बीमारी भी जांच में पॉजिटिव आ जाती है।
गांधी मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) भोपाल से संबद्ध हमीदिया अस्पताल में 680 कोरोना मरीज भर्ती हैं। रेसीडेंट मेडिकल ऑफिसर डॉ. हरीश पाठक ने बताया कि 10 से 15 फीसद कोरोना मरीजों की टायफाइड रिपोर्ट भी पॉजिटिव आ रही है। अस्पताल के छाती व श्वास रोग विभाग के एचओडी डॉ. लोकेंद्र दवे ने बताया कि अधिकांश मरीजों की रिपोर्ट गलत पॉजिटिव आ रही है। टायफाइड के सामान्य लक्षण हैं पेट दर्द, दस्त, बुखार, भूख नहीं लगना और कोरोना की दूसरी लहर में भी अधिकांश मरीजों में यही लक्षण हैं। ऐसे में टायफाइड पॉजिटिव आने पर कई बार डॉक्टर भ्रम में पड़ जाते हैं। इससे इलाज में गफलत होती है। कोरोना की भी पुष्टि करना चाहिए।
डॉ. दवे कहते हैं कि टायफाइड की पुष्टि के लिए एक हफ्ते के अंतराल पर जांच करानी चाहिए। इसमें देखा जाना चाहिए कि टायफाइड की एंटीबॉडी बढ़ रही हैं या कम हो रही हैं। दोनों स्थितियों में टायफाइड माना जाना चाहिए। यदि एंटीबॉडी की संख्या स्थिर है तो रिपोर्ट गलत पॉजिटिव हो सकती है।
10 दिन तक टायफाइड का इलाज कराया, बाद में पता चला कोरोना है
बैतूल के रहने वाले बबलू यादव को करीब महीने भर पहले बुखार आया। उन्होंने स्थानीय डॉक्टरों को दिखाया तो उन्होंने टायफाइड की जांच कराई। पॉजिटव आने पर उनका टायफाइड का इलाज शुरू किया गया। हालत में सुधार नहीं हुआ तो 10 दिन बाद कोरोना की जांच कराई जो पॉजिटिव आई। इसके बाद हालत और बिगड़ती गई तो अस्पताल में भर्ती कराया गया। यहां 15 दिन तक इलाज के बाद वे स्वस्थ हुए।
यह कहते हैं विशेषज्ञ
भोपाल के आरकेडीएफ मेडिकल कॉलेज के माइक्रोबायोलॉजी डिपार्टमेंट के एचओडी डॉ. अपूर्व त्रिपाठी ने कहा कि टायफाइड का पता लगाने के लिए विडाल टेस्ट किया जाता है। हालांकि यह टेस्ट अब प्रचलन से बाहर होता जा रहा है। वजह, कई कारणों से इसमें गलत रिपोर्ट भी आती है। विडाल कराने की जगह ब्लड कल्चर टेस्ट करवाना अधिक अच्छा है। विडाल में एंटीबॉडी की जांच की जाती है। इसमें एच और ओ एंटीबॉडी देखी जाती है। कोरोना ही नहीं किसी भी तरह के वायरस के संक्रमण में कुछ असंबद्ध एंटीबॉडी भी बन जाती हैं जिसका उस बीमारी से लेना-देना नहीं होता। ऐसे में दूसरी बीमारी की रिपोर्ट भी पॉजिटिव आ जाती है। जबकि हमेशा ऐसा नहीं होता।